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प्रत्येक देश का अपना एक संविधान है परंतु भारत का संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान माना जाता है क्योंकि इसमें 395 अनुच्छेद, 12 अनुसूचियां एवं 22 भाग सम्मिलित हैं इस प्रकार से विश्व का सबसे बड़ा संविधान भारत का संविधान है, व सबसे छोटा लिखित संविधान अमेरिका का संविधान माना जाता है।
किसी भी अन्य लिखित संविधान के समान भारतीय संविधान में भी परिस्थितियों एवं आवश्यकताओं के अनुरूप संशोधित करने के लिए एक व्यवस्था रखी गई है । भारत का संविधान ना तो ब्रिटेन के भारतीय बहुत ही लचीला संविधान है जिसमें आसानी से संशोधन किया जा सके और ना ही अमेरिका के बाद अत्यंत कठोर, जिसमें संशोधन किया है ना जा सके बल्कि यह दोनों का मिश्रण है ना तो अधिक लचीला है और ना ही अधिक कठोर।
संविधान के भाग 20 के अनुच्छेद 368 में संसद को संविधान एवं इसकी व्यवस्था में संशोधन करने की शक्ति प्रदान की गई है। यह संसद अपने विधाई शक्ति का प्रयोग करते हुए इस संविधान के किसी उपबंध का परिवर्तन परिवर्तन या नियोजन के रूप में संशोधन कर सकती है।
गोलकनाथ बनाम पंजाब( 1967 ) के मामले को पलटते हुए केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य( 1973) के मामले में इस बात को स्पष्ट करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने घोषणा की, कि संविधान में संशोधन तो होगा परंतु उसका मूल ढांचा परिवर्तित नहीं होना चाहिए। अनुच्छेद 13 में संशोधन संविधान संशोधन नहीं माना जाएगा।
यह अनुच्छेद 368 भारत के संविधान की पवित्रता को सुनिश्चित करता है और भारत की रूलिंग पार्टी की मनमानी शक्ति को सीमित करता है। यदि आप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं , तो संविधान संशोधन की सूची आपके लिए अत्यंत महत्वपूर्ण साबित होने वाली है तो आइए जानते हैं क्या है? वे भारतीय संविधान में अत्यंत महत्वपूर्ण संविधान संशोधन –
महत्वपूर्ण संविधान संशोधन सूची
प्रथम संविधान संशोधन 1951
यह संविधान का प्रथम संशोधन था। इसमें नवीन अनुच्छेद अर्थात् 31 क और 31ख को संविधान में अंतः स्थापित किया गया है। इसके द्वारा संविधान में एक नवीन अर्थात् नौवीं अनुसूची जोड़ी गई।
दूसरा संशोधन अधिनियम, 1952 :
इस संशोधन के द्वारा संविधान के अनुच्छेद 81 में संशोधन किया गया। यह संशोधन विधेयक संसद में राज्यों के प्रतिनिधित्व में परिवर्तन से संबंधित था। लोकसभा में एक सांसद व 7,50,000 लोगों का प्रतिनिधित्व करेगा
तीसरा संशोधन अधिनियम, 1954 :
सर सर को खाद पदार्थ, पशुचारा, कच्चा कपास कपास के बीज, जूट के उत्पादन, आपूर्ति और वितरण पर नियंत्रण के लिए लोग हित में शक्तिशाली बनाया गया।
चौथा संशोधन अधिनियम, 1955 :
इस संशोधन अधिनियम के द्वारा संविधान के अनुच्छेद 31 ए, 31 क और 305 तथा संविधान की नौवीं अनुसूची में संशोधन किया गया।
7वां संविधान संशोधन, 1956 :
- राजू के चार वर्गों की समाप्ति जैसे भाग भाग भाग भाग भाग इनके स्थान पर 14 राज्य एवं 6 केंद्र शासित प्रदेशों को स्वीकृति
- केंद्र शासित प्रदेशों में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का विस्तार
- दो या दो से अधिक राज्यों के बीच सामूहिक न्यायालय की स्थापना
- उच्च न्यायालय में अतिरिक्त न्यायाधीश एवं कार्यकारी न्यायाधीश की नियुक्ति की व्यवस्था
9वां संशोधन अधिनियम, 1960 :
- भारत और पाकिस्तान के मध्य हुए समझौते( 1958) के क्रियान्वयन हेतु असम, पंजाब, प. बंगाल और त्रिपुरा के संघ राज्य क्षेत्र से पाकिस्तान को कुछ राज्य क्षेत्र प्रदान करने के लिए इस अधिनियम द्वारा प्रथम अनुसूची में संशोधन किया गया।
- यह संशोधन इसलिए आवश्यक हुआ कि बेरुवाडी क्षेत्र में हस्तांतरण के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय दिया था कि किसी एक राज्य क्षेत्र को किसी दूसरे देश में देने के करार अनुच्छेद 3 द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा क्रियान्वित नहीं किया जा सकता, अपितु इसे संविधान में संशोधन करके ही क्रियान्वित किया जा सकता है।
10वां संविधान संशोधन, 1960:
इस संविधान संशोधन के अंतर्गत भूतपूर्व पुर्तगाली अंतः क्षत्रों – दादर एवं नगर हवेली को भारत में शामिल कर उन्हें केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दे दिया गया।
11वां संविधान संशोधन, 1961:
- उपराष्ट्रपति के निर्वाचन प्रणाली में परिवर्तन।
- संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की वजह निर्वाचक मंडल के व्यवस्था।
- राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति के निर्वाचन को निर्वाचन मंडल में रिक्तता के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती।
12वां संविधान संशोधन,1962:
इसके अंतर्गत संविधान की प्रथम अनुसूची में संशोधन कर गोवा, दमन और दीव को भारत में केंद्र शासित प्रदेश के रूप में शामिल कर लिया गया।
13वां संविधान संशोधन, 1962:
इस संविधान संशोधन के द्वारा एक नवीन अधिनियम अर्थात् 371 क संविधान में स्थापित किया गया। इसके द्वारा नागालैंड के संबंध में विशेष प्रावधान अपना कर उसे एक राज्य का दर्जा दे दिया गया ।
14 वां संविधान संशोधन 1963:
इस संविधान संशोधन के द्वारा केंद्र शासित प्रदेश के रूप में पुदुचेरी को भारत में शामिल किया गया तथा संघ राज्य क्षेत्रों का लोकसभा में प्रतिनिधित्व 20 से बढ़ाकर 25 कर दिया गया।
15वाँ संविधान संशोधन, 1963:
इस संशिधान अंतर्गत उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवामुक्ती की आयु 60 वर्ष से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दिया गया।
16वाँ संविधान संशोधन, 1963:
इस अधिनियम द्वारा अनुच्छेद 19 में संशोधन करके संसद को यह शक्ति दी गई कि वह देश की संप्रभुता और अखंडता के हित मे प्रश्नगत करने वाली अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर विधि द्वार प्रतिबंध लगाए।
18वां संविधान संशोधन,1966:
- इसमें इस शक्ति को स्पष्ट किया गया कि संसद को राज्य निर्माण का अधिकार है 2 राज्यों को जोड़ने व प्रथक करने का अधिकार भी इसमें निहित है।
- इस अधिनियम द्वारा भाषा के आधार पर पंजाब का विभाजन करके पंजाब और हरियाणा नामक दो प्रथक राज्य बनाने का उपबंध किया गया।
19वां संविधान संशोधन, 1966:
इसके अंतर्गत चुनाव आयोग के अधिकारों में परिवर्तन किया गया तथा उच्च न्यायालयों को चुनाव याचिकाएं सुनने का अधिकार दिया गया।
20वां संविधान संशोधन, 1966:
इस अधिनियम द्वारा अनुच्छेद 233 क संविधान में स्थापित कर के जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति विधिमान्य घोषित किया गया।
21वां संविधान संशोधन, 1967:
इस संविधान संशोधन के द्वारा सिंधी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची के अंतर्गत 15वीं भाषा के रूप में शामिल किया गया।
22वां संविधान संशोधन, 1969:
इसके द्वारा असम राज्य को छठी अनुसूची के भाग 2 क में विनिर्दिष्ट कुछ क्षेत्र को मिलाकर एक अलग नया राज्य मेघालय बनाया गया।
24वां संविधान संशोधन 1971:
- संसद को यह अधिकार दिया गया कि वह संविधान के किसी भी हिस्से का चाहे वह मूल अधिकारों संशोधन कर सकती है
- राष्ट्रपति द्वारा संवैधानिक संशोधन विधेयक को मंजूरी बना दिया गया बना दिया गया।
26वां संविधान संशोधन 1971:26वां संविधान संशोधन 1971:
इसके अंतर्गत भूतपूर्व देशी राज्यों के शासकों की मान्यता को समाप्त करके उनकी पेंशन भी समाप्त कर दी गई है।
29वां संविधान संशोधन 1972:
इस अधिनियम द्वारा केरल राज्य के भूमि सुधार से संबंधित दो विधायकों की नौवीं अनुसूची में रखा गया।
31वां संविधान संशोधन 1973:
इस अधिनियम के द्वारा अनुच्छेद 81 ए, 330 और 332 में संशोधन किया गया और लोक सभा में निर्वाचित सदस्य की संख्या 525 से बढ़ाकर 545 कर दी गई।
32वां संविधान संशोधन 1974:
संसद एवं विधान पालिकाओं के सदस्य द्वारा दबाव में या जबरदस्ती किए जाने पर इस्तीफा देना अवैध घोषित किया गया एवं अध्यक्ष को यह अधिकार है कि वह सिर्फ स्वेच्छा से दिए गए एवं उचित त्यागपत्र को ही स्वीकार करे।
33वां संविधान संशोधन, 1974:
इस संशोधन के अंतर्गत संसद के सदस्यों और राज्य विधानमंडलों द्वारा बनाए गए 20 और काश्तकारी व भूमि सुधार कानूनों को नवीं अनुसूची में शामिल किया गया।
34वां संविधान संशोधन, 1974:
इसके अंतर्गत विभिन्न राज्यों द्वारा पारित 20 भू सुधार अधिनियम को 9वी अनुसूची में प्रवेश देते हुए उन्हें न्यायालय द्वारा संवैधानिक वैधता के परीक्षण से मुक्त कर दिया गया ।
35वां संविधान संशोधन, 1974:
इस संविधान संशोधन के तहत सिक्किम का संक्षिप्त राज्य का दर्जा समाप्त कर उससे संबद्ध राज्य के रूप में भारत में प्रवेश दिया गया।
36वां संविधान संशोधन, 1975:
इस संविधान संशोधन के अंतर्गत सिक्किम को भारत का 22 वा राज्य बनाया गया।
37वां संविधान संशोधन, 1975:
केंद्र शासित राज्य अरुणाचल प्रदेश के लिए विधानसभा मंत्रिपरिषद की व्यवस्था
39वां संविधान संशोधन,1975:
इसके संविधान संशोधन द्वारा राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष के निर्वाचन संबंधी विवादों के न्यायिक परीक्षण से मुक्त कर दिया गया।
40वां संविधान संशोधन, 1976:
- इस अधिनियम के अंतर्गत यह व्यवस्था की गई कि भारत के राज्यक्षेत्र सागर खंड अथवा महाद्वीपीय मग्न तट भूमि अथवा अनन्य आर्थिक संघ समुद्र के नीचे की समस्त भूमि, खनिज आदि निहित होंगे।
- संसद को यह अधिकार होगा कि वह राज्यक्षेत्रीय सागर खंड या महाद्वीपीय मग्न तट आदि भूमि को निश्चित या महाद्वीपीय मग्न तट आदि भूमि को निश्चित या नियत करे।
41वां संविधान संशोधन, 1976:
इस अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद- 316 का संशोधन करके संयुक्त आयोग या राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्यों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाकर 62 वर्ष कर दी गई।
42वा संविधान संशोधन ,1976:
- यह संविधान संशोधन प्रधानमंत्री इन्दिरा गाॅधी के समय स्वर्ण सिंह आयोग की सिफारिश के आधार पर किया गया था। यह अभी तक का सबसे बङा संविधान संशोधन है। इस संविधान संशोधन को लघु संविधान की संज्ञा दी जाती है। इस संविधान संशोधन में 59 प्रावधान थे।
- संविधान की प्रस्तावना में पंथ निरपेक्ष समाजवादी और अखण्डता शब्दों को जोडा गया।
- मौलिक कर्तव्यों को संविधान में शामिल किया गया।शिक्षा, वन और वन्यजीव, राज्यसूची के विषयों को समवर्ती सूची में शामिल किया गया।
- लोक सभा और विधान सभा के कार्यकाल को बढाकर 5 से 6 वर्ष कर दिया गया।
- राष्ट्रपति को मंत्रीपरिषद की सलाह के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य किया गया।
- ससंद द्वारा किये गये संविधान संशोधन को न्यायालय में चुनौती देने से वर्जित कर दिया गया है।शिक्षा, वन और वन्यजीव, राज्यसूची के विषयों को समवर्ती सूची में शामिल किया गया।
- लोक सभा और विधान सभा के कार्यकाल को बढाकर 5 से 6 वर्ष कर दिया गया।
- राष्ट्रपति को मंत्रीपरिषद की सलाह के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य किया गया।
- ससंद द्वारा किये गये संविधान संशोधन को न्यायालय में चुनौती देने से वर्जित कर दिया गया है।
44वां संविधान संशोधन, 1978:
- इसके तहत राष्ट्रीय आपात स्थिति लागू करने के लिए “आंतरिक अशांति” के स्थान पर “सैन्य विद्रोह” का आधार रखा गया ।
- आपात स्थिति संबंधी अन्य प्रावधानों में परिवर्तन लाया गया , जिससे उनका दुरुपयोग ना हो। इसके द्वारा संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों के भाग से हटाकर विधिक ( कानूनी ) अधिकारों की श्रेणी में रख दिया गया।
- लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं की अवधि 6 वर्ष से घटाकर 5 वर्ष कर दी गई।
- उच्चतम न्यायालय को राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन संबंधी विवाद को हल कने की अधिकारिता प्रदान की गई ।
45वां संविधान संशोधन, 1980:
इस अधिनियम द्वारा अनुच्छेद 334 में उपबंधित आरक्षणों की अवधि को 30 वर्ष से बढ़ाकर 40 वर्ष कर दिया गया। इस अधिनियम पर भी आधे से अधिक राज्य विधानमंडलों का अनुमोदन प्राप्त किया गया।
52वां संविधान संशोधन,1985:52वां संविधान संशोधन,1985:
इसके द्वारा राजनीतिक दल – बदल पर अंकुश लगाने का लक्ष्य रखा गया । इसके अंतर्गत संसद या विधानमंडलों के उन सदस्यों को अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा , जो उस दल को छोड़ते हैं जिसके चुनाव चिन्ह पर उन्होंने चुनाव लड़ा था । लेकिन यदि किसी दल की संसदीय पार्टी की एक तिहाई सदस्य अलग दल बनाना चाहते हैं तो उन पर अयोग्यता लागू नहीं होगी । दल बदल विरोधी इन प्रावधानों की संविधान की दसवीं अनुसूची के अंतर्गत रखा गया ।
55वां संविधान संशोधन, 1986:
इस अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद 371 ज को अंतःस्थापित करके अरुणाचल प्रदेश को राज्य बनाया गया ।
56वां संविधान संशोधन, 1987:
इसके अंतर्गत संविधान के अनुच्छेद 371 झ अंतःस्थापीत किया गया। इसके द्वारा गोवा को एक राज्य का दर्जा दिया गया और दमन और दीव को केंद्र शासित प्रदेश के रूप में ही रहने दिया गया ।
57वां संविधान संशोधन, 1987:
इसके अंतर्गत अनुसूचित जनजाति के आरक्षण के संबंध में मिजोरम , मेघालय , अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड की विधानसभा सीटों का परिसीमन इस शताब्दी के अंत तक के लिए किया गया।
58वां संविधान संशोधन, 1987:
इसके द्वारा संविधान में अनुच्छेद 394 क अंतःस्थापित किया गया। इसके अलावा संविधान का हिंदी संस्करण प्रकाशित करने के लिए अधिकृत किया गया ।
60वां संविधान संशोधन, 1988:
इसके अंतर्गत व्यवसाय कर की सीमा ₹250 से बढ़ाकर ₹2500 प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष कर दी गई।
61वां संविधान संशोधन, 1989:
इसके संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद 376 में संशोधन करके मतदान के लिए आयु सीमा 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष लाने का प्रस्ताव था।
65वां संविधान संशोधन,1990:
इसके द्वारा अनुच्छेद 338 में संशोधन करके अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग के गठन की व्यवस्था की गई है।
69वां संविधान संशोधन, 1990:
इसके तहत अनुच्छेद 54 और 368 का संशोधन करके दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र बनाया गया एवं दिल्ली संघ राज्य क्षेत्र के लिए विधानसभा और मंत्रिपरिषद का उपबंध किया गया।
70वां संविधान संशोधन 1962:
इसके तहत और पुदुचेरी संघ राज्य क्षेत्रों की विधानसभाओं के सदस्यों को राष्ट्रपति के लिए निर्वाचक मंडल में सम्मिलित किया गया।
71वां संविधान संशोधन, 1992:
इस संविधान संशोधन में आठवीं अनुसूची में कोंकणी, नेपाली और मणिपुरी भाषा को सम्मिलित किया गया ।
73वां संविधान संशोधन, 1992:
इसके अंतर्गत संविधान में 11वीं अनुसूची जोड़ी गई । इसके पंचायती राज संबंधी प्रावधानों को सम्मिलित किया गया । इस संशोधन के द्वारा संविधान में भाग 9 जोड़ा गया। इसमें अनुच्छेद 243 और अनुच्छेद 243 क से 243 ण तक अनुच्छेद हैं।
74वें संविधान संशोधन, 1993:
इस संशोधन के अंतर्गत संविधान में 12वीं अनुसूची शामिल की गई । जिसमें नगर पालिका, नगर निगम और नगर परिषदों से संबंधित प्रावधान किए गए हैं । इस संशोधन के द्वारा संविधान में भाग 9 क इस संशोधन के अंतर्गत संविधान में 12वीं अनुसूची शामिल की गई । जिसमें नगर पालिका, नगर निगम और नगर परिषदों से संबंधित प्रावधान किए गए हैं । इस संशोधन के द्वारा संविधान में भाग 9 क जोड़ा गया । इसमें अनुच्छेद 243 से अनुच्छेद 243 यद तक के अनुच्छेद हैं ।
76वां संविधान संशोधन, 1994:
इस संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान की नौवीं अनुसूची में संशोधन किया गया और तमिलनाडु सरकार द्वारा पारित पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में 69% आरक्षण का उपबंध करने वाली अधिनियम को 9वी अनुसूची में शामिल कर दिया गया है।
77वां संविधान संशोधन, 1995:
सरकारी सेवाओं में प्रोन्नतियों में अनुसूचित जातियों वा अनुसूचित जनजातियों का कोटा सुरक्षित किया गया।
78वां संविधान संशोधन, 1995:
संविधान का अनुच्छेद 31वीं नौवीं अनुसूची में शामिल उन कानूनों को इस आधार पर चुनौती देने से संवैधानिक छूट प्रदान करता है कि इससे संविधान के खंड 3 में सुरक्षित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है। इस अनुसूची में विभिन्न राज्यों की सरकारें और केंद्रीय सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों की सूची हैं।
79वां संविधान संशोधन, 1999:
इस संशोधन के अंतर्गत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण की अवधि 25 जनवरी 2010 तक के लिए बढ़ा दी गई है । इसके माध्यम से व्यवस्था की गई कि अब राज्यों को प्रत्यक्ष केंद्रीय करों से प्राप्त कुल धनराशि का 29% हिस्सा मिलेगा।
80वां संविधान संशोधन, 2000:
केंद्रीय करों की निबल प्राप्तियों का 26% भाग राज्यों को हस्तांतरित किए जाने का प्रावधान।
81 वां संविधान संशोधन, 2000:
इस संशोधन के द्वारा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण की 50% की सीमा, जो उच्चतम न्यायलय द्वारा निर्धारित की गई थी, को समाप्त कर दिया गया। इस प्रकार अब एक वर्ष में न भरी जाने वाली बकाया रिक्तियों को एक प्रथक वर्ग मना जाएगा और अगले वर्ष में भरा जाएगा, भले ही उसकी सीमा 50% से अधिक हो इसके लिए अनुच्छेद 16 खंड 4(क) के बाद एक नया खंड 4(ख) जोड़ा गया।
82वां संविधान संशोधन,2000:
इस संशोधन के द्वारा राज्यों को सरकारी नौकरियों में आरक्षित रिक्त स्थानों की भर्ती हेतु प्रोन्नति के मामलों में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के अभ्यर्थियों के लिए न्यूनतम प्राप्तांक को में छूट प्रदान करने की अनुमति प्रदान की गई है। इससे पूर्व उच्चतम न्यायालय के एक निर्णय के परिणामस्वरूप 1997 में इस छूट को वापिस ले लिया गया था।
83वां संविधान संशोधन, 2000:
इस संशोधन द्वारा पंचायती राज संस्थाओं में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण का प्रावधान न करने की छूट प्रदान की गई है । अरुणाचल प्रदेश में कोई भी अनुसूचित जाति ना होने के कारण उसे यह छूट प्रदान की गई है।
84वां संविधान संशोधन, 2001:
इसके द्वारा लोकसभा और विधानसभाओं की सीटों की संख्या में वर्ष 2026 तक कोई परिवर्तन ना करने का प्रावधान किया गया है।
85वां संविधान संशोधन, 2001:
इस संविधान संशोधन के अंतर्गत सरकारी सेवाओं में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के अभ्यर्थियों के लिए पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था की गई है ।
86वां संविधान संशोधन, 2002:
इस संशोधन अधिनियम द्वारा देश के 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देने संबंधी प्रावधान किया गया है । इसे अनुच्छेद 21(क) के अंतर्गत संविधान में जोड़ा गया है । इस अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद 45 और अनुच्छेद 51(क) में संशोधन किए जाने का प्रावधान है।
87वां संविधान संशोधन, 2003:
इसके परिसीमन में जनसंख्या का आधार 1991की जनगणना के स्थान पर 2001 तक कर दी गई।
88वां संविधान संशोधन, 2003:
इसमें सेवाओं पर कर का प्रावधान किया गया।
89वां संविधान संशोधन, 2003:
इस संविधान संशोधन के अंतर्गत अनुसूचित जनजाति के लिए पृथक राष्ट्रीय आयोग की स्थापना की व्यवस्था की गई।
90वां संविधान संशोधन, 2003:
इस संशोधन के अंतर्गत असम विधानसभा में अनुसूचित जनजातियों और गैर अनुसूचित जनजातियों का प्रतिनिधित्व बरकरार रखते हुए बोडोलैंड, टेरिटोरियल कौंसिल क्षेत्र, गैर जनजाति के लोगों के अधिकारों की सुरक्षा का प्रावधान है।
91वां संविधान संशोधन, 2003:
- इसके तहत दलबदल व्यवस्था में संशोधन,
- केवल संपूर्ण दल के विलय को मान्यता केंद्र
- राज्य में मंत्री परिषद के सदस्य संख्या क्रमशः लोकसभा एवं विधानसभा की सदस्य संख्या का 15% होगी।
92वां संविधान संशोधन, 2003:
इस संविधान संशोधन में संविधान की आठवीं अनुसूची में डोगरी, बोडो, संथाली, मैथिली भाषाओं का समावेश
93वां संविधान संशोधन, 2006:
इसमें शिक्षा संस्थानों में अनुसूचित जाति / जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के नागरिकों के दाखिले के लिए सीटों के आरक्षण की व्यवस्था की गई और संविधान के अनुच्छेद 15 की धारा 4 के प्रावधानों के तहत की गई।
94वां संविधान संशोधन, 2006:
इस संशोधन के द्वारा बिहार राज्य को एक जनजाति कल्याण मंत्री नियुक्त करने के उत्तरदायित्व से मुक्त कर दिया गया और इस प्रावधान को झारखंड एवं छत्तीसगढ़ राज्यों में लागू करने की व्यवस्था की गई साथ ही, मध्य प्रदेश और ओडिशा राज्य में यह प्रावधान पहले से ही लागू है।
95वां संविधान संशोधन,2009:
इस संशोधन के द्वारा अनुच्छेद 334 में संशोधन कर लोकसभा में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण तथा आंग्ल भारतीयों को मनोनीत करने संबंधी प्रावधान को 2020 तक के लिए बढ़ा दिया गया है।
96वां संविधान संशोधन, 2011:
इसमें संविधान की आठवीं अनुसूची में “उड़िया” के स्थान पर “ओड़िया” लिखा गया।
97 वां संविधान संशोधन, 2011:
इस संशोधन के द्वारा सहकारी समितियों को एक संवैधानिक स्थान तथा सरंक्षण प्रदान किया गया। इस संशोधन द्वारा संविधान में निम्न तीन बदलाव किए गए
(a) सहकारी समिति बनाने का अधिकार एक मौलिक अधिकार बन गया| [ अनुच्छेद-19 (1)(c)
(b)”सहकारी समितियां” नाम से एक नया भाग – IX-ख संविधान में जोड़ा गया। [ अनुच्छेद 243 ZH से 223ZT]
(c) राज्य की नीति में सहकारी समितियों को बढ़ावा देने का एक नया नीति निदेशक सिद्धांत का समावेश [ अनुच्छेद 43 ख]
98वां संविधान संशोधन अधिनियम, 2012:
इस संविधान संशोधन में अनुच्छेद 371(J) शामिल किया गया । इसका उद्देश्य कर्नाटक के राज्यपाल को हैदराबाद – कर्नाटक क्षेत्र के विकास हेतु कदम उठाने के लिए सशक्त करना था।
101वा संविधान संशोधन (2016):
GST बिल का प्रावधान (122वा विधेयक) , 1 जुलाई 2017 से प्रभावी
102वा संविधान संशोधन (2018):
ओबीसी आयोग का गठन, ओबीसी आयोग को मिला संविधान का ढांचा।
103वा संविधान संशोधन (2019):
ईडब्ल्यूएस सेक्शन के लिए 10% का आरक्षण (EWS सेक्शन में 10% का आरक्षण)
104वा संविधान संशोधन (2019):
अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति का समय 10 साल के लिए (एससी/एसटी आरक्षण में वृद्धि)
108वां संविधान संशोधन (2021):
महिलाओं के लिए लोकसभा व विधान सभा में 33% आरक्षण।
109वां संविधान संशोधन(2021):
पंचायती राज्य में महिला आरक्षण 33% से 50%.
110वां संविधान संशोधन:
स्थानीय निकाय में महिला आरक्षण 33% से 50% .
114वां संविधान संशोधन:
उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की आयु 62 बर्ष से 65 बर्ष।
115वां संविधान संशोधन:
GST (वस्तु एवं सेवा कर)
117वां संविधान संशोधन:
SC व ST को सरकारी सेवाओं में पदोन्नति आरक्षण।