ज्योतिष क्या है ? ज्योतिष का मुख्य आधार है काल (समय) काल की गणना से ही ज्योतिष प्रारम्भ होता है। और यह काल चक्र ही है। जिसमें संसार गतिमान है।
इसी काल (समय) का वर्णन भगवान ने गीता में
करते हुए कहा कि
“कालः कलयतामहम्” (अध्याय-10/श्लोक-30)
अर्थात् “गणना करने वालों में मैं काल हूँ’
और सर्व विदित है कि काल (समय) का निर्धारण (गणना) सूर्य से होती है, और इसी सूर्य को भी भगवान ने अपना स्वरुप बताया है इस प्रकार –
“ज्योतिषां रविरंशुमान् 10/21 इतना ही नहीं दो अयन होते हैं उत्तरायन और दक्षिणायन इनका भी गीता में भगवान के श्रीमुख से स्पष्ट वर्णन हुआ है।
“अग्निोतिरहः शुक्ल: षणमासः उत्तरायणम्”
– (अध्याय 8/श्लोक -24
“धूमो रात्रिस्तथा कृष्णः षणमासा दक्षिणायनम
– (अध्याय 8/श्लोक 25
श्री भगवान द्वारा गीता में ज्योतिष का स्पष्ट वर्णन है।
भगवान ने सत्ताईश नक्षत्रों का भी वर्णन इस
प्रकार किया ।
“नक्षत्राणामहं शशी “
– (अध्याय10/ श्लोक 2)
सवा दो नक्षत्रों की एक राशि होती है। और सत्ताईस नक्षत्रों की बारह राशियाँ होती हैं।
बारह राशियों पर सूर्य भ्रमण करते हैं एक राशि पर एक मास (महीना) तक स्थित रहते हैं।
महीनों का भी वर्णन भगवान ने इस तरह किया है।
“मासानां मार्गशीर्षोहऽम् “
– (अध्याय 10/ श्लोक 34)
दो महीनों की एक ऋतु होती है, जिसका वर्णन भगवान ने गीता में इस प्रकार किया।
” ऋतूनां कुसुमाकरः”
– (अध्याय 10/ श्लोक 35)
ऋतुओं में, मैं बसंत ऋतु हूँ। लाखों वर्षों का एक युग होता है जिसका वर्णन भगवान
“संभवामि युगे युगे”
– (अध्याय 4/ श्लोक 8)
कहकर किया है। ज्योतिष अक्षय ज्योतिष का कभी क्षय नहीं होता। इसका यह प्रमाण गीता में ही श्री भगवान द्वारा
वर्णित है।
“अहमेवाक्षयः कालः”
(अध्याय 10/ श्लोक 33)
अर्थात् वह अक्षय काल यानि कालों का काल भी मैं हूँ।
इस प्रकार गीता में भगवान के वचनों से स्पष्ट होता है कि ज्योतिष महाप्रलय प्रयन्त अक्षय
“ज्योतिषः वेदानां चक्षुः
क्योंकि यह साक्षात् वेद स्वरुप भगवान का नेत्र है।
डॉ. मधुसूदन पाराशरन