हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की पष्ठी तिथि को भगवान कृष्ण के बड़े भाई श्री बलरामजी का जन्म हुआ था। उन्हीं के नाम पर इस व्रत को हलषष्ठी पड़ा। इस व्रत को ललही छठ, हलछठ, हरछठ व रांधन छठ आदि नामों से जाना जाता है।
पूजा को करने की विधि
हरछठ पूजा विधि विधान से हल षष्ठी पर की जाती है । हल षष्ठी पर महिलाएं गड्ढा बनाती हैं और उसे गोबर से लीप कर तालाब का रूप देती हैं। इसके बाद झरबेरी और पलाश की एक-एक शाखा बांधी जाती है और हरछठ को गाड़ा जाता है। पूजा के समय भुना हुआ चना, जौ की बालियां भी चढ़ाई जाती है। यह व्रत महिलाएं अपने पुत्रों की लंबी उम्र की कामना के लिए रखती हैं।
मान्यता है कि छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए जीवन के महत्वपूर्ण अवयवों में सूर्य व जल की महत्ता को मानते हुए, इन्हें साक्षी मान कर भगवान सूर्य की आराधना तथा उनका धन्यवाद करते हुए मां गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर ( तालाब ) के किनारे यह पूजा की जाती है।
हरछठ की पूजा करने का कारण
हलषष्ठी या ऊब छठ, इस दिन भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई भगवान बलराम का जन्म हुआ था और उनका शस्त्र हल था इसलिए इस दिन को हलषष्ठी कहा जाता है. वहीं कई जगह इस दिन को चंदन षष्ठी के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है
प्रतिवर्ष भाद्रपद माह की छठी तिथि को महिलाएं अपने पुत्र के दीर्घायु होने और उन्हें असामयिक मौत से बचाने के लिए हरछठ या हलषष्ठी व्रत करती हैं। इस दिन महिलाएं ऐसे खेत में पैर नहीं रखतीं, जहां फसल पैदा होनी हो और ना ही पारणा करते समय अनाज व दूध-दही खाती है। * इस दिन हल पूजा का विशेष महत्व है।
वर्ष 2024 में हरछठ पूजा
इस वर्ष छठ पूजा 25 अगस्त 2024 को पड़ रही है।इस साल हरछठ 24 अगस्त, शनिवार को है। षष्ठी तिथि 24 अगस्त को सुबह 07 बजकर 51 मिनट से प्रारंभ होगी और 25 अगस्त को सुबह 05 बजकर 30 मिनट पर समाप्त होगी। हरछठ व्रत का महत्व- हरछठ व्रत माताएं संतान के सुखद जीवन व लंबी आयु के लिए रखती हैं।