आक्रामकता का शिकार हुए मासूम बच्चों का अंतरराष्ट्रीय दिवस प्रत्येक वर्ष की 4 जून को संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा सन 1982 से मनाने के उद्देश्य के पीछे दुनियाभर के उन बच्चों की पीड़ा को स्वीकार करना था, जो संघर्षों के दौरान शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक शोषण के शिकार होते हैं। 19 अगस्त 1982 को फिलिस्तीन के प्रश्न पर एक आपातकालीन विशेष अधिवेशन में साधारण सभा ने बहुत संख्या में फिलिस्तीनी और लेबनानी बच्चों के इजरायल की आक्रामकता का शिकार बनने के कारण यह दिवस मनाने का निश्चय किया गया था। यह दिवस इन बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है। 1997 में साधारण सभा ने बच्चों के अधिकारों पर 51/77 प्रस्ताव को अंगीकार किया ।
हाल के वर्षो में संघर्ष के क्षेत्रों में बच्चों के खिलाफ़ उल्लंघन की संख्या में वृद्धि देखी गई है और साथ ही संघर्ष के क्षेत्र भी संख्या में बढ़े हैं।
सिएरा लीओन से कोलंबिया, सोमालिया, अफगानिस्तान, कांगो, इराक, माली, नाइजीरिया, दक्षिणी सूडान, सूडान,सीरिया और यमन जैसे देशों तक में संघर्ष हर वर्ष हज़ारो लड़को और लड़कियों की जिंदगी को नकारात्मक व अमानवीय रूप से प्रभावित करते है। ऐसे इलाको में बच्चों को जबरन सेना या सैन्य आंदोलन में शामिल होने को मजबूर किया जाता हैं, उन्हें जबरन बंदी बनाकर उनको यातनायें दी जाती है, उनका यौन उत्पीड़न किया जाता है, उन्हें आधारभूत मानवीय सहायता भी नही नसीब हो पाती, और उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाता हैं यहां तक कि उन्हें मार भी दिया जाता हैं। संघर्ष वाले क्षेत्रों में स्कूलों और अस्पतालों पर हमले किये जाते है। एक रिपोर्ट के मुताबिक सीरियाई संघर्ष में सीरिया के 99 प्रतिशत बच्चे इससे प्रभावित हुए है।
इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष ताज़ा उदाहरण है जहां बच्चों को मानसिक व शारिरिक संताप से गुजरना पड़ रहा है। सैकड़ों बच्चे संघर्ष में दोनों तरफ के मारे गए है और जो बच्चे संघर्ष में बच गए हैं वे मानसिक यन्त्रणा से गुजर रहे हैं। यूएसए टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार विशेषज्ञों का मानना है कि इजरायली और फिलिस्तीनी दोनों ही देशों के बच्चे नकारात्मक अल्प अवधि और लंबी अवधि के मानसिक स्वास्थ्य को अनुभव कर रहे हैं।
बच्चों के सामने सबसे बड़ी चुनौती और बाधा यह है कि बच्चे संघर्ष स्थल को छोड़ पाने में असमर्थ होते है और उनके लिये बच पाना मुश्किल होता है और मानसिक यन्त्रणा तब और भी लंबी और हानिकारक होती है, जब बच्चे ऐसी संघर्ष की खतरनाक जगह से स्वयं को हटा पाने में असमर्थ पाते है।
“फ्रंटियर्स इन साइकाइट्री” जर्नल में छपी एक 2020 अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार फिलिस्तीनी बच्चों में जो गाज़ा पट्टी में रहते है उनमें से करीब 90 प्रतिशत ने व्यक्तिगत ट्रामा का अनुभव किया और बाकी में से 80 प्रतिशत ने ऐसा अनुभव किया।विशेषज्ञ मानते है कि गाजा पट्टी जैसी जगहों में बच्चों के लिए मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल की सुविधा असंभव है।यह स्थिति और दुःखद है और यह इसे ज्यादा बदतर हालात में बदलती हैं।
जब दो देशों में संघर्ष छिड़ता है तो दोनों तरफ के बच्चे ट्रॉमेटिक घटनाओं से रूबरू होते है ,जैसे अचानक बम का फटना और ऐसी ही दुःखद घटनाएं। ऐसे हालातों में बच्चे स्कूल नही जा पाते, और अत्यधिक सुरक्षित जगहों पर ही रहते है। ऐसी स्थितियों में बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य तो खराब होता ही है उनका शारिरिक विकास भी खेलने कूदने के अभाव में अवरुद्ध हो जाता है। अत्यधिक सुरक्षित जगहों में रहने की मजबूरी के कारण संघर्ष वाले इलाकों में बच्चे एक दूसरे से कम ही मिल पाते है जिसके कारण उनका भावनात्मक लगाव नकारात्मक दिशा में विकसित होता हैं जो कि समाज के अंदर बच्चों के स्वस्थ व सतत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने में एक बड़ी बाधा है।
बच्चों के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक विकास के लिए माता पिता और अभिभावकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है लेकिन संघर्ष के इलाकों में जहाँ बच्चे अपने माता पिता व अभिभावकों को खो देते है वहां बच्चे बहुत ही दुःखद दौर से गुजरते है, जिन बच्चों के अभिभावक बच जाते है वे अभिभावक अपने बच्चों के लिए अच्छा करना चाहते है, वे उन्हें शिक्षित करना चाहते है ताकि वे एक बेहतर भविष्य बनाने में कामयाब हो पाए लेकिन संघर्ष के इन क्षेत्रों में रह रहे अधिकांश बच्चों के पेरेंट्स के लिए यह सपना एक हाथ न आने वाला और मायावी ही लगता हैं।
संघर्ष के क्षेत्रों में पिछले वर्षो में बच्चों के प्रति अपराध बढ़े हैं अतः बच्चों के प्रति बढ़ते गंभीर हिंसक अपराधों से चिंतित संयुक्त राष्ट्र के महासचिव ने एक वैश्विक मुहिम #ACTtoProtect लांच की है जिसका उद्देश्य युद्ध से प्रभावित क्षेत्रो में बच्चों की सुरक्षा के प्रति अधिक जागरूकता के कार्यक्रम चलाना है।
संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार संघर्ष वाले देशों और क्षेत्रों में रह रहे करीब 250 मिलियन बच्चों की सुरक्षा के लिए और अधिक ठोस कार्यक्रम लाये जाने की आवश्यकता है, ताकि संघर्षरत इन इलाकों के बच्चों के बेहतर भविष्य को सुरक्षित किया जा सके।
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हरि नारायण मीना, भारतीय राजस्व सेवा के वरिष्ठ अधिकारी
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