एक बार की बात है भगवान बुद्ध एक नगर में पधारे उसे नगर का मंत्री बहुत ही नेक,ईमानदार और अच्छे दिल का था। वह महल के अंदर अपने महाराज के पास गया और उसने बोला “महाराज हमारे नगर में भगवान बुद्ध पधारे हैं।
तो उनके मंत्री ने कहा “महाराज ऐसे में आपको स्वयं भगवान बुद्ध का स्वागत करने जाना चाहिए। मंत्री की बात सुनकर राजा भड़क कर बोला “मैं भला जाऊं वह भी क्यों..? अगर उसे मिलना होगा तो वह स्वयं आएगा। वह कोई भगवान नहीं बल्कि… बुद्ध सिर्फ एक भिक्षु है।
मंत्री को राजा का यह घमंड और अकड़ बिल्कुल भी अच्छी नहीं गई लगी इसीलिए वह अपने कक्ष में गया और उसने त्यागपत्र लिखा। उस त्यागपत्र को पढ़ने के बाद राजा ने मंत्री से कहा “मुझे लगता है कि यह पत्र तुमने किसी गलतफहमी में आकर लिखा हैं। क्योंकि इस पत्र में मंत्री नहीं लिखा था कि मैं ऐसी छोटी सोच वाले राजा के यहां काम नहीं कर सकता जिनके अंदर बिल्कुल भी बड़प्पन नहीं है सिर्फ घमंड भरा हुआ है।
तब राजा ने मंत्री से कहा कि मैं बड़प्पन के कारण ही तो बुद्ध का स्वागत करने स्वयं नहीं जा रहा हूं। राजा की यह बात सुनकर मंत्री बोला” महाराज अकड़ और घमंड कोई बड़प्पन नहीं है। मंत्री राजा से कहता है कि आप शायद भूल रहे हैं कि भगवान बुद्ध भी स्वयं एक सम्राट थे वे उसे सब को त्याग कर एक भिक्षु बने हुए हैं।
मंत्री राजा को समझता है कि महाराज आप तो भगवान बुद्ध से बहुत ही पीछे हैं क्योंकि जब भगवान बुद्ध स्वयं एक सम्राट थे तब भी उनके मन में नेक, दया भाव, ईमानदारी थी।वास्तव में इंसानियत के गुणों से विभूषित मनुष्य ही उच्च अध्यात्म व ज्ञान को प्राप्त कर सकता है। मंत्री किया सभी बातें सुनकर आखिरकार राजा का घमंड चूर-चूर हो गया और वह मंत्री के साथ द्वार पर जाकर उसने भगवान बुद्ध का स्वागत स्वयं किया। राजा भगवान बुद्ध के चरणों में लेट गया और उसने उनसे दीक्षा देने का अनुरोध किया। भगवान बुद्ध ने राजा को उठाकर उसे गले लगा कर उसे दीक्षा देने को स्वीकार कर लिया।
इस कहानी की सीख-: इस कहानी से मैं यह शिक्षा मिलती है कि हम चाहे कितने भी बड़े पद पर क्यों ना हो हमें अपने अंदर घमंड और अकड़ नहीं लानी चाहिए तथा सभी साधु भिक्षुओं का भी सम्मान करना चाहिए। क्योंकि घमंड एक ऐसी चीज है जो मनुष्य का विनाश कर देती है।