नवरात्रि का पावन पर्व चल रहा है। 9 अप्रैल को प्रारंभ हुई थी। आज मां भगवती की पूजा का सातवां दिन है। सातवें दिन यानी सप्तमी को मां दुर्गा के सातवें स्वरूप माता कालरात्रि (Maa Kalratri) की पूजा की जाती है. नवरात्रि में सप्तमी तिथि का विशेष महत्व है। असुरों का वध करने के लिए मां दुर्गा ने यह रूप धारण किया था।
मान्यता है कि सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा करने से भूत, प्रेत या बुरी शक्तियों से छुटकारा मिलता है और भय समाप्त होता है। जो भक्त निश्चल भाव से माता की पूजा करते हैं। श्रद्धा व भक्ति भाव से पूजा करने से कालरात्रि माता अपने भक्तों पर प्रसन्न होती है और उन्हें विशेष आशीर्वाद प्रदान करती हैं उनके जीवन को सुख समृद्धि और खुशियों से भर देती है।
माता कालरात्रि की विधिवत रूप से पूजा अर्चना औ उपवास करने से मां अपने भक्तों को सभी बुरी शक्तियां और काल से बचाती हैं अर्थात माता की पूजा करने के बाद भक्तों को अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। माता के इसी स्वरूप से सभी सिद्धियां प्राप्त होती है इसलिए तंत्र मंत्र करने वाले माता कालरात्रि की विशेष रूप से पूजा अर्चना करते हैं। माता कालरात्रि को निशा की रात भी कहा जाता है।
मां कालरात्रि की कथा -ऐसे उद्भव हुआ माता का….
असुर शुंभ निशुंभ और रक्तबीज ने सभी लोगों में हाहाकार मचाकर रखा था, इससे परेशान होकर सभी देवता भोलेनाथ के पास पहुंचे और उनसे रक्षा की प्रार्थना करने लगे। तब भोलेनाथ ने माता पार्वती को अपने भक्तों की रक्षा करने को कहा। भोलेनाथ की बात मानकर माता पार्वती ने मां दुर्गा का स्वरूप धारण कर शुभ व निशुंभ दैत्यों का वध कर दिया। जब मां दुर्गा ने रक्तबीज का भी अंत कर दिया तो उसके रक्त से लाखों रक्तबीज उत्पन्न हो गए। यह देखकर मां दुर्गा का अत्यंत क्रोध आ गया। क्रोध की वजह से मां का वर्ण श्यामल हो गया। इसी श्यामल रूप को से देवी कालरात्रि का प्राकट्य हुआ। इसके बाद मां कालरात्रि ने रक्तबीज समेत सभी दैत्यों का वध कर दिया और उनके शरीर से निकलने वाले रक्त को जमीन पर गिरने से पहले अपने मुख में भर लिया। इस तरह सभी असुरों का अंत हुआ। इस वजह से माता को शुभंकरी भी कहा गया।
मां कालरात्रि का स्वरूप
एक वेधी जपाकरर्णपूरा नग्ना खरास्थित।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकणी तैलाभयुक्तशरीरिणी।।
वामपदोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकारी।।
मां असुरों का संहार करने वाली दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि है। माता का यह स्वरूप कालिका का अवतार यानी काले रंग का है और अपने विशाल केश चारों दिशाओं में फैलाती हैं। चार भुजा वाली मां, जो वर्ण और वेश में अर्द्धनारीशवर शिव की तांडव मुद्रा में नजर आती हैं। माता के तीन नेत्र हैं और उनकी आंखों से अग्नि की वर्षा भी होती है। मां का दाहिना उपर उठा हाथ वर मुद्रा में है तो नीचे दाहिना वाला अभय मुद्रा में। बाएं वाले हाथ में लोहे का कांटा और नीचे वाले हाथ में खड़क तलवार सुशोभित है। इनकी सवारी गर्दभ यानी गधा है, जो समस्त जीव जंतुओं में सबसे ज्यादा मेहनती और निर्भय होकर अपनी अधिष्ठात्री देवी कालराात्रि को लेकर इस संसार में विचरण कर रहा है।
मां का पूजन मंत्र
ॐ यदि चापि वरो देयस्त्वयास्माकं महेश्वरि।।संस्मृता संस्मृता त्वं नो हिंसेथाः परमाऽऽपदः ॐ।
ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊं कालरात्रि दैव्ये नम:।
मां कालरात्रि की पूजन विधि
मां कालरात्रि की पूजा अन्य दिनों की तरह ही की जाती है। महासप्तमी की पूजा सुबह और रात्रि दोनों समय की जाती है। माता की पूजा लाल कंबल के आसन पर करें। स्थापित प्रतिमा या तस्वीर के साथ आसपास गंगाजल से छिड़काव करें। इसके बाद घी का दीपक जलाकर पूरे परिवार के साथ माता के जयकारे लगाएं। इसके बाद रोली, अक्षत, गुड़हल का फूल आदि चीजें अर्पित करें। साथ ही अगर आप अग्यारी करते हैं तो लौंग, बताशा, गुग्गल, हवन सामग्री अर्पित करनी चाहिए। मां कालरात्रि को गुड़हल के फूल चढ़ाएं जाते हैं और गुड़ का भोग लगाया जाता है। इसके बाद कपूर या दीपक से माता की आरती उतारें और पूरे परिवार के साथ जयकारे लगाएं। सुबह शाम आरती के बाद दुर्गा चालीसा या दुर्गा सप्तशती का पाठ कर सकते हैं और मां दुर्गा के मंत्रों का भी जप करना चाहिए। लाल चंदन की माला से मंत्रों का जप करें। अगर लाल चंदन नहीं है तो रुद्राक्ष की माला से भी माता के मंत्रों का जप कर सकते है।
मां कालरात्रि को इस चीज का लगाएं भोग
सप्तमी के दिन मां कालरात्रि को गुड़ और गुड़ से बनी चीजें जैसे मालपुआ का भोग लगाया जाता है। मां कालरात्रि को गुड अथवा गुड से बने मालपुआ पसंद है। इन चीजों का भोग लगाने से माता प्रसन्न होती हैं और सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। पूजा के समय माता को 108 गुलदाउदी फूलों से बनी माला अर्पित करें। यदि ना हो तो उसमें गुड़हल का फूल बिछाया जा सकता है।
मां कालरात्रि की आरती
कालरात्रि जय-जय-महाकाली। काल के मुह से बचाने वाली॥
दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा। महाचंडी तेरा अवतार॥
पृथ्वी और आकाश पे सारा। महाकाली है तेरा पसारा॥
खडग खप्पर रखने वाली। दुष्टों का लहू चखने वाली॥
कलकत्ता स्थान तुम्हारा। सब जगह देखूं तेरा नजारा॥
सभी देवता सब नर-नारी। गावें स्तुति सभी तुम्हारी॥
रक्तदंता और अन्नपूर्णा। कृपा करे तो कोई भी दुःख ना॥
ना कोई चिंता रहे बीमारी। ना कोई गम ना संकट भारी॥
उस पर कभी कष्ट ना आवें। महाकाली माँ जिसे बचाबे॥
तू भी भक्त प्रेम से कह। कालरात्रि माँ तेरी जय॥