गाँव में दो सच्चे दोस्त रहते थे—रवि और सूरज। दोनों बचपन से साथ खेलते, पढ़ते और हर खुशी-दुख में एक-दूसरे का साथ देते। रवि गरीब किसान का बेटा था, जबकि सूरज जमींदार का बेटा था। लेकिन दोनों की दोस्ती में कोई फर्क नहीं था।
एक दिन गाँव में अकाल पड़ा। रवि के घर में खाने को अनाज भी नहीं बचा। उसकी माँ बीमार थी, और घर में दवा खरीदने के पैसे तक नहीं थे। रवि बहुत परेशान था, लेकिन उसने सूरज से मदद माँगने का मन नहीं बनाया, क्योंकि उसे लगा कि दोस्ती में स्वार्थ नहीं होना चाहिए।
जब सूरज को यह पता चला, तो उसने बिना कुछ कहे, अपने घर से चुपचाप अनाज और पैसे निकालकर रात के अंधेरे में रवि के घर रख दिए। रवि ने सुबह जब अनाज और पैसे देखे, तो उसे समझ नहीं आया कि यह किसने दिया। लेकिन उसने भगवान का धन्यवाद किया और अपनी माँ का इलाज करवाया।
कुछ महीनों बाद, जब रवि को यह पता चला कि यह सब सूरज ने किया था, तो उसकी आँखों में आँसू आ गए। वह दौड़ता हुआ सूरज के पास गया और गले लगाकर बोला, “तू सिर्फ मेरा दोस्त नहीं, मेरा सच्चा भाई है।”
सूरज हँसकर बोला, “दोस्ती का मतलब ही यही होता है—बिना कहे, बिना शर्त एक-दूसरे की मदद करना।”
सीख: सच्ची दोस्ती सिर्फ साथ रहने का नाम नहीं है, बल्कि बिना बोले एक-दूसरे की मदद करने और हर हाल में साथ निभाने का नाम है।