भारत का उपराष्ट्रपति संविधान के अनुसार देश का दूसरा सबसे बड़ा संवैधानिक पद है। यह पद न केवल प्रतिष्ठा का प्रतीक है, बल्कि राज्यसभा के सभापति के रूप में इसकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है।
उपराष्ट्रपति का कार्यकाल और चुनाव का समय
उपराष्ट्रपति का कार्यकाल पाँच वर्ष का होता है। कार्यकाल समाप्त होने से पहले ही निर्वाचन आयोग चुनाव की तारीख तय करता है ताकि पद कभी रिक्त न रहे। यदि इस्तीफा, निधन या किसी कारणवश पद खाली हो जाए तो जितनी जल्दी संभव हो सके, चुनाव कराया जाता है। हाल ही में 9 सितंबर 2025 को हुए चुनाव में सी. पी. राधाकृष्णन भारत के नए उपराष्ट्रपति बने हैं।
चुनाव की प्रक्रिया
उपराष्ट्रपति का चुनाव लोकसभा और राज्यसभा के निर्वाचित तथा नामित, सभी सदस्य मिलकर करते हैं। इसे “निर्वाचक मंडल” (Electoral College) कहा जाता है। मतदान गुप्त मतपत्र (secret ballot) से होता है, ताकि प्रत्येक सांसद स्वतंत्र रूप से वोट दे सके। जिस उम्मीदवार को बहुमत प्राप्त हो जाता है, वही देश का उपराष्ट्रपति चुना जाता है।
उम्मीदवार की योग्यता
उपराष्ट्रपति पद पर चुने जाने के लिए कुछ बुनियादी शर्तें पूरी करनी आवश्यक हैं:
1. उम्मीदवार भारत का नागरिक होना चाहिए।
2. उसकी न्यूनतम आयु 35 वर्ष होनी चाहिए।
3. वह व्यक्ति राज्यसभा का सदस्य चुने जाने के योग्य होना चाहिए।
4. नामांकन के लिए कम से कम 20 सांसदों का समर्थन और 20 सांसदों का अनुमोदन अनिवार्य है।
5. चुनाव जीतने के बाद यदि उम्मीदवार पहले से सांसद है तो उसे वह पद छोड़ना होता है।
उपराष्ट्रपति की भूमिका
उपराष्ट्रपति का सबसे प्रमुख कार्य राज्यसभा के सभापति के रूप में कार्य करना है। संसद के इस उच्च सदन की कार्यवाही को अनुशासित और व्यवस्थित रूप से चलाना उनकी जिम्मेदारी होती है। यदि राष्ट्रपति किसी कारणवश कार्य करने में असमर्थ हों, तो उपराष्ट्रपति कार्यवाहक राष्ट्रपति का दायित्व भी निभाते हैं।
निष्कर्ष
भारत का उपराष्ट्रपति पद केवल एक संवैधानिक औपचारिकता नहीं है, बल्कि यह देश की संसदीय व्यवस्था का अभिन्न हिस्सा है। चुनाव प्रक्रिया, योग्यता और जिम्मेदारियाँ मिलकर इसे लोकतंत्र का मजबूत स्तंभ बनाती हैं।