नवरात्रि के सातवें दिन माँ दुर्गा के कालरात्रि स्वरूप की पूजा की जाती है। माँ कालरात्रि का रूप देखने में जितना भयावह है, उतना ही वे अपने भक्तों के लिए मंगलकारी और कल्याणकारी मानी जाती हैं। इसी कारण उन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है। उनका स्मरण मात्र ही सभी पाप, दुख और भय का नाश कर देता है।
माँ कालरात्रि का स्वरूप अत्यंत अद्भुत है। उनका पूरा शरीर काले रंग का है, केश बिखरे हुए हैं और गले में चमकती माला शोभा देती है। वे चार भुजाओं वाली हैं—दाहिने हाथ में अभय और वरमुद्रा तथा बाएँ हाथ में वज्र और तलवार धारण करती हैं। उनकी सवारी गधा (गर्दभ) है। उनका तीसरा नेत्र सृष्टि के रहस्यों को प्रकट करता है।
कहते हैं कि जब महिषासुर का वध करना कठिन हो गया था, तब माँ ने इसी भयानक कालरात्रि स्वरूप को धारण किया था। इस रूप से माँ ने असुरों का नाश कर देवताओं और ऋषि-मुनियों को भयमुक्त किया।
माँ कालरात्रि की पूजा से भक्त को असीम शक्ति और साहस की प्राप्ति होती है। जीवन की कठिनाइयों, भय, भूत-प्रेत बाधाओं तथा दुष्ट शक्तियों से रक्षा के लिए इनका ध्यान किया जाता है। जो साधक आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर होना चाहते हैं, उनके लिए माँ का यह स्वरूप विशेष महत्त्वपूर्ण है।
पूजा में भक्त प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनकर माँ का ध्यान करते हैं। लाल या नीले रंग के पुष्प अर्पित किए जाते हैं। उन्हें गुड़ और जाज्वल्यमान पुष्प प्रिय हैं। श्रद्धा और भक्ति से माँ की आराधना करने पर वे शीघ्र प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को निर्भयता का वरदान देती हैं।

कालरात्रि यह संदेश देती हैं कि भय केवल मन की दुर्बलता है। जब हम अपने भीतर की शक्ति को पहचानते हैं, तो कोई भी बाधा हमें रोक नहीं सकती। वे हमें सिखाती हैं कि अंधकार चाहे कितना भी गहरा क्यों न हो, प्रकाश से उसका अंत निश्चित है।