नवरात्रि के पहले दिन माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है।
‘शैल’ का अर्थ है पर्वत और ‘पुत्री’ का अर्थ है पुत्री। वे पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण शैलपुत्री कहलाती हैं।
माँ शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल पुष्प होता है। वे वृषभ (बैल) पर विराजमान रहती हैं।
माँ शैलपुत्री को सभी सिद्धियों और शक्तियों का मूल आधार माना जाता है।
माँ शैलपुत्री की कथा
पिछले जन्म में वे सती थीं और भगवान शिव की पत्नी बनीं।
जब उनके पिता दक्ष प्रजापति ने भगवान शिव का अपमान किया, तब सती ने यज्ञकुंड में कूदकर अपना देह त्याग दिया।
अगले जन्म में वे हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और दुबारा भगवान शिव की अर्धांगिनी बनीं।
माँ शैलपुत्री की पूजा विधि (पहले दिन)

1. कलश स्थापना: सबसे पहले शुभ मुहूर्त में कलश स्थापित करें।
2. आसन और दीप: माँ की प्रतिमा/चित्र को स्वच्छ स्थान पर लाल या पीले वस्त्र पर रखें और घी का दीपक जलाएँ।
3. अवधान और ध्यान: हाथ जोड़कर माँ शैलपुत्री का ध्यान करें –
“वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥”
4. अर्चन और भोग: जल, अक्षत, रोली, सिंदूर, चंदन, पुष्प, दुर्वा अर्पित करें।
5. भोग:
माँ शैलपुत्री को शुद्ध घी का भोग सबसे प्रिय है।
मान्यता है कि शुद्ध घी अर्पित करने से भक्त को निरोगी काया और दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है।
माँ शैलपुत्री का प्रिय रंग

माँ को सफेद और पीला रंग विशेष रूप से प्रिय है।
पूजा के समय इन रंगों के वस्त्र धारण करना शुभ माना जाता है।
माँ शैलपुत्री के प्रिय पुष्प
माँ शैलपुत्री को सफेद पुष्प (विशेषकर चमेली और सफेद गुलाब) अर्पित करना उत्तम माना गया है।
माँ शैलपुत्री की आरती
जय शैलपुत्री माँ जय शैलपुत्री।
पर्वतराज की तुम हो दुलारी॥
वृषभ वाहिनी माँ, त्रिशूलधारी।
जय शैलपुत्री माँ, जय शैलपुत्री॥
(पूरी आरती में 4 चौपाइयाँ होती हैं, जिन्हें भजन शैली में गाया जाता है।)
माँ शैलपुत्री की उपासना का फल
साधक को आत्मिक शांति, बल और स्थिरता प्राप्त होती है।
जीवन की सभी बाधाएँ दूर होती हैं।
भक्ति मार्ग पर पहला कदम मजबूत होता है।
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