इसके नियमित अभ्यास से अस्सी की उम्र दिखेंगे युवा
लखनऊ। मानव सभ्यता के लिए प्राचीन ऋषियों मुनियों द्वारा दिया गया योग का ज्ञान किसी वरदान से कम नहीं है। प्राचीन काल में हिन्दू राजाओं की सेना के सैनिकों को प्रशिक्षण के दौरान “सूर्य नमस्कार” का अभ्यास कराया जाता था। सूर्य नमस्कार में बारह आसन का निरंतर अभ्यास आपके शरीर को चुस्त दुरुस्त बनाये रखने में सहायक है। एक सप्ताह के निरंतर अभ्यास के बाद सूर्य नमस्कार के लाभ आपको दिखना शुरू हो जाता है।
सूर्य नमस्कार शारीरिक, मानसिक और अध्यात्मिक शक्तियों का स्तोत्र है ऐसे लोग जिन्हें उच्च रक्तचाप की शिकायत रहती है उन्हें सूर्य नमस्कार की क्रिया का अभ्यास नही करना चाहिए।
कैसे करें सूर्य नमस्कार का अभ्यास …
सूर्य प्रत्यक्ष देवता है, और अक्षय उर्जा का भंडार है। सूर्य नमस्कार मात्र एक व्यायाम नहीं है। सूर्य नमस्कार में शरीर की बाहरी क्रियाओं के साथ श्वास-प्रश्वास का भी नियमन किया जाता है। तथा हर आसन में ध्यान का केंद्र बदल जाता है।
सूर्य नमस्कार शारीरिक, मानसिक और अध्यात्मिक तीनो तरह से लाभदायक होता है। सफल जीवन के लिए इन तीनो में समन्वय और संतुलन का होना जरूरी है।
- पहले सीधे सावधान की मुद्रा में और दोनों हाथ प्रणाम करने की मुद्रा में करके खड़े हो और श्वास को सामान्य रखे।
- दूसरी स्थिति में श्वास भरते हुए (INHALE) दोनों हाथों को ऊपर की तरफ ले जाए और पीछे की तरफ झुकें।
- तीसरी स्थिति में श्वास छोड़ते हुए (EXHALE) करते हुए, दोनों हाथों को पैरों के पास रखें।आसन करते समय कोई भी आसन झटके में न करे, लयबद्ध तरीकें से करें।
- चौथी स्थिति में श्वास भरते हुए (।INHALE) बाएं पैर को पीछे ले जाए। दाहिंने पैर को मोड़कर आगे की तरफ रखे, सिर पीछे की तरफ ले जाए और दोनों हाथों की गदेलियाँ जमीन पर और दृष्टि आकाश की तरफ होनी चाहिए।
- पांचवी आसन में श्वास छोड़ते हुए, दाए पैर को पीछे ले जाए। श्वास भरकर कमर और नितम्ब का भाग उठाये, गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी के कंठ कूप में लगाये, इस दौरान दोनों पैरों की एड़ियाँ जमीन पर आपस में मिली होनी चाहियें। इस आसन में शरीर पर्वताकार स्थिति में होता है।इस स्तिथि में यथाशक्ति रुके और श्वास को स्थिर (HOLD BREATH) रखें।
- छठे स्तिथि में श्वास छोड़ते हुए घुटने, छाती , नाक को जमीन से स्पर्श करें ,ध्यान रहे सिर्फ स्पर्श करना है जमीन पर लेटना नहीं है।थोड़ी देर इस अवस्था में रुकें।
- सातवें स्तिथि में श्वास भरते हुए गर्दन को ऊपर उठाये, इसी स्तिथि में फुफकार मारते हुए श्वास को मुंह से छोड़े।श्वाश भरते हुए हाथ के बल शरीर को पेडू तक ऊपर उठाये। दृष्टि आकाश की तरफ रखे। श्वास मुंह से ले, घुटने जमीन को स्पर्श करते रहे और पैरों के पंजे खड़े रहे।इस स्थिति को योग में भुजंगासन कहते है।
- आठवे आसन में श्वाश छोड़ते हुए नितम्ब को ऊपर उठाये नाभि को देखे, दोनों एडिया आपस में मिली हुई और जमीन को स्पर्श करती हुई स्थिति में और दोनों हाथ जमीन पर रखते हुए श्वास को स्थिर करें।
- नवीं स्तिथि में श्वास भरते हुए दाएं पैर के पंजे को दोनों हाथों के बीच में लाये, छाती को खींचकर आगे लाये, गर्दन को पीछे की तरफ ले जाए, टांग सधी हुई रहे और पैर का पंजा खड़ा हुआ रहे इस स्तिथि में कुछ देर स्थिर(HOLD) हो।
- दसवीं स्तिथि में श्वास छोड़ते हुए बाएं पैर को दाए पैर के पास रखे, कमर तक खड़े होकर सिर नीचे की तरफ झुकाए, दोनों हाथो को पैरों के पंजे के पास रखें।
- ग्यारहवीं स्तिथि में श्वास भरते हुए, दोनों हाथो को ऊपर की तरफ ले जाए और पीछे की तरफ यथाशक्ति झुकें।
- बारहवीं स्तिथि में श्वास छोड़ते हुए दोनों हाथों को प्रणाम की स्तिथि में वापस लाये।
इन बारह आसनों का अभ्यास एक चक्र(आवृत्ति) कहा जाता है। धीरे-धीरे इनका अभ्यास करें और प्रतिदिन एक आवृत्ति बढ़ाते जाए, बारह आवृत्ति तक अभ्यास करें।
सूर्य नमस्कार करते समय ध्यान रखने योग्य बातें:
सूर्य नमस्कार सुबह के समय खाली पेट करें और सूर्य नमस्कार करने से पहले सूक्ष्म क्रियाये और यौगिक क्रियायों का अभ्यास कम से कम 30 मिनट तक करें। उसके बाद ही सूर्य नमस्कार के आसनों को करें। सूर्य नमस्कार में श्वास-प्रश्वास का संतुलन महत्वपूर्ण है, इसका ध्यान रखे साथ ही जिन लोगों को स्लिप डिस्क, सर्वाइकल से सम्बन्धित दिक्कते है वो लोग ये आसन न करें।
आसन करते हुए शरीर पर ज्यादा जोर न डाले जितना सहजता से शरीर आसन कर सकें, सिर्फ उतना ही करें।
सूर्य नमस्कार के अभ्यास से एकाग्रता बढती है और मेरुदंड (स्पाइनल कार्ड) में लचीलापन आता है साथ ही जोड़ों के दर्द में लाभ मिलता है।शरीर में रक्त का संचार शुद्ध होता है।कब्ज की शिकायत दूर होती है। मोटापा, कमरदर्द दूर करने के साथ ही सूर्य नमस्कार के आसन शरीर को लचीला बनाते है।सीना, हाथ और शरीर के सारे अंगों को इससे लाभ होता है और मानसिक शांति मिलती है। सूर्य नमस्कार विभिन्न आसनों का योग है इसका प्रभाव सभी अंत ग्रंथियों(Endocrine Glands)पर पड़ता है और शरीर के शक्तिचक्र सक्रीय होते है। इससे पूर्ण स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।