भगवान बुद्ध सदविचारों का प्रचार करने के बाद राजगृह लौटे तो वहां क्या देखा कि वहां सन्नाटा था। उनके अनुयायी बताया कि भगवान एक राक्षसी को बच्चों का मांस खाने की लत लग गई है। नगर के अनेक बच्चे गायब हो गए हैं। इसी चीज की वजह से कुछ नागरिकों ने नगर को छोड़ दिया और कुछ अपने घर में दुबक के बैठे हैं। भगवान बुद्ध को यह भी पता चला कि उस राक्षसी के बहुत से बच्चे हैं।
1 दिन बुद्ध राक्षसी की अनुपस्थिति में खेल के बहाने उसके छोटे बच्चों को अपने साथ ले आए। राक्षसी जब अपने घर पहुंची तो उसे अपने बच्चे नहीं दिखे और व्याकुल हो गई। सबसे छोटा होने के कारण उसका उस बालक से अधिक लगाव था। बेचैनी में उसने अपनी रात काटी सुबह जोर-जोर से उसका नाम पुकार कर उसे ढूंढने लगी। बिछोह के दर्द से तड़प रही थी। अचानक उसे सामने से बुद्ध गुजरते हुए दिखाई दिए। उसने सोचा कि बुद्ध सच्चे संत हैं वह अंतर्यामी भी होंगे। वह उनके पैरों में गिर कर बोली भगवान यह बताइए कि मेरा पुत्र है। उसे कोई हिंसक पशु ना खा पाए ऐसा आशीर्वाद दीजिए। बुद्ध ने कहा इस नगर के अनेक बच्चों को तुमने खा लिया है। कितनी ही इकलौती संतानों को तुमने नहीं बक्शा। क्या तुमने कभी सोचा है कि उनके माता-पिता कैसे रह रहे होंगे। बुद्ध का वचन सुनकर वह पश्चाताप की अग्नि में जलने लगी। उसने संकल्प किया कि वह कभी हिंसा नहीं करेगी। भगवान बुद्ध ने समझाया की वास्तविक सुख लोगो को दुख देने और उनका खून बहाने मे नहीं है अपितु उन्हें सुख देने में है। उन्होंने उसका बच्चा उसे वापस कर दिया।