Gold River Of India:। भारत देश की एक ऐसी नदी जहां पर लोगों को मिलता है बहते पानी में सोना यहां के लोगों की कमाई का यही है एकमात्र जरिया ।
भारत में कई प्रकार की नदियां बहती है य यदि इनकी संख्या देखें तो देश में लगभग 400 नदियां बहती हैं इसमें छोटी-बड़ी सभी नदियां शामिल है।
इन सभी नदियों की अपनी एक विशेषता है एक नदी एक दूसरे से कही नहीं जाती अवश्य मिलती है इसमें से कुछ बड़ी नदियां जिन का अपना एक उद्गम स्थल है वही छोटी नदियां उसमें अलग से जाकर के विलय हो जाती है।
लेकिन आज दोस्तों हम आपसे बात करने वाले हैं एक नदी के बारे में जिसके बारे में आप सुनकर हैरान हो जाएंगे क्योंकि ये नदी अन्य सभी नदियों में अलग नदी है हम आपको बताने जा रहे हैं एक ऐसी नदी के बारे में जो सोने की नदी कहीं जाती है जी हां , यहां बहते पानी में मिलता है सोना
किस नदी में सोना कहां से आता है?, क्यों बहता है इस नदी में सोना ?, यह सब अभी भी एक रहस्य है वैज्ञानिकों ने इसका पता लगाने का अथक प्रयास किया परंतु वे इसका पता नहीं लगा सके।
जानते हैं कि किस राज्य में बहती है यह नदी
हम आपको बता दें कि यह नदी हमारे भारत में झारखंड राज्य में बहने वाली नदी है जिसे स्वर्णरेखा नदी के नाम से जाना जाता है इस नदी में स्वर्ण के कण बहने के कारण इसे स्वर्णरेखा नदी का नाम दिया गया।
क्या है यहां के लोगों की आय का जरिया
झारखंड में बहने वाली या नदी की यहां के लोगों की आय का एकमात्र जरिया है क्योंकि यहां पर ज्यादातर आदिवासी लोग निवास करते हैं झारखंड में कुछ जगह ऐसी भी है जहां के स्थानीय आदिवासी इस नदी में सुबह जाते हैं और दिन भर ले छानकर सोने के कणों को इकट्ठा करते हैं जिससे इनके परिवार का भरण पोषण होता है वह जीवन यापन करने का यही मात्र एक साधन है। इस कार्य में आदिवासियों को बहुत अधिक परिश्रम करना पड़ता है क्योंकि रेत से सोने के सूक्ष्म कणों को अलग करना आसान नहीं है।
इस काम में आदिवासियों की कई पीढ़ियां लगी हुई है तमाड़ और सारंडा जैसे इलाके ऐसे हैं जहां पुरुष, महिलाएं और बच्चे भी सुबह उठकर नदी से सोना बीनकर और उसे इकट्ठा करने के लिए जाते हैं।
जाने क्या है स्वर्णरेखा नदी का उद्गम स्रोत
द गोल्ड रिवर ऑफ इंडिया अर्थात स्वर्णरेखा नदी के नाम से जानी जाने वाली यह नदी जो झारखंड रांची जिले में बहती हे या झारखंड के राज्य से जिस गरीब 16 किलोमीटर दूर है। इस नदी से जुड़ी एक हैरान कर देने वाली बात बताई जाती है कि रांची स्थित यह नदी अपने उद्गम स्थल से निकलने के बाद उस क्षेत्र के किसी भी अन्य नदी में जाकर नहीं मिलती है।
स्वर्णरेखा नदी कहां जाकर विलीन हो जाती है
झारखंड, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में यह नदी बहती है यह नदी इन तीनों राज्यों से बहते हुए अंततः बंगाल की खाड़ी में जा गिरती है अर्थात उस में विलीन हो जाती है।
क्या है बहते पानी में सोने की सच्चाई का असली रहस्य
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार जहां रिसर्च कर चुके कई भू वैज्ञानिकों इसका पता लगाया है परंतु असली सच्चाई का पता लगना असंभव सा हो गया परंतु यह बात सामने आई है कि यह नदी चट्टानों से होकर बहती है वहां पर इसका कोई न कोई स्रोत अवश्य होगा जिसके कारण इस नदी में कुछ होने के कारण वह कर आ जाते हैं ,जो जाकर रेत में मिल जाते हैं। बहुत सारी रेत में मात्र एक या दो ही सोने के कण प्राप्त होते हैं। इसका तात्पर्य यह हुआ कि इसमें सोने के कणों का अनुपात कम होता है किंतु इनका मूल्य अधिक होता है।
हालांकि इस बात में कितनी सच्चाई है इस बात का पता अभी नहीं लग सका है।
कहां से आती है इस नदी में सोने के कण? आइए जाने
स्वर्ण रेखा नदी की सहायक नदी करकरी है । लोगों का मानना कीकर करी नदी में सोने के कुछ कर देखने को मिलते हैं जबकि कुछ लोगों का कहना है कि स्वर्णरेखा नदी में जो सोने के कल मिलते हैं वह करकरी नदी से ही बह कर आते हैं।
रेत के कणों से सोना निकालना कितना होता है कठिन
रीत से सोने की कणों को निकालना आसान नहीं होता है बल्कि इसमें कठिन परिश्रम करना पड़ता है। इस नदी की रेत से सोना इकट्ठा करने के लिए यहां के लोगों को आदिवासियों के परिवारों को दिन भर कड़ी मेहनत करनी पड़ती है सोने की कणों को ढूंढने के लिए वे सुबह यहां आ जाते हैं और दिन भर पूरा परिवार मिलकर सोने के कणों को ढूंढने का काम करते हैं।
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दिन भर काम करने के बाद आमतौर पर एक व्यक्ति एक या दो सोने के कणों को ही प्राप्त कर पाता है एक कण को बेचकर भी 80 से ₹100 लगभग कमा लेते हैं क्योंकि यही उनकी आय का प्रमुख स्रोत है इसलिए पूरा परिवार इस कार्य में लगा रहता है जिससे उनकी कुछ आमदनी हो जाती है।
दिन में कितना सोना प्राप्त हो जाता है? यहां के लोगों को
झारखंड जिसका सृजन 15 नवंबर सन 2000 को बिहार से अलग करके किया गया था अर्थात इसको बिहार से एक अलग राज्य घोषित किया गया पहले या बिहार राज्य का ही एक हिस्सा था। यहां पर बहने वाली स्वर्णरेखा नदी यहां के लोगों के लिए एक वरदान है क्योंकि वही इनकी जीविका का प्रमुख साधन बन गई है। दिन भर मेहनत करने के पश्चात यहां के आदिवासी समूह को समूह के लोगों को और स्तन इतने कर प्राप्त हो जाते हैं कि वह इसे बेचकर महीने में लगभग 5000 से ₹8000 प्राप्त कर लेते हैं।