कामदा एकादशी का व्रत चैत्र मास की शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है। इसमें भगवान नारायण की पूजा करने का विधान है एकादशी का व्रत करने से विष्णु भगवान की कृपा प्राप्त होती है एवं भक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
कामदा एकादशी को लेकर मान्यता है कि इस व्रत को करने से मनुष्य को 100 यज्ञों के बराबर ही शुभ फल की प्राप्ति होती है इसलिए कामदा एकादशी को फलदा एकादशी भी कहा जाता है. साथ ही कामदा एकादशी को लेकर यह भी मान्यता है कि इस दिन का विधि विधान के साथ व्रत और पूजन करने से और व्रत कथा को पढ़ने या सुनने से साधक को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और अंत समय में व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है.
बता दें साल में कुल 24 एकादशियां पड़ती है। ऐसे में हर माह के शुक्ल और कृष्ण पक्ष पर एक-एक एकादशी पड़ती है। ऐसे ही चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को कामदा एकादशी का व्रत रखा जाता है।
कामदा एकादशी
कामदा एकादशी पर भगवान विष्णु के साथ वासुदेव की पूजा करने का विधान है। इस दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने से हर तरह के दुख-दर्द से निजात मिल जाती है और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस साल कामदा एकादशी पर रवि योग के साथ-साथ सर्वार्थ सिद्धि योग का निर्माण हो रहा है।
कामदा एकादशी 2025 तिथि (Kamada Ekadashi 2025 Date)
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि आरंभ – 7 अप्रैल 2025 को रात 08:00 बजे
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि समाप्त – 8 अप्रैल 2025 को रात 09:12 पर
कामदा एकादशी 2025 तिथि- उदया तिथि के हिसाब से 8 अप्रैल 2025
कामदा एकादशी 2025 पूजा मुहूर्त (Kamada Ekadashi 2025 Muhurat)
ब्रह्म मुहूर्त- सुबह 04:32 से 5:18 तक रहेगा
अभिजीत मुहूर्त- सुबह 11:58 से 12:48 तक
पारण का समय:एकादशी व्रत रखते हैं, तो पारण करना जरूरी है। बता दें कि व्रत का पारण 9 अप्रैल 2025 को सुबह 06:02 से 08:34 के बीच कर सकते हैं।
श्री विष्णु स्तुति (Vishnu Stuti)
शांताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं,
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकांतं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्,
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥
कामदा एकादशी की कथा

प्राचीनकाल में भोगीपुर नामक एक नगर था। वहाँ पर अनेक ऐश्वर्यों से युक्त पुण्डरीक नाम का एक राजा राज्य करता था। भोगीपुर नगर में अनेक अप्सरा, किन्नर तथा गन्धर्व वास करते थे। उनमें से एक जगह ललिता और ललित नाम के दो स्त्री-पुरुष अत्यंत वैभवशाली घर में निवास करते थे। उन दोनों में अत्यंत स्नेह था, यहाँ तक कि अलग-अलग हो जाने पर दोनों व्याकुल हो जाते थे।
एक समय पुण्डरीक की सभा में अन्य गंधर्वों सहित ललित भी गान कर रहा था। गाते-गाते उसको अपनी प्रिय ललिता का ध्यान आ गया और उसका स्वर भंग होने के कारण गाने का स्वरूप बिगड़ गया। ललित के मन के भाव जानकर कार्कोट नामक नाग ने पद भंग होने का कारण राजा से कह दिया। तब पुण्डरीक ने क्रोधपूर्वक कहा कि तू मेरे सामने गाता हुआ अपनी स्त्री का स्मरण कर रहा है। अत: तू नरभक्षी दैत्य बनकर अपने कर्म का फल भोग।
जब उसकी प्रियतमा ललिता को यह वृत्तान्त मालूम हुआ तो उसे अत्यंत खेद हुआ और वह अपने पति के उद्धार का यत्न सोचने लगी। वह राक्षस अनेक प्रकार के घोर दुःख सहता हुआ घने वनों में रहने लगा। उसकी स्त्री उसके पीछे-पीछे जाती और विलाप करती रहती।
एक बार ललिता अपने पति के पीछे घूमती-घूमती विन्ध्याचल पर्वत पर पहुँच गई, जहाँ पर श्रृंगी ऋषि का आश्रम था। ललिता शीघ्र ही श्रृंगी ऋषि के आश्रम में गई और वहाँ जाकर विनीत भाव से प्रार्थना करने लगी।
उसे देखकर श्रृंगी ऋषि बोले: हे सुभगे! तुम कौन हो और यहाँ किस लिए आई हो?
ललिता बोली: हे मुने! मेरा नाम ललिता है। मेरा पति राजा पुण्डरीक के श्राप से विशालकाय राक्षस हो गया है। इसका मुझको महान दुःख है। उसके उद्धार का कोई उपाय बतलाइए।
श्रृंगी ऋषि बोले: हे गंधर्व कन्या! अब चैत्र शुक्ल एकादशी आने वाली है, जिसका नाम कामदा एकादशी है। इसका व्रत करने से मनुष्य के सब कार्य सिद्ध होते हैं। यदि तू कामदा एकादशी का व्रत कर उसके पुण्य का फल अपने पति को दे तो वह शीघ्र ही राक्षस योनि से मुक्त हो जाएगा और राजा का श्राप भी अवश्यमेव शांत हो जाएगा।
मुनि के ऐसे वचन सुनकर ललिता ने चैत्र शुक्ल एकादशी आने पर उसका व्रत किया और द्वादशी को ब्राह्मणों के सामने अपने व्रत का फल अपने पति को देती हुई भगवान से इस प्रकार प्रार्थना करने लगी: हे प्रभो! मैंने जो यह व्रत किया है इसका फल मेरे पतिदेव को प्राप्त हो जाए जिससे वह राक्षस योनि से मुक्त हो जाए।
पुण्डरीक के श्राप से ललित उसी क्षण महाकाय विशाल राक्षस हो गया। उसका मुख अत्यंत भयंकर, नेत्र सूर्य-चंद्रमा की तरह प्रदीप्त तथा मुख से अग्नि निकलने लगी। उसकी नाक पर्वत की कंदरा के समान विशाल हो गई और गर्दन पर्वत के समान लगने लगी। सिर के बाल पर्वतों पर खड़े वृक्षों के समान लगने लगे तथा भुजाएँ अत्यंत लंबी हो गईं। कुल मिलाकर उसका शरीर आठ योजन के विस्तार में हो गया। इस प्रकार राक्षस होकर वह अनेक प्रकार के दुःख भोगने लगा।
एकादशी का फल देते ही उसका पति राक्षस योनि से मुक्त होकर अपने पुराने स्वरूप को प्राप्त हुआ। फिर अनेक सुंदर वस्त्राभूषणों से युक्त होकर ललिता के साथ विहार करने लगा। उसके पश्चात वे दोनों विमान में बैठकर स्वर्गलोक को चले गए।
वशिष्ठ मुनि कहने लगे: हे राजन्! इस व्रत को विधिपूर्वक करने से समस्त पाप नाश हो जाते हैं तथा राक्षस आदि की योनि भी छूट जाती है। संसार में इसके बराबर कोई और दूसरा व्रत नहीं है। इसकी कथा पढ़ने या सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे: हे भगवन्! मैं आपको कोटि-कोटि नमन करता हूँ। आपने चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी अर्थात कामदा के बारे मे विस्तार पूर्वक बताइए। अब आप कृपा करके चैत्र शुक्ल एकादशी को नाम है? तथा उसकी विधि एवं महात्म्य क्या है?
कामदा एकादशी की आरती
ॐ जय जगदीश हरे
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट,
क्षण में दूर करे ॥ ॐ जय जगदीश हरे ॥
जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का।
स्वामी दुःख विनसे मन का, सुख संपत्ति घर आवे ॥ ॐ जय जगदीश हरे ॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी।
स्वामी शरण गहूँ मैं किसकी, तुम बिन और न दूजा ॥ ॐ जय जगदीश हरे ॥
तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी।
स्वामी तुम अंतर्यामी, पारब्रह्म परमेश्वर ॥ ॐ जय जगदीश हरे ॥
तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता।
स्वामी तुम पालनकर्ता, मैं मूरख खल कामी ॥ ॐ जय जगदीश हरे ॥
कुछ नहीं मेरे बस में, सब कुछ है तेरा।
स्वामी सब कुछ है तेरा, तुझ बिन और न दूजा ॥ ॐ जय जगदीश हरे ॥