वैशाख मास की पूर्णिमा के दिन बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था इसलिए गौतम बुद्ध के जन्म के दिन बुद्ध पूर्णिमा मनाई जाती है। महात्मा बुद्ध के लगभग सभी उपदेश पाली भाषा में थे।
प्रमुख प्रश्न-:
~वैशाख पूर्णिमा किस नाम से विख्यात है?
~महात्मा बुद्ध ने तृष्णा की घटना को क्या कहा था?
~महात्मा बुद्ध ने अपने उपदेश किस भाषा में दिये थे?
~ महात्मा बुद्ध के बचपन का नाम क्या था?
~बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश कहाँ दिया था?
बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग –:
भगवान बुद्ध ने 8 अष्टांगिक मार्ग बताए थे सभी अष्टांगिक मार्गों का अर्थ अलग-अलग है आईए जानते हैं किसका क्या अर्थ है….
> सम्यक दृष्टि :
गौतम बुद्ध के चारों सत्य को मानना,हिंसा नहीं करना, जीवों का अंत नहीं करना,चोरी नहीं करना यह सभी शारीरिक सदा चरण है । बुद्ध ने वाणी के भी सदा चरण दिए हैं जैसे -: झूठ ना बोलना,चुगली नहीं करना, कठोर वचन नहीं बोलना आदि। लालच नहीं करना, द्वेष नहीं करना, सम्यक दृष्टि रखना ये मन के सदाचरण है।
> सम्यक संकल्प :
करुणा, मैत्री, मुदिता, समता रखना दुराचरण ना करने का संकल्प लेना चाहिए। धर्म पर चलने का संकल्प लेना । सदाचरण करने का संकल्प लेना।
> सम्यक वाणी :
सत्य बोलने का अभ्यास करना, मधुर बोलने का अभ्यास करना, बौद्ध धर्म इंसान को मुधर वाणी सिखाता है। धर्म चर्चा करने का अभ्यास करना।
> सम्यक कर्मांत :
चोरी ना करना,सभी प्राणियों के जीवन की रक्षा करना, पर स्त्रीगमन ना करना,
बुद्ध ने सत्य के और न्याय के लिए हिंसा को,यदि आवश्यक हो तो जायज ठहराया है।
> सम्यक आजीविका :
अपनी खुद की मेहनत से आजीविका अर्जित करना,पांच तरह के व्यापार कभी ना करना जैसे की -: शस्त्रों का व्यापार, जानवरों का व्यापार, मांस का व्यापार, मद्य का व्यापार, विष का व्यापार.. इसमें गौतम बुद्ध का यह अर्थ हैं की ऐसा कोई भी व्यापार नहीं करना जिससे प्राणी और जीव को किसी भी तरह की परेशानी महसूस हो।
> सम्यक व्यायाम :
जो बातें जो विचार आपके मन में शुभ तथा अच्छे विचारों को उत्पन्न करते हैं ऐसी चीजों को अपने मन में रखना, जो पाप किया उन पापों के दुष्परिणामों को सोचना, गलत विचार मन में है तो निग्रह करना उन्हें दबाना उन्हें अपने मन से दिमाग से दूर करना।
> सम्यक स्मृति :
कायानुपस्सना, वेदनानुपस्सना, चित्तानुपस्सना, धम्मानुपस्सना, ये सब मिलकर विपस्सना साधना कहलाता है। इसका अर्थ यह होता है कि -: अपने आप को ठीक तरह से देखना अपने अंदर की कमियों को जानना एवं पहचाना।
ये जानना की राग-द्वेष रहित मन ही एकाग्र हो सकता है।
> सम्यक समाधि :
उत्पन्न पाप धर्मो के विनाश मे रुचि लेना,अनुत्पन्न कुशल धर्मो कि उत्पत्ति मे रुचि, उत्पन्न कुशल धर्मो के वृद्धि मे रुचि लेना, इन सबको शब्दशः पालन करने से जीवन सुखमय होगा,