नोबेल प्राइज की शुरुआत 1901 से स्वीडन के निवासी अल्फ्रेड नोबेल के नाम पर की गई । यह 6 क्षेत्र भौतिकी, रसायन विज्ञान, शरीर विज्ञान या चिकित्सा, साहित्य और शांति के क्षेत्र में प्रदान किया गया है, जबकि
अर्थशास्त्र में एक और नोबल पुरस्कार 1968 में जोड़ा गया था। नोबेल प्राइज प्राप्त विजेता को वर्तमान में 11 करोड रुपए की राशि दी जाती है जो कि पहले 8 करोड़ थी। कई लोग ऐसे भी हैं जिनको अब तक दो बार नोबेल प्राइज मिल चुका है हम आपको बता दें कि रेड क्रॉस सोसाइटी एक ऐसी संस्था है जिसे तीन बार नोबेल प्राइज दिया जा चुका है क्योंकि यह बीमारी आपदा या अन्य समस्याओं पर लोगों की सहायता करती है एवं उनकी समस्याओं में उनके साथ देती है इसलिए इसको अब तक तीन बार नोबेल प्राइज दिया जा चुका है।
हाल ही में मानवीय भावनाओं को सरल शब्दों में व्यक्त करने वाले अनकही की आवाज़ देने वाले जॉन फॉसे को “उनके अभिनव नाटकों और गद्य के लिये” साहित्य का नोबेल पुरस्कार– 2023 दिया गया है।
जाने कौन है जॉन फासे …..
जॉन फॉसे, नॉर्वे के लेखक और नाटककार हैं। फॉसे इस पुरस्कार के मिलने से पहले ही साहित्य जगत में खासे मशहूर है। उन्हें केवल एक वाक्य में उपन्यास रचने वाले लेखक के तौर पर जाना जाता है। समिति ने 64 साल के फॉसे के काम की तारीफ करते हुए कहा कि उनके नए विचारों से ओतप्रोत नाटक और गद्य अनकहे को आवाज देते हैं।
- फॉसे का कार्य उनकी नॉर्वेजियन नाइनोर्स्क पृष्ठभूमि की भाषा और प्रकृति में निहित है जो नॉर्वेजियन भाषा के दो आधिकारिक संस्करणों में आम बोलचाल में कम प्रयोग में लाया जाता है।
- जॉन फॉसे को उनकी लेखन शैली के लिये जाना जाता है, जिसे प्रायः “फॉसे मिनिमलिज़्म” कहा जाता है।
- उनकी शैली की विशेषता सरल, न्यूनतम और मार्मिक संवाद है, उनकी तुलना सैमुअल बेकेट और हेरोल्ड पिंटर जैसे साहित्यिक दिग्गजों से की जाती है, जिन्हें पहले ही साहित्य में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
इस प्रकार की कृति लिखते हैं रंगमंच के उस्ताद फासे
फॉसे की महान कृति उनकी ‘सेप्टोलॉजी’ है। ये 2019-2021 तक तीन खंडों में ‘द अदर नेम’, ‘आई इज़ अनदर’ और ‘ए न्यू नेम’ टाइटल से प्रकाशित हुई हैं। ये 1250 पेज का गद्य है।
उपन्यास एक ऐसे व्यक्ति के जीवन पर आधारित है जो की काफी उम्र दराज है और यह कैथोलिक कलाकार है जिसका नाम एस्ले है। वो सुदूर दक्षिण-पश्चिम नॉर्वे में रहता है और वक्त, कला और अपनी पहचान के लिए जूझ रहा होता है।
उसे अपने वजूद के खत्म होने, याददाश्त कम होने जैसी परेशानी से दो-चार होना पड़ता है। ये कलाकार खुद से कला और भगवान पर बात करता है। उसकी इसी बात और सोच को बगैर किसी पूर्ण विराम के एक वाक्य में फॉसे ने लिखा है। इसे इस तरह से लिखने की वजह है कि रीडर इस बुजुर्ग कलाकार के जीवन में खुद जी के देख सके। इसकी खासियत ही ये एकालाप है।