लखनऊ। कोरोना की दूसरी लहर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में न भूलने वाले अनुभव दुख और तकलीफे दे गई है। शायद नजाकत और नफासत के शहर लखनऊ में पहली बार ऐसा हुआ की संक्रमण होने के डर से पड़ोसी के मौत पर पड़ोसी अंतिम संस्कार में शामिल होने से घबराते रहे। संक्रमण के खतरे को देखते हुए प्रदेश सरकार को अंतिम यात्रा में शामिल होने वाले लोगों की संख्या निर्धारित करनी पड़ी।
वही एक बड़ी संख्या में ऐसे लोगों की मौत भी हुई जिन्हें अंतिम समय मे चार कांधे भी नसीब नहीं हुए।इस जानलेवा त्रासदी के बीच लखनऊ शहर के कुछ ऐसे सामाजिक चेहरे उभरकर सामने आए जिन्होंने इस त्रासदी में घर में बैठने के बजाय अपनी जान खतरे में डालकर लोगो की मदद करने का फैसला किया और बिना किसी से आर्थिक सहायता के अपनी जमा पूंजी से लोगो की मदद करते रहे।
साल 2021 के अप्रैल-मई महीने का अगर कही कोई इतिहास लिखा गया तो ये चेहरे निश्चित रूप से समाज के असली नायकों के चेहरे होंगे, और शहर इन्हें याद रखेगा। देश के यूथ मीडिया प्लेटफार्म “इंडिया मित्र” द्वारा “आपदा के असली नायक” सीरिज के तहत आज आपको मिला रहे है लखनऊ के समाज सेवक रंजीत सिंह से जिन्होंने “वन मैन आर्मी” कहावत को चरितार्थ कर दिया है। उत्तर प्रदेश के राजधानी लखनऊ के मनकामेश्वर वार्ड के निवासी रंजीत सिंह एक सामान्य मध्यमवर्गीय परिवार से आते है।
छात्र जीवन से ही सामाजिक कार्यों में रूचि रखने वाले रणजीत को चाहने वाले लोगों की संख्या भी कम नहीं है, साथियों और शुभचिंतको के आग्रह पर रणजीत ने लखनऊ के मन कामेश्वर वार्ड से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर पार्षद का चुनाव लड़े और बहुमत से जीते , कई बार पार्षद रहे रणजीत सिंह इस समय पूर्व पार्षद है और समाज सेवा में सक्रिय है। वर्तमान समय में मनकामेश्वर वार्ड में रणजीत सिंह की पत्नी रेखा रणजीत पार्षद के दायित्व को निभा रहीं है।
समाज सेवा में पहले से ही सक्रिय
लखनऊ में विगत कई वर्षो से गोमती नदी की हर सप्ताह रविवार को नियमित सफाई और लखनऊ शहर में परित्यक्त और पीपल , बरगद वृक्षों के नीचे सड़क के किनारे विसर्जित की जाने वाले मूर्तियों पूजा सामग्री को पूरे शहर से इक्कट्ठा करके उन्हें गोमती किनारे सम्मान जंनक तरीके से विसर्जित कराने का श्रेय भी रणजीत सिंह को जाता है। इन मूर्तियों के विसर्जन के लिए रणजीत सिंह ने नगर निगम लखनऊ के सहयोग से एक विसर्जन स्थल का भी निर्माण कराया हैं। गोमती सफाई के लिए रणजीत सिंह द्वारा शुरू की गयी पहल को लखनऊ के जागरूक नागरिको का भरपूर समर्थन मिला और अब गोमती तट की साफ सफाई के साथ पर्यावरण सेना के लोग गोमती आरती भी कर रहे है।
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मेरे शहर के लोग ऐसे न थे …
रणजीत सिंह बताते है,” मेरे शहर के लोग ऐसे कभी नहीं थे की किसी की मुसीबत में न खड़े हो , हमारे लखनऊ के लोग ऐसे रहे है कि कोई अगर रास्ता पूछ ले तो वक्त हुआ तो कहों घर तक छोड़ कर आये। लेकिन इस बार कोरोना नाम की इस मुसीबत ने लखनऊ का समाजिक ताना-बाना तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी। रणजीत कहते है ,” दुर्भाग्य से ऐसे शवो का अंतिम संस्कार कराना पड़ा जिनके करीबी रिश्तेदार तक अंतिम यात्रा में शामिल नहीं हुए।
इतनी जिन्दगी में पहली बार मैंने और तहजीब के शहर लखनऊ ने शायद पहली बार ऐसा वक्त देखा होगा की जब अर्थी/मिटटी के पीछे चलने वालो लोगों की संख्या 4 से भी कम हुई होगी। रणजीत बताते है,” राजाजीपुरम के एक बतौर सरकारी शिक्षक कार्यरत त्रिवेदी परिवार में एक साथ सबको कोरोना हो गया और परिवार के सदस्य अलग अलग अस्पतालों में एडमिट थे। खुद त्रिवेदी जी भी कोरोंना पाजिटिव थे और इस दौरान उनके माताजी की कोरोना से मौत हो गयी। किसी परिचित के माध्यम से उन्होंने मुझे फोन करके मदद मांगी, उस अंतिम संस्कार में माताजी के शव के साथ सिर्फ मास्टर साहब थे । मास्टर साहब और मैंने मिलकर माताजी का अंतिम संस्कार तो करा दिया पर सामाजिक व्यवस्था कोरोना ने कैसे खत्म किया अर्थी में चार लोग तक नहीं , तकलीफ होती है कि हम कहाँ से कहाँ आ गये है।”
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बिटिया की लाश को घर नहीं ले गये …
रणजीत सिंह ने बताया,” अब तक पचास से अधिक लोगो की अन्तेयष्टि नि:शुल्क शव् वाहन से ले जाकर कराई और ये काम मै खुद करता हूँ , कोरोना संक्रमण के इस दौर में किसी और को साथ लेकर उसकी जान खतरे में डालने से भी कोई फायदा नही।
रणजीत आगे बताते है , कुछ ऐसी घटनाये भूली न जाएँगी, अभी कुछ रोज पहले लखनऊ के मोहनलाल गंज उतराठिया निवासी किशन शुक्ला (बदला हुआ नाम) की 14 साल की बेटी को तेज बुखार आया और घरवालों ने उसे सिविल अस्पताल में भर्ती कराया इलाज के दौरन उसकी मौत हो गयी, सिविल अस्पताल के एक वार्डबॉय (हसन) जिसे जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए मैंने अपना फोन दें नम्बर रखा था उसने फोन करके मुझे इस परिवार के बारें में जानकारी दी।
कुछ देर बाद मै सिविल पहुंचा तो उस परिवार की गरीबी और तंगहाली देख बहुत तकलीफ महसूस हुई, खैर मैंने परिवार के लोग मृतक लड़की की माता-पिता दो लोग और से पूछा की मिटटी को कहाँ ले जायेंगे तो उन्होनो कहाँ की किसी तरह यही अंतिम संस्कार करवा दीजिये , भैसाकुंड ले जाकर अंतिम संस्कार करवाया जिसके बाद कोई साधन उपलब्ध न होने और और उनकी तकलीफ को देखते हुए उनलोगों को उतराठिया तक छोड़ना मुनासिब समझा।
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इस आपदा में भी मानवता को किनारे रख पैसा बनाते रहें लोग …
रणजीत ने बताया की एक घटना सामने आई, “ लखनऊ निवासी मनोज कुमार ( परिवर्तित नाम ) की बेटी और दामाद गुडगाँव में रहते थे, बेटी को कोरोना हो गया तो ससुराल वाले उसे लेकर इलाज के लिए दिल्ली आये लेकिन दिल्ली में कोई अस्पताल नहीं मिल पाया तो मनोज जी ने अपनी बेटी को इलाज के लिए दिल्ली से लखनऊ बुला लिया और बलराम पुर अस्पताल में भर्ती कराया जहाँ तीन-चार दिन भर्ती रहने और इलाज के दौरान बेटी की मौत हो गयी और उसकी एक महीने की बिटिया भी है। फेसबुक से नम्बर लेकर अंकल जी ने मुझे फोन किया ।उनकी बेटी का शव ले जाकर अंतिम संस्कार कराया , लौटते हुए मनोज जी ने बताया की बेटी को बचानें के लिए जमा पूंजी खर्च कर दी , बेटी को दिल्ली से लखनऊ लाने का किराया बिना आक्सीजन किट वाली एम्बुलेंस ने 80 हजार रूपये चार्ज किया।
ये पूछने पर की दो बार कोरोना पाजिटिव होने के बाद भी आप ये काम क्यों कर रहे डर नहीं लगता ? रणजीत सिंह हँसते हुए जवाब देते है “ मुझे ज्यादा कुछ ज्ञान तो नहीं है पर ये पता है कि मौत इन्सान को कहीं भी ढूढ़ लेती है, डरकर बैठना और लोगों की मदद न कर पाने की आत्मग्लानि में कुढने से अच्छा है कि बाहर निकल कर लोगों की मदद की जाए , मौत से किसकी यारी है , आज मेरी कल तेरी बारी है।
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