सार
स्कूलों में बच्चों को इतिहास के बारे में तो काफी कुछ पढ़ाया जाता है परंतु शास्त्रीय इतिहास के बारे में नहीं पढ़ाया जाता है जिसकी वजह से काफी बच्चे अपने शास्त्रीय ग्रंथो से अनभिज्ञ रह जाते हैं। लोग उच्च स्तर की डिग्री तो प्राप्त कर लेते हैं परंतु उन्हें अपने धर्म के के बारे में कुछ भी पता नहीं होता है। यदि हम बात करें हिंदू में माने जाने वाले सनातन धर्म की तो लोग रामायण महाभारत के विषय में भी कम या नहीं के बराबर जानते हैं ,इस वजह से भारत सरकार ने यह तय किया है कि अब विद्यालयों में रामायण महाभारत की शिक्षा भी बच्चों को दी जाएगी । पाठ्यक्रम में रामायण महाभारत शामिल किया जाएगा।
विस्तार
एनसीईआरटी की एक उच्च स्तरीय समिति बैठी जिसमें इस बात की सिफारिश की गई कि पाठ्यक्रम में रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्य को भी शामिल किया जाए क्योंकि बच्चों के लिए जितना इतिहास ,भूगोल, नागरिक शास्त्र और अर्थशास्त्र जरूरी है उतना ही बच्चों को अपने आध्यात्मिक ग्रंथो का ज्ञान होना भी जरूरी है ।
एनसीईआरटी ( नेशनल काउंसलिंग का एजुकेशन रिसर्च एंड ट्रेनिंग) की बैठक में समिति ने रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्य को सोशल साइंस की किताबों में शामिल करने की सिफारिश की है । स्कूली सिलेबस में बदलाव की प्रक्रिया के तहत एनसीईआरटी ने तमाम विषयों के साथ-साथ सोशल साइंस में बदलाव के लिए भी समिति बनाई थी ।इस कमेटी में इन दोनों महाकाव्य को शामिल करते हुए बताया गया है कि स्कूल कैंपस में दीवारों पर संविधान की प्रस्तावना भी लिखी जानी चाहिए। जिससे बच्चों को अपने संविधान के बारे में प्रत्यक्ष रूप से ज्ञान प्राप्त होगा। इसके अलावा इस बात की सिफारिश भी की गई कि यह नियम देश के सभी स्कूलों सभी बॉर्डर में शामिल किया जाना चाहिए। लगातार प्रयास किया जा रहा है कि बच्चों के पाठ्यपुस्तकों में भारतीय ज्ञान प्रणाली वेदों और आयुर्वेद को भी शामिल किया जाए ताकि बच्चों को इसका ज्ञान भी प्राप्त हो सके ।अब बस एनसीईआरटी को इन सिफारिश पर फैसला लेना बाकी है।