होलिका दहन एक पौराणिक और धार्मिक पर्व है, जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। इसे फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन लोग लकड़ियों, उपलों और कचरे का ढेर लगाकर अग्नि प्रज्वलित करते हैं, जिसे “होलिका दहन” कहा जाता है।
होलिका दहन क्यों मनाते हैं?
होलिका दहन की कहानी भक्त प्रह्लाद और उसकी बुआ होलिका से जुड़ी है। प्रह्लाद भगवान विष्णु के परम भक्त थे, लेकिन उनके पिता हिरण्यकश्यप ने विष्णु पूजा का विरोध किया।

हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका, जिसे आग में न जलने का वरदान था, से प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठने को कहा। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहे, और होलिका जलकर भस्म हो गई। तभी से यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है।
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त कैसे तय होता है?
होलिका दहन का मुहूर्त पंचांग के आधार पर निकाला जाता है। इसमें भद्रा काल और अशुभ समय से बचना जरूरी होता है। शुभ मुहूर्त आमतौर पर प्रदोष काल (शाम के समय) और पूर्णिमा तिथि के अनुसार निर्धारित होता है।
होलिका दहन 2025 में 13 मार्च को मनाया जाएगा। पंचांग के अनुसार, पूर्णिमा तिथि 13 मार्च की सुबह 10:35 बजे से 14 मार्च की दोपहर 12:23 बजे तक रहेगी। इसी अवधि में भद्रा काल भी रहेगा, जो 13 मार्च की सुबह 10:35 बजे से रात 11:26 बजे तक है。
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भद्रा काल में होलिका दहन करना अशुभ माना जाता है। इसलिए, शुभ मुहूर्त 13 मार्च की रात 11:26 बजे के बाद से शुरू होगा और 14 मार्च की रात 12:18 बजे तक रहेगा。