1 दिन भगवान श्री कृष्ण की पत्नी सत्यभामा के मन में एक अलग विचार आया। उन्होंने निश्चय किया कि वे भगवान श्री कृष्ण को अपने सभी गहनों से तौलेंगी। जब भगवान श्री कृष्ण को यह बात पता चली तो उन्होंने कुछ नहीं कहा सिर्फ थोड़ा सा मुस्कुराए और वहां से चले गए।
सत्यभामा भगवान श्री कृष्ण ले जाकर तराजू के पलडे़ पर बिठा दि। दूसरे पलड़े पर सत्यभामा ने अपने गहने को रखने लगीं। सत्यभामा के पास गहनों की कोई भी कमी नहीं थी सत्यभामा के पास बहुत सारे गहने थे। लेकिन भगवान श्रीकृष्ण का पलड़ा भारी ही रहा। जब सत्यभामा ने अपने सभी गहने पलड़े पर रख दिया उसके बावजूद भगवान श्री कृष्ण का पलड़ा नहीं उठा तो वह थक हार कर बैठ गई।
तभी कुछ देर बाद वहां पर रुकमणी आई उसके बाद सत्यभामा ने रुक्मणी को सारी बात बताई , तभी रुकमणी तुरंत गई और पूजा की थाल ले आयी। उसके बाद रुक्मणी ने भगवान श्री कृष्ण की पूजा शुरु कर दी। जिस पात्र में भगवान का चरणोदक था, उसे रुक्मणी ने उठाकर गहनों वाले पलड़ों पर रख दिया। रुकमणी के ऐसा करने के कुछ समय पश्चात ही देखते ही देखते भगवान का पलड़ा हल्का हो गया। कई सारे गहनों से जो बात नहीं बनी, वह चरणोदक के छोटे-से पात्र से रुक्मणि ने कर डाला । सत्यभामा किनारे खडे होकर यह सब आश्चर्य से देखती रहीं। सत्यभामा को समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा कैसे हो सकता है।
तभी वहां पर नारद मुनि आया और उन्होंने कहा कि भगवान की पूजा मे सोने चांदी का महत्व नहीं है बल्कि भावना का महत्व होता है। रुकमणी की भक्ति और पूजा भगवान के चरणोदक में समा गई। भक्ति और प्रेम से ज्यादा दुनिया में और किसी चीज का महत्व नहीं है। भगवान की पूजा भक्ति-भाव और प्रेम और श्रद्धा से की जाती है, सोने-चांदी से नही। पूजा का सही ढंग ही आपको भगवान से मिलाता है।