लखनऊ। मदद करने के लिए साधन और सुविधाओं का इन्तजार करना बेईमानी है, जब समाज मुसीबतों और संक्रमण से गुजर रहा हो, तो जो जिससे जैसे बन पड़े करना चाहिये। मै और मेरे पति दोनों कोरोना पॉजिटिव थे। डाक्टरों की सलाह के अनुसार बाहर निकलना मना था, पुराने संबंधो और डिजिटल माध्यमों से जितना बन पड़ा वो किया गया। जो हो सकेगा आगे भी करने का प्रयास जारी रहेगा।
अगर समाज को संयुक्त परिवार समझ कर एक दूसरें की मदद की जाए तो ये वक्त भी निकल जायेगा और फिर से एक बेहतर कल आएगा।
कोविड-19 त्रासदी पूरी दुनिया के लिए एक सबक है जब लोग अपनों का सही से अंतिम संस्कार तक नहीं कर पाये, देश सहित पूरे विश्व में हजारों लाखों की संख्या में बच्चे अनाथ हुए, कोरोना त्रासदी ने पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था को चोट पहुचाई और इसी समय में कुटिल, लालची लोगों ने ऑक्सीजन, दवाइयों और यहाँ तक की कफन में भी कालाबाजारी की। लेकिन इस सबके बीच कुछ अच्छे चेहरे भी है जिन्होंने यथाशक्ति लोगों की मदद करने का प्रयास किया।
देश के सबसे बड़े यूथ मीडिया प्लेटफार्म “इंडिया मित्र डाट कॉम” द्वारा चलाई जा रही सीरिज “आपदा के असली नायक” के अंतर्गत हम आपको मिलाते है समाज के असली नायको-नायिकाओं से जिन्होंने अपनी स्थितियों और क्षमताओं से आगे बढ़कर बिना कोई बहाना बनाए समाज की वेदना को अपनी वेदना समझते हुए लोगों की नि:स्वार्थ भाव से मदद की और दूसरें लोगों को इसके लिए प्रेरित किया।
हिंदी के इतिहास में “मिश्र बंधु” का एक स्वर्णिम युग रहा है, इनके बिना हिंदी की पढाई,पूरी नहीं मानी जाती। इसी परिवार के तीसरी पीढ़ी मिश्र बंधु परिवार की भांजी मानवी द्विवेदी लखनऊ के अलीगंज क्षेत्र में निवास करती है। एम्.ए, बीएड प्रथम श्रेणी में पास मानवी “श्री इंटर प्राइजेज” फार्म का संचालन करती है और साथ ही समाज सेवा के कार्यों में बढ़-चढ़ कर हिस्सेदारी लेने में रूचि रखती है।
बीस से ज्यादा लोगों को दिलाया अस्पतालों में बेड … कराई आक्सीजन की व्यवस्था
मानवी बताती है,अप्रैल-मई महीने में दोस्त,नातेदार, रिश्तेदार, उनके परिचित लोगों के बेतहाशा मदद के लिए फोन आये, हालांकि मै किसी पावरफुल पोस्ट पर नहीं हूँ ,पर कंपनी जो की इलेक्ट्रिक आइटम, कैमरे आदि की सप्लाई करती है, और वेबसाईट निर्माण का कार्य करती है इसके माध्यम से लखनऊ में एक अच्छा नेटवर्क है, उसके माध्यम से लोगों को बेड-ऑक्सिजन दिलाने का काम किया , मेरे पति प्रमोद द्विवेदी जी, जो की लगभग 20 सालों से राजनितिक रूप से सक्रिय है उनके परिचित और शुभचिंतको ने भी इस मौके पर मदद की और हम लोगों की मदद कर पाए।
बहुत से लोग ऐसे भी रहे जिनकी चाहते हुए भी मदद नहीं की जा सकी। क्योंकि 15 अप्रैल से लेकर मई के प्रथम सप्ताह तक कोरोना की विनाश लीला इतनी तेज थी की लखनऊ के अस्पतालों में बेड नहीं, जहाँ बेड थे वहां आक्सीजन नहीं समस्याओं का बुरा दौर था जो कि हमेशा एक बुरे स्वप्न की तरह जिन्दगी में बना रहेगा।
मदद की तो मदद मिली भी …
मानवी बताती है,
मै और मेरे पति दोनों कोरोना पॉजिटिव थे, ठीक होने के बाद भी डाक्टर ने बाहर निकलने से कुछ दिन तक मना किया था, ऐसे में जिन लोगों के फोन आ रहे थे उनकी मदद न कर पाने की स्थिति में एक मन में एक अपराध बोध सा बनता जा रहा था।
ऐसे में मुझे लगा की अगर बाहर नहीं निकल सकते तो फोन और डिजिटल माध्यमों से लोगों की मदद की जा सकती है और जो परिचित, मित्र, रिश्तेदार, शुभचिंतक अच्छे पदों पर उनसे मदद मांगी जा सकती है। और फिर रोज लगभग 6 घन्टे यही क्रम बन गया। सोशल मिडिया पर आये मदद वाले पोस्ट को चेक किया। जो लोग वास्तव में काम के थे उनसे मदद मांगी , सरकारी प्राइवेट अस्पतालों की वेबसाइट से नम्बर निकाल कर बात की , जानने वाले लोगों से फोन करके मदद मांगी जिससे भी जैसे भी मदद मिल सकती थी। जरूरत मंद लोगों के लिए मदद मांगी और मदद मिली भी।
राज्यसभा सांसद डॉ अशोक बाजपेई, विधान परिषद् सदस्य उमेश द्विवेदी, विधायक डॉ.नीरज बोरा जी, कई बड़े पदों पर कार्यरत डाक्टर, अस्पतालों के संचालको और पत्रकारों ने भी मेरे इस कार्य में मदद की जिनकी वजह से थोड़ी बहुत लोगों की मदद हो पायी।
एक सरकारी संस्था में कार्यरत सुदेश बताते है,
मुझे ऑक्सीजन सिलेंडर की जरूरत थी कही पैसे देने के बावजूद भी नही मिल पा रहा था, मेरे एक मित्र है उन्होंने मानवी जी से मेरे लिए बात की और उन्होंने मेरे लिए बिना जान पहचान के कोशिश की और जैसे भी दिलाया हो एक आक्सीजन सिलेंडर निशुल्क दिलवा दिया , मै आभारी हूँ जिनसे ज्यादा उमीदे थी वो काम नहीं आये और जिन्हें जानते नहीं थी उन्होंने मदद कर ,ये त्रासदी बहुत सारे सबक दे गयी है
लखनऊ के हमराह संस्था के अध्यक्ष अजीत सिंह बताते है,
मेरे पिताजी बहुत बीमार थे उस समय मानवी जी ने जिस तरह उन्हें, भर्ती कराने में मदद की एक बेटी ही कर सकती है। यद्यपि बहुत कोशिश और प्रयासों के बाद भी पिताजी बच न सकें लेकिन उस समय जो सहायता मिली उसे करने के लिए इंसान में मानवी जी जैसी संवेदना हो तभी संभव है, उनकी किसी भी मुहीम में मेरा शामिल हो पाना सौभाग्य का विषय है