दोस्तों ,महात्मा बुद्ध की सभी कहानियां अत्यंत प्रेरणादायक हैं ।आपने अभी तक महात्मा बुद्ध की गई रुचकर कहानियां पढ़ी होगी इसी श्रंखला को आगे बढ़ाते हुए आज हम आपको एक बेहतरीन कहानी से रूबरू कराना चाहते हैं जिसका शीर्षक है “क्रोध एक दुश्मन”। आइए जानते हैं कि क्या है आज की कहानी-
एक बार गौतम बुद्ध जी गांव में बैठकर उपदेश दे रहे थे कि क्रोध किस प्रकार की अग्नि है क्रोध इंसान को तहस-नहस कर देती है क्रोध से इंसान केवल अपना ही नुकसान ना करके बल्कि दूसरों का भी नुकसान करता है।
गौतम बुद्ध की ही बातें सभा में बैठा एक व्यक्ति सुन रहा था उसे क्रोध के बारे में कहीं गए बुद्ध जी की बातें बिल्कुल भी नहीं अच्छी लग रही थी, तभी वह व्यक्ति उठा और चिल्लाकर बोला बंद करो यह बकवास तुम लोगों को झूठी बातें बताते हो तो ढोंगी हो ।
उसकी यह बात सुनते ही सभा बैठे सभी लोग उसे घूर घूर कर देखने लगे, बुद्धा जी उस व्यक्ति की बातें बड़े ही गौर से सुन रहे थे पर उन्हें तनिक भी क्रोध नहीं आया काफी देर तक उस व्यक्ति ने गौतम बुद्धा जी को उल्टा सीधा बोला तब भी गौतम बुद्ध जी को बिल्कुल भी क्रोध नहीं आया ।
गौतम बुद्ध जी को शांत देखकर व्यक्ति और क्रोधित हो गया और उनके मुंह पर थूक कर चला गया उसके बावजूद भी गौतम बुद्ध जी को बिल्कुल भी गुस्सा नहीं आया उन्होंने अपने मुंह से तू पूछा और वापस से चुपचाप बैठ गए, गुस्से में व्यक्ति वहां से चला गया।
अगले दिन जब व्यक्ति अपने घर पहुंचा और उसका क्रोध कुछ शांत हुआ तो वह अपने कल किये बुद्ध जी के अपमान को याद करके पश्चाताप की आग में जलने लगा । वह मन ही मन अपने आप से कहने लगा -” यह मैंने क्या कर दिया मुझसे तो बहुत बड़ा पाप हो गया मैंने गौतम बुद्ध जी का अपमान कर दिया”। वह मन ही मन खुद को कोसने लगा कि इतनी बड़ी गलती में कैसे कर सकता हूं । उसके बाद उसने सोचा कि मुझे अभी तुरंत जाकर बुद्धा जिसे माफी मांगनी चाहिए। वह व्यक्ति उसी जगह पर गया जहां गौतम बुद्ध जी कल बैठकर उपदेश दे रहे थे लेकिन वहां पर बुद्धा जी नहीं थे ,तो वह उन्हें अगल-बगल की जगह पर ढूंढने लगा जैसे उसे बुद्धा जी मिले वह तुरंत उनके चरणों में गिर गया और उनसे माफी मांगने लगा तभी बुद्धा जी ने कहा-” क्या हुआ? तुम कौन हो? तुम्हें क्या चाहिए? तुम मुझसे माफी क्यों मांग रहे हो?
बुद्धा जी की यह बात सुनते ही व्यक्ति सोच लगा कि यह मुझे इतनी जल्दी कैसे भूल सकते हैं, उस व्यक्ति ने बुद्धा जी से कहा कि मैं वही आपका शिष्य हूं जिसने कल आपका अपमान किया था और आप मुझे इतनी जल्दी भूल गए।
गौतम बुद्धा जी ने कहा हम कल की बातों को कल में ही छोड़कर , आगे बढ़ते है। बातें अच्छी हो या बुरी, हमें जो बातें कल हो चुकी है उन्हें कल में ही छोड़ देना चाहिए। बार-बार उन्हें नहीं सोचना चाहिए। यह बातें सुनकर शिष्य और भी भावुक हो गया और उस ने उन से क्षमा मांगी।
Moral of the story –: क्रोध मनुष्य को बिगाड़ देता है और क्रोध में लिए गए सभी फैसले गलत होते हैं । इंसान को क्रोध नहीं करना चाहिए क्योंकि क्रोध में इंसान खुद को ही नहीं बल्कि दूसरों को भी नुकसान पहुंचाता है।
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