जैसा कि आपने सुना होगा कि “हीरे की पहचान तो सिर्फ एक जोहरी ही कर पाता है हर किसी को हीरे की पहचान नहीं पता होती है । ” तो आज यह इंडिया मित्र प्लेटफार्म आपको एक ऐसी कहानी से रूबरू कराने वाला है जिसमें ऐसे ही एक हीरे की बात की गई है जिसे अपने ही जोहरीके द्वारा पहचाना नहीं गया । आइए जानते हैं क्या है पूरी कहानी
बात तब की है जब भारत देश विभाजित नहीं हुआ था अर्थात यह घटना अविभाजित भारत की है यह घटना है पाकिस्तान मुल्तान जनपद के रायपुर गांव की जहां पर गणपत राय पुराना नाम का एक व्यक्ति था जिसका पूरा परिवार उसी गांव में कई सालों से रहता था गणपत राय व्यवसाय लेखपाल थी गांव में भी सब से पढ़े लिखे व्यक्ति माने जाते थे जब भी किसी व्यक्ति को किसी विषय पर चलाया जानकारी प्राप्त करनी होती थी तो प्रत्येक व्यक्ति गणपत राय के पास ही जाता था लोग अपनी जमीन जायदाद के विषय में भी पूछताछ करने के लिए उनके के पास ही जाते थे।
परंतु गांव की स्थिति इतनी खराब थी कि बच्चों की शिक्षा के लिए उचित प्रबंध नहीं था यहां तक विद्या गांव में एक माध्यमिक विद्यालय तक नहीं था यदि शिक्षक को , उसे वजीफा भी मिला।
12 वर्ष की उम्र में बच्चे की पिताजी का निधन हो गया उसके परिवार में पिता जी के अलावा कमाने वाला कोई और नहीं था पिताजी की के पश्चात बच्चा एकदम से टूट गया अब कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह पढ़ाई करें या घर की जिम्मेदारियों को संभाले परंतु वह हिम्मत नहीं हरा और संघर्ष करता रहा डटकर करता और फिर रात में पढ़ाई करता था।
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पिता के निधन के बाद हिम्मत ना हारते हुए या बच्चा आगे बढ़ता रहा एवं इसके बावजूद इस बच्चे ने अपने दम पर आगे बढ़ते हुए इंग्लैंड में पीएचडी की इस बीच देश का विभाजन हो गया और भारत अविभाजित भारत से एक विभाजित भारत बन गया यह बात है 15 अगस्त 1947 के पहले की।
देश के विभाजन के बाद तो परिवार को मुल्तान छोड़ना पड़ा विस्थापित होकर सब लोग दिल्ली के शरणार्थी शिविर में रहने लगे उसने भी यही नौकरी करने का निर्णय कर लिया। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस नेशनल बायोलॉजिकल इंस्टीट्यूट ,भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान और रासायनिक प्रयोगशाला सहित दिल्ली विश्वविद्यालय तक में अध्यापन के लिए आवेदन किया लेकिन हर जगह निराशा मिली कहीं भी इसको कोई ऐसा स्थान नहीं मिला नहीं मिला जहां इसके योग्यता को सराहा जाए।
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ऐसा माना जाता है कि जब व्यक्ति को अपनी ही परिवार अपने ही घर के लोग ना पहचान पाए उसकी योग्यता को ना समझ पाए तो उसे दूसरे की शरण लेनी पड़ती है । ऐसा ही कुछ इस व्यक्ति के साथ हुआ जब भारत ने इसकी योग्यता को नहीं समझा उसकी योग्यता को परखने का प्रयास नहीं किया तो उसे दूसरे देश का रुख लेना पड़ा। यहां कहीं भी नौकरी न मिलने के कारण इस व्यक्ति ने इंग्लैंड की ओर जाना उचित समझा वहां जाकर नौकरी करने का निर्णय लिया इंग्लैंड जाकर वह व्यक्ति ने कैंब्रिज में प्रोफेसर ताड के साथ रिसर्च का कार्य करने लगा। उसका कार्यवाहक 11 लोगों को काफी अच्छा लगा उन्होंने उसको काफी सराहा उसकी प्रशंसा की उसके पश्चात उसकी रेसर से प्रभावित होकर कनाडा की एक शोध संस्थान ने उसे अपना चेयरमैन नियुक्त किया वहां पर इंजन पर किए गए शोध परिणामों को देखकर अमेरिका के एंजॉय रिसर्च इंस्टिट्यूट ने उसे अपना डायरेक्टर बना दिया और अमेरिका की नागरिकता प्रदान कर दी गई ।
आगे इसी घटना को बढ़ाते हैं वह हम आपको बताएं कि यह वही व्यक्ति है जिसने जींस पर खोज शुरू की । इस खोज के लिए उसे 1968में औषधि और शरीर क्रिया विज्ञान में इसे मेडिसिन के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। परंतु इस खोज का श्रेय अमेरिका को ही जाता है क्योंकि हरगोविंद खुराना को अब अमेरिका की नागरिकता प्राप्त हो थी ।
“जिस हीरे को भारत ने नहीं पहचाना, उस हीरे को पहचान लिया अमेरिका ने ।
और बना दिया उसे एक साधारण से, असाधारण इंसान ।”
2 वर्ष पूर्व अमेरिकी नागरिकता लेने के कारण या पुरस्कार अमेरिका के नाम हो गया यदि भारत ने समय रहते अपनी हीरे की पहचान कर ली होती तो शायद आज या खोज भारत के नाम होती है परंतु उस समय भारत ने इस बात को नहीं समझा कि प्रत्येक व्यक्ति की योग्यता अपना एक महत्व रखती है योगिता को परखा जाना अत्यंत आवश्यक है लेकिन भारत ने अपनी खुशियों का इजहार करते हुए 1969 उसे पदम विभूषण से सम्मानित किया।
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तो दोस्तों आप के धैर्य को बताते हुए हम आपको बता दें कि या होनहार बालक कोई और नहीं बल्कि डॉ हरगोविंद खुराना थे । भारत अपने इस नगीने को समय रहते पहचान नहीं पाया मगर पश्चिम देश ने इसकी प्रतिभा को पहचान लिया
आज वर्तमान में भी हमारे भारत में कई ऐसे अद्भुत हीरे हैं जिनकी पहचान भारत नहीं कर पा रहा है यही हीरे आगे चलकर किसी दूसरे देश में जाकर कि जब अपनी पहचान प्राप्त करते हैं तो वह उसी देश को गौरवान्वित महसूस भी कराते है । इसलिए भारत को अपने होनहार हीरो की पहचान के लिए बेहतर जोहरी की तलाश करनी चाहिए ताकि उनके हीरे अपनी चमक से अपने देश को गौरवान्वित महसूस करा सके तथा अपनी योग्यता के महत्व बरकरार रखने के लिए को उन्हें किसी दूसरे देश ना जाना पड़े।