नवरात्रि के दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है।
यह देवी माँ का तपस्विनी स्वरूप है, जिन्होंने भगवान शिव को पति स्वरूप पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। इनका नाम “ब्रह्मचारिणी” इसलिए पड़ा क्योंकि ये ब्रह्म (तप, ज्ञान और व्रत) का आचरण करती हैं।
✨ स्वरूप और महत्व
माता ब्रह्मचारिणी के दाएँ हाथ में जप की माला और बाएँ हाथ में कमंडलु होता है।
ये तपस्या और संयम का प्रतीक हैं।
इनकी उपासना से साधक को धैर्य, संयम और तपस्या की शक्ति प्राप्त होती है।
छात्र, साधक और जीवन में कठिन साधनाएँ करने वाले विशेष रूप से इनकी कृपा पाते हैं।
पूजन विधि
1. सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें।
2. देवी का चित्र/प्रतिमा स्थापित करें।
3. उन्हें गंगाजल से स्नान कराएँ और अक्षत, पुष्प, चंदन अर्पित करें।
4. चमेली या गुलाब के फूल चढ़ाएँ।
5. धूप-दीप जलाएँ और नैवेद्य (शक्कर, गुड़, मिश्री) का भोग लगाएँ।
6. माता का ध्यान करके उनका मंत्र जपें –
ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः।
प्रिय वस्त्र और रंग
माता ब्रह्मचारिणी को सफेद वस्त्र प्रिय हैं।
नवरात्रि के दूसरे दिन भक्त प्रायः सफेद रंग पहनते हैं।
प्रिय भोग
माता ब्रह्मचारिणी को शक्कर और गुड़ विशेष रूप से प्रिय हैं।
इनका भोग चढ़ाने से आयु, सुख-समृद्धि और तपबल में वृद्धि होती है।
पूजा का महत्व
इस दिन की पूजा से मन और विचार शुद्ध होते हैं।
साधक को आत्मसंयम और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
जीवन के कष्ट कम होते हैं और भक्ति मार्ग में दृढ़ता आती है।
माता ब्रह्मचारिणी को प्रसन्न करने का मूल मंत्र
मूल मंत्र
ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥
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ध्यान मंत्र
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलु।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
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स्तुति मंत्र
तपश्चारिणी त्वंहि तपो निष्ठा च योगिनी।
धनं देहि जपं सिद्धिं चिरंजीवत्वमेव च॥
जप विधि
स्वच्छ होकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
सामने माता की प्रतिमा/चित्र रखें।
सफेद पुष्प अर्पित करें और रुद्राक्ष या स्फटिक की माला से 108 बार “ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः” मंत्र का जप करें।
भोग में शक्कर, मिश्री या गुड़ अर्पित करें।