सम्राट कृष्ण देव राय का दरबार लगा था ,महाराज दरबारियों के साथ हल्की फुल्की चर्चा में व्यस्त थे कि अचानक चतुर और चतुराई पर चर्चा जब पड़ी। महाराज के अधिकांश मंत्री और यहां तक कि राजगुरु भी तेनाली राम से जलते थे महाराज के समक्ष अपने दिल की बात रखने का मौका अच्छा था, अतः एक मंत्री बोले-