जो लोग भगवान शंकर के भक्त हैं और उनका सोमवार व्रत करते हैं उन भक्तगणों को यह कथा पढ़ना अथवा सुनना अति अनिवार्य है। जिस प्रकार से 16 सोमवार के व्रत की कथा होती है उसी प्रकार से सोमवार व्रत की कथा भी होती है। जो कोई भी सोमवार का व्रत करता है भोलेनाथ उनकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं और सदैव अपने भक्त की उसकी रक्षा करते हैं आईए जानते हैं कि क्या है सोमवार की व्रत कथा…
एक बार की बात है एक साहूकार था जो कि भगवान शंकर का बहुत बड़ा भक्त था वह प्रतिदिन शिव जी के मंदिर जाकर दीपक जलाता था और सोमवार के दिन भगवान शंकर का व्रत भी करता था परंतु उसकी एक बात की चिंता हमेशा रहती थी कि उसकी कोई संतान नहीं है इसके लिए वह भगवान से प्रार्थना भी करता था।
उसकी इस प्रार्थना का सुनकर एक बार माता पार्वती ने शंकर जी से कहा -“हे प्रभु जब यह आपका अनन्य भक्त है तो आपको इसकी प्रार्थना सनी चाहिए एवं इसके दुख को दूर करना चाहिए। शंकर जी बोले-” हे पार्वती इस भक्त के किस्मत में संतान सुख नहीं है। इस कारण में इसको पुत्र प्राप्ति का वर्णन नहीं दे सकता परंतु यदि तुम प्रार्थना करती हो तो मैं तुम्हारे कहने पर इसको एक पुत्र दे सकता हूं परंतु वह 12 वर्ष से अधिक जीवित नहीं रह रहेगा।
माता पार्वती और शंकर जी की बातें साहूकार सुन रहा था यह जानकर कि उसको एक पुत्र होगा, उसको ना तो अत्यंत दुख हुआ और ना ही अधिक प्रसन्नता हुई परंतु यह बात उसने अपने घर में किसी को नहीं बताई और पहले की ही भांति भगवान की पूजा आराधना करता रहा। भगवान शंकर के आशीर्वाद से साहूकार की पत्नी गर्भवती हुई और नवे महीने उनको एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई।
पुत्र प्राप्ति होने के कारण साहूकार के घर में सभी लोग अत्यंत प्रश्न थे पर ख़ुशी मना रहे थे परंतु साहूकार ना तो अधिक खुश था और ना ही अधिक दुखी क्योकि वह अपने पुत्र के 12 वर्ष तक जीने की गुप्त रहस्य को जानता था।
साहूकार की पत्नी ने साहूकार से कहा कि हमें अपने पुत्र का ब्याह करना चाहिए। साहूकार बोला-” अभी मैं इसका ब्याह नहीं करूंगा, अभी मै इसको काशी जी पढ़ने के लिए भेजूंगा फिर साहूकार ने लड़के के मामा को बुलवाकर कहा कि यह कुछ धन और मेरे पुत्र को ले जाकर काशी जी पढ़ने के लिए ले जाओ रास्ते में जहां कहीं भी रुकना यज्ञ कराते तथा ब्राह्मणों को दान देते हुए जाना। लड़के ने लड़के के मामा ने हां कर दी। लड़के का मामा धन व लड़के को लेकर काशी जी की ओर चल दिया।
रास्ते में वह जहां कहीं भी रुकता था यज्ञ करते और ब्राह्मणों को दान देते जा रहा था। एक बार वह एक ऐसे नगर में पहुंचा जहां पर एक दूसरे सेठ के लड़के का ब्याह था जो कि एक आंख काना था। लड़के के पिता को इस बात की बहुत चिंता लगी रहती थी कि मेरा लड़का काना है यह जानकर कहीं लड़की वाले ब्याह करने से मन ना कर दें। उस सेठ ने जब इस साहूकार के पुत्र को देखा तो उसने सोचा कि यह बालक बहुत ही सुंदर है क्यों न वर के रूप में इसे ही दरवाजे पर ले जाया जाए। उसे सेठ ने लड़के और मामा से बात की तो वे दोनों तैयार हो गए हैं। वर के रूप में दरवाजे पर साहूकार के बेटे को ले जाया गया जिससे दरवाजे पर स्वागत के सभी कार्य सही से संपन्न हो गए। उसके पश्चात साहू सेठ ने सोचा -” क्यों ना सभी बच्चे हुए कार्य भी इसी लड़के से करवा लिया जाए” इसके बाद उस सेठ ने उस लड़के और लड़के के मामा से पुनः बात किया और कहा यदि तुम बाकी सभी कार्य भी मेरे सही तरीके से संपन्न करवा दो तो मैं तुमको बहुत सारा धन दूंगा। तुम्हारी बड़ी कृपा होगी। यह सुनकर लड़का तथा मामा दोनों तैयार हो गए।
ब्याह के आगे के कार्य भी उसे लड़के ने संपन्न करवा दिए और जब वह लड़का वहां से जाना जाने लगा तो उसने लड़की के चुनरी के पल्ले पर लिख दिया था कि तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ है परंतु जिस लड़के के साथ तुझे भेजेंगे वह एक आंख से काना है मैं काशी जी पढ़ने के लिए जा रहा हूं। जब लड़की ने अपनी चुनरी के पल्ले पर लिया लिख पाया तो उसने अपने माता-पिता को यह बात बताई और उस सेठ के लड़के के साथ जाने से मना कर दिया।
यह बात सुनकर लड़की के माता-पिता ने बारात को वापस भेज दिया और अपनी लड़की को उनके साथ विदा नहीं किया। उधर लड़की के मामा और लड़का काशी जी पहुंच गया वहां लड़के ने पढ़ना आरंभ किया और उसके मामा ने यज्ञ करना शुरू कर दिया। जब लड़का 12 वर्ष का हुआ तो उसे दिन उसके मामा ने यज्ञ रखा था उस समय लड़का खेल रहा था। उसने मामा के पास आकर कहा-” मामा जी मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही है” तो लड़के के मामा ने कहा-“अच्छा!जाकर अंदर सो जाओ लड़का अंदर जाकर सो गया कुछ देर के बाद उसके प्राण निकल गए। जब अंदर जाकर उसके मामा ने यह सब देखा तो उसे बहुत ही दुख हुआ परंतु उसने सोचा यदि मैं अभी रोना पीटना मचा दूंगा जो मेरा यज्ञ का कार्य अधूरा रह जाएगा।उसने पहले यज्ञ का कार्य समाप्त किया और ब्राह्मणों को दान आदि देकर उन्हें विदा कर दिया उसके पश्चात अंदर जाकर रोना-पीटना मचाना शुरू किया।
संयोगवश उसी समय शिव पार्वती जी वहां से जा रहे थे जब माता पार्वती ने रोने की आवाज सुनी भगवान शंकर से बोली- प्रभु कोई दुःखिया व्यक्ति रो रहा है। हमें जाकर देखना चाहिए।जब जाकर शंकर जी पार्वती जी ने देखा तो वहां पर लड़के का मामा रो रहा था तथा वह लड़का जो भगवान शंकर के आशीर्वाद से हुआ था वह वहां पर मुर्दा पड़ा हुआ था। पार्वती जी ने शंकर जी से कहा हे प्रभु यह तो उसी साहूकार का लड़का है जो आपके आशीर्वाद से हुआ था शंकर जी ने कहा -“हां पार्वती! इसकी आयु इतनी ही थी, वह यह भोग चुका है। माता कहने लगी हे प्रभु इस बालक को और उम्र दे,नहीं तो उसके माता-पिता तड़प तड़प कर मर जाएंगे। फिर माता पार्वती की कहाँ पर शंकर जी ने उस बालक को जीने का वरदान प्रदान किया और लड़का जीवित हो गया।लड़के ने भगवान भोलेनाथ का धन्यवाद किया उसके बाद माता पार्वती और शंकर जी कैलाश चले गए।
सभी कार्य संपन्न कराकर जब लड़का और उसके मामा घर को वापस लौट रहे थे तो 1 दिन वे उसी नगर में पहुंचे जहां उनका ब्याह हुआ था। जब लड़के के मामा ने यज्ञ करना प्रारंभ किया तो वहां पर उस लड़के का ससुर भी वहां आया हुआ था।ससुर ने लड़के को पहचान लिया और घर ले जाकर उसका आव भगत किया स्वागत सत्कार किया एवं बहुत धन के साथ अपनी बेटी को उसे लड़के के साथ विदा कर दिया।
जब लड़का अपने घर के समीप पंहुचा तभी लड़के के मामा ने कहा कि मैं घर जाकर तुम्हारा संदेश तुम्हारे पिता और माता को दिया आता हूं।
उधर लड़के के माता-पिता ने प्रण कर रखा था और भी छत पर यह सोचकर बैठे थे कि यदि मेरा पुत्र सा सकुशल नहीं लौटा तो हम छत से कूद कर अपनी जान दे देंगे,परंतु यदि हमारा पुत्र सकुशल लौट आया तो हम भगवान शंकर का धन्यवाद अदा करेंगे एवं उनके मंदिर जाएंगे। जब लड़के के मामा ने आकर लड़की के आने का समाचार दिया तो उनके माता-पिता का विश्वास नहीं हुआ तो लड़के के मामा ने बताया -“आपका पुत्र अपनी पत्नी वह बहुत सारे धन सहित आया है” यह सुनकर लड़की के माता-पिता अत्यंत प्रसन्न हुए वह नीचे आकर लड़के का और अपनी बहू का स्वागत सत्कार बड़े ही धूमधाम से किया। उसके बाद साहूकार ने परिवार सहित भगवान शंकर के मंदिर जाकर घी के दीए जलाएं और उनका धन्यवाद किया। उसके बाद साहूकार हमेशा पहले की ही भांति भगवान शंकर का प्रतिदिन दीपक जलाता रहा और उनका सोमवार का व्रत भी करता रहा।
इस प्रकार से जो कोई भी भगवान शंकर का सोमवार का व्रत करता है, व्रत की कथा पढ़ता है, कथा सुनता है, बस दूसरों को सुनाता है।भोलेनाथ उनकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं तथा जो श्रद्धा और भक्ति भाव से उनसे प्रार्थना करता है एवं उनका ध्यान करता है भगवान भोलेनाथ उनके समस्त इच्छाओं को पूरा करते हैं सदैव उनकी रक्षा करते हैं।
प्रेम से बोलो भोलेनाथ की जय!