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Home»महात्मा बुद्धा के प्रेरक प्रसंग»क्या हैं महात्मा बुद्धा के 4 सत्य…?
महात्मा बुद्धा के प्रेरक प्रसंग

क्या हैं महात्मा बुद्धा के 4 सत्य…?

By Archana DwivediUpdated:February 6, 2024
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महात्मा बुद्धा का जन्म नेपाल के तराई मैदानी क्षेत्र में स्थित लुम्बिनी में हुआ था। 29 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपना घर त्याग दिया था। उन्होंने अपना शाही जीवन त्यागकर उन्होंने तपस्या, आत्म-अनुशासन को अपना लिया। गौतम बुद्ध ने बोधगया में एक पीपल के पेड़ के नीचे ज्ञान की प्राप्ति की थी।

गौतम बुद्ध से जुड़े कुछ प्रमुख प्रश्न–:

• गौतम बुद्ध का जन्म कब हुआ था?

•गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति कहां हुई थी?

•महात्मा बुद्ध को किस वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था?

•गौतम बुद्ध ने कितने वर्ष की अवस्था में गृह त्याग किया था?

•गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश कहा दिया था?

गौतम बुद्ध के चार सत्य –:

> गौतम बुद्ध का पहला सत्य था “दुख” अर्थात यह पूरा संसार दुःखमय हैं।

> गौतम बुद्ध का दूसरा सत्य यह था कि “दुःख-समुदय” अर्थात् दुःखों का कारण भी हैं।

>गौतम बुद्ध का तीसरा सत्य “दुःख-निरोध” अर्थात् दुःखों का अन्त सम्भव है।

>गौतम बुद्ध का आखिरी एवं चौथ सत्य था कि “दुःख-निरोध-मार्ग” अर्थात् दुःखों के अन्त का एक मार्ग भी है।

•पहला सत्य – दुख -:

गौतम बुद्ध ने अपने प्रथम सत्य में दुख की उपस्थिति का वर्णन किया है। अपने प्रथम सत्य में वह यह कहते हैं कि पूरा संसार दुःखमय है संसार में हर कोई दुख में है।

गौतम बुद्ध कहते हैं की जन्म से लेकर मृत्यु तक संसार में सिर्फ और सिर्फ दुख है मृत्यु के बाद भी दुखी क्यूंकि मृत्यु के बाद पुनर्जन्म और उसके बाद आपको फिर मृत्यु मिलती है।

महात्मा बुद्ध कहते है “संसार में दुखियों ने जितने आँसू बहाये है, वे महासागर जितने हैं अथवा उससे अधिक ही होंगे।

•दूसरा सत्य – दुःख-समुदय -:

अपने दूसरे सत्य में गौतम बुद्ध या कहते हैं कि समुदाय का अर्थ होता है “उदय “। ठीक इसी प्रकार दुख समुदाय का अर्थ है दुख का उदय होना।

आपको बता दे की गौतम बुद्ध के इस सिद्धांत को ‘द्वादश-निदान’ के भी नाम से जाना जाता है क्योकि इस सिद्धांत में दुःख का कारण पता लगाने के लिए बारह कड़ियों की विवेचना की गयी थी।

यह है वह द्वादश निदान –:

  1. अविद्या,
  2. संस्कार (कर्म),
  3. जरामरण (दुःख)
  4. नामरूप,
  5. उपादान (अस्तित्व का मोह),
  6. स्पर्श (इंद्रियों और विषयों का सम्पर्क),
  7. वेदना (इन्द्रियानुभव),
  8. तृष्णा (इच्छा),
  9. षडायतन (पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ व मन और उनके विषय),
  10. भव (अस्तित्व),
  11. जाति (पुनर्जन्म),
  12. विज्ञान (चेतना),

• तीसरा सत्य – दुःख-निरोध -:

अपने तीसरे सत्य में गौतम बुद्ध दुख को खत्म करने का उपाय बताते हैं अर्थात दुख निरोध का अर्थ है दुख निर्वाण। दुख निरोध का अर्थ है दुख का अंत। निर्वाण का अर्थ जीवन का अंत नहीं है, बल्कि निर्वाण इस जीवन में भी प्राप्त करना संभव है। महात्मा बुद्ध के अनुसार प्रत्येक मानव को अपना निर्वाण स्वयं प्राप्त करना चाहिए।

चौथा सत्य – दुःख-निरोध-मार्ग -:

अपने चौथे सत्य में गौतम बुद्ध बताते हैं कि दुःख-निरोध की अवस्था को प्राप्त करने हेतु एक विशेष मार्ग की चर्चा की गयी हैं ।दुःख-निरोध-मार्ग वह मार्ग है जिस पर चलकर कोई भी मानव निर्वाण को प्राप्त कर सकता है |

इस मार्ग को अष्टांगिक मार्ग या अष्टांग मार्ग कहा जाता हैं।  

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I’m Archana Dwivedi - a dedicated educator and founder of an educational institute. With a passion for teaching and learning, I strive to provide quality education and a nurturing environment that empowers students to achieve their full potential.

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