आमलकी एकादशी, जिसे रंगभरी एकादशी भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है। यह फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है और इस वर्ष यह 10 मार्च 2025, सोमवार को पड़ रही है।
इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है, साथ ही आंवला वृक्ष की भी विशेष पूजा का महत्व है, क्योंकि आंवला को भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता है।
व्रत विधि
- स्नान और संकल्प: सूर्योदय से पहले स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें।
- भगवान विष्णु की पूजा: भगवान विष्णु को पीले पुष्प, तुलसी दल, पंचामृत और चंदन अर्पित करें।
- आंवला वृक्ष की पूजा: आंवला वृक्ष के नीचे दीप जलाकर उसकी पूजा करें और भजन-कीर्तन करें।
- विष्णु सहस्रनाम का पाठ: इस दिन विष्णु सहस्रनाम या एकादशी व्रत कथा का पाठ करना शुभ माना जाता है।
- दान-पुण्य: जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र और आंवला का दान करें।
शुभ मुहूर्त
- ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 4:59 बजे से 5:48 बजे तक
- प्रातः सन्ध्या: सुबह 5:23 बजे से 6:36 बजे तक
- अभिजित मुहूर्त: दोपहर 12:08 बजे से 12:55 बजे तक
- विजय मुहूर्त: दोपहर 2:30 बजे से 3:17 बजे तक
- गोधूलि मुहूर्त: शाम 6:24 बजे से 6:49 बजे तक
- सर्वार्थ सिद्धि योग: सुबह 6:36 बजे से रात 12:51 बजे तक
व्रत पारण (उपवास समाप्ति) का समय
व्रत का पारण 11 मार्च 2025 को सुबह 6:35 बजे से 8:13 बजे के बीच किया जाना चाहिए। द्वादशी तिथि 11 मार्च को सुबह 8:13 बजे समाप्त होगी।
आमलकी एकादशी के पालन से सभी पापों का नाश होता है और भक्त को मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत होली महोत्सव से भी संबंधित है, क्योंकि इस दिन भगवान शिव ने माता पार्वती के साथ होली खेली थी, जिससे यह भक्तिभाव से मनाया जाता है।
आमलकी की एकादशी की व्रत कथा

प्राचीन समय में भारतवर्ष में एक धर्मनिष्ठ राजा चित्ररथ राज्य करते थे। उनके राज्य में सभी लोग भगवान विष्णु के भक्त थे और धर्मपूर्वक जीवन व्यतीत करते थे। राजा स्वयं भी भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहते थे और प्रत्येक व्रत-त्योहार को श्रद्धा और नियमपूर्वक मनाते थे।
एक दिन फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी को राजा चित्ररथ अपने राज्य के साथ वन में गए। वहां उन्होंने आंवले के वृक्ष के नीचे एक सुंदर यज्ञशाला देखी। वहां मुनि, ऋषि और अन्य भक्तजन मिलकर भगवान विष्णु की पूजा कर रहे थे। राजा ने भी भक्तिभाव से उस यज्ञ में भाग लिया और पूरी श्रद्धा के साथ उपवास रखा। उन्होंने पूरी रात भगवान विष्णु का भजन-कीर्तन किया और यज्ञ संपन्न किया।
व्रत समाप्त होने के बाद, राजा चित्ररथ अपने महल लौट आए। उनके इस पुण्य से देवता प्रसन्न हुए और आकाशवाणी हुई –
“हे राजन! आपने आमलकी एकादशी का व्रत कर जो पुण्य अर्जित किया है, उसके प्रभाव से आपके राज्य में सदैव सुख-शांति बनी रहेगी। यह व्रत सभी पापों का नाश करने वाला और मोक्ष प्रदान करने वाला है।”
तभी से यह व्रत अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। इस व्रत को करने से समस्त कष्ट दूर होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। कहा जाता है कि जो भक्त आमलकी एकादशी का व्रत करता है, उसे विष्णु लोक की प्राप्ति होती है।
इस प्रकार से जो कोई भी आमलकी एकादशी का व्रत रखता है भगवान विष्णु की कृपा उसे साक्षात प्राप्त होती है। भगवान नारायण के सभी भक्तों को एकादशी का व्रत करना चाहिए। एकादशी का व्रत मानव जीवन के लिए अत्यंत फलदाई माना जाता है क्योंकि इसे करने से भगवान नारायण के साथ माता लक्ष्मी की कृपा भी प्राप्त होती है।