जहाँ सावन में जब हर ओर हरियाली और भक्ति का माहौल होता है, तो ऐसे में कामिका एकादशी का आना भक्तों के लिए किसी सौगात से कम नहीं होता। ये एकादशी सावन माह के कृष्ण पक्ष में आती है और इस साल ये तिथि शुरू हो रही है 20 जुलाई दोपहर 12:12 बजे से, जो 21 जुलाई सुबह 9:38 बजे तक रहेगी परंतु जो लोग एकादशी का व्रत करेंगे वें 21जुलाई को पूरा दिन उपवास करेंगे
खास बात ये है कि इस बार सावन का दूसरा सोमवार और कामिका एकादशी एक ही दिन पड़ रहे हैं, जिससे इस दिन की आध्यात्मिक महत्ता और भी बढ़ जाती है।
कामिका एकादशी व्रत का महत्व
कामिका एकादशी पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से धन, सुख, शांति, समाजिक प्रतिष्ठा और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
मान्यता है कि इस दिन यदि पूरी श्रद्धा और विधि से पूजा की जाए, तो पाप नष्ट होते हैं, और जीवन में स्थिरता आती है। विष्णु जी को कुछ विशेष वस्तुएं जैसे तुलसी, पीले फूल, फल और वस्त्र अर्पित करने से करियर, नौकरी और रिश्तों में भी अच्छे परिणाम मिलते हैं।
श्री विष्णु की स्तुति और मंत्र जाप (Lord Vishnu Stuti & Mantra)
शांताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं,
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकांतं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्,
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥
विष्णु जी को प्रसन्न करने के लिए इन मंत्रों का जाप करें:
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
विष्णवे नम:
ॐ हूं विष्णवे नम:
ॐ नमो नारायण
श्री मन नारायण नारायण हरि हरि
श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेवाय
ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्
कामिका एकादशी व्रत कथा (Kamika Ekadashi Vrat Katha)
बहुत समय पहले की बात है, एक गांव में एक क्षत्रिय रहता था। एक दिन रास्ते में उसकी किसी बात पर एक ब्राह्मण से कहासुनी हो गई। बात बढ़ी और क्षत्रिय ने आवेश में आकर ब्राह्मण को धक्का दे दिया। दुर्भाग्यवश, ब्राह्मण गिरा और उसकी मृत्यु हो गई।
घटना के कुछ ही समय बाद क्षत्रिय को अपने किए पर पछतावा हुआ। उसने ब्राह्मण के अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी ली और गांव के लोगों से क्षमा भी मांगी। लेकिन गांव के पंडितों ने साफ मना कर दिया। उन्होंने कहा, “तुम पर ब्रह्महत्या का दोष है। जब तक तुम इसका प्रायश्चित नहीं करते, हम कोई धार्मिक कार्य में शामिल नहीं होंगे।”

अब क्षत्रिय परेशान था। उसने बार-बार विनती की कि उसे कोई उपाय बताया जाए जिससे वह इस पाप से मुक्त हो सके। पंडितों ने उसे सलाह दी, “अगर तुम सच्चे मन से सावन के कृष्ण पक्ष की एकादशी, यानी कामिका एकादशी का व्रत रखो, भगवान विष्णु की पूजा करो, ब्राह्मणों को भोजन कराओ और दान दो तो तुम अपने अपराध से मुक्त हो सकते हो।”
क्षत्रिय ने बिना देर किए व्रत की तैयारी शुरू की। उसने पूरे नियमों के साथ उपवास रखा, भगवान विष्णु की पूजा की, तुलसी अर्पित की और रात भर जागरण किया। उसी रात, उसे स्वप्न में भगवान विष्णु के दर्शन हुए। उन्होंने मुस्कराकर कहा, “तुमने सच्चे मन से प्रायश्चित किया है। तुम्हारे पुण्य कर्मों और भक्ति से मैं प्रसन्न हूँ। अब तुम ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हो चुके हो।”
सुबह जब क्षत्रिय उठा, उसका मन शांत और हल्का था। गांव के लोग भी उसकी तपस्या से प्रभावित हुए और उसे फिर से स्वीकार कर लिया। कहा जाता है कि उसी दिन से कामिका एकादशी का व्रत विशेष पुण्यदायी माना जाने लगा। इस व्रत की कथा केवल सुनने भर से ही यज्ञ के बराबर पुण्य मिलता है और अगर सच्चे मन से किया जाए तो पाप भी धुल जाते हैं।