सीरीज “लॉकडाउन के सितारे” पढ़िये, गुमनाम मददगारों की कहानी।
कानपूर निवासी ओमप्रकाश बताते है, कि मेरा बेटा लखनऊ के सिविल अस्पताल में भर्ती था। उसे तीन यूनिट खून की जरुरत थी। दो यूनिट खून का इंतजाम हो चुका था और एक यूनिट खून की जरुरत थी। लखनऊ में घर-परिवार के काफी लोग रहते है, पर समझ नही आ रहा था कि इस मौके पर किसको बुलाये ? क्योकि लॉकडाउन चल रहा था और हर चौराहे पर आने-जाने वाले लोगों को पुलिस रोक रही थी। ऐसे में किसी को अस्पताल बुलाना काफी मुश्किल भरा था। ऐसे में किसी सहयोगी के माध्यम से लखनऊ के युवा समाजसेवी विमिलेश निगम का नम्बर मिला और विमिलेश ने समाजसेवी राहुल सिंह का नम्बर दिया। एक घंटे बाद राहुल सिंह अपने कुछ साथियों के साथ सिविल अस्पताल में हाजिर थे। आते ही उन्होंने खून की व्यवस्था कराई। मै थोड़ा संकोच में था कि इन्हें क्या कहूँ ? क्योकि अस्पताल तक आने में मुझे पता था कि कम से कम पांच पुलिस बैरियर लड़-झगड़ कर पार करके ये लोग आये है। किसी ऐसे इंसान को खून देने के लिए जिसे ये जानते तक नहीं। धन्यवाद, शायद छोटा शब्द होगा मै हमेशा आभारी रहूँगा। जो वक्त पर काम आ जाए वही अपना ….ओमप्रकाश आगे कहते है कि मेरे नजर में ऐसे लोग समाज के वास्तविक “नायक” हैं।
राहुल बताते है,”बचपन गाँव में गुजरा है लोगों की समस्याओं और दिक्कतों को काफी करीब से जाना समझा है। कोई खास उपलब्धि तो नही है मेरे पास लेकिन जितना संभव हो सकता है लोगों के काम आने का प्रयास जरुर करता हूँ।