मंगलवार का दिन हनुमानजी को समर्पित होता है। लेकिन धार्मिक दृष्टि से ज्येष्ठ माह के मंगल का दिन बहुत महत्व रखता है, इन्हें बड़ा मंगल या बुढ़वा मंगल भी कहा जाता है। इस दिन बजरंगबली की विधि-विधान से पूजा करने से भक्तों को हर समस्या से छुटकारा मिल जाता है और इस दिन किए गए उपायों से हनुमान जी प्रसन्न होते हैं और उनकी कृपा से भक्तों के सारे काम बनने लगते हैं। इस साल का पहला बड़ा मंगल 28 मई यानी आज पड़ रहा है, ऐसे में हनुमान जी की कृपा के लिए विधि-विधान से पूजा करें
हनुमान जी के मंत्रों का जाप असीमित ऊर्जा और शक्ति से भर देता है। नियमित रूप से मंत्रों का जाप करने से शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या के अशुभ प्रभावों को दूर करने में भी मदद मिलती है। शास्त्रों के अनुसार, हनुमान जी को भगवान शिव का अवतार कहा जाता है। हनुमान जी के जिन भक्तों को भगवान के मंत्र नहीं आते हैं वे हनुमान चालीसा भी पढ़ सकते हैं क्योंकि भगवान हनुमान चालीसा पढ़ने से भी खुश और होते हैं और अपने भक्त की समस्त मनोकामना पूर्ण करते हैं सदैव उनकी रक्षा करते हैं।
अभी जानते हैं कि हनुमान जी के किन मंत्रो का जाप करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है-
ॐ नमो भगवते महावीराय जय श्री राम।।
लाभ-यह मंत्र हनुमान को उनके पराक्रम और शक्ति के लिए समर्पित है। इसका जाप करने से साहस और आत्मविश्वास बढ़ता है।
ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट।।
लाभ-यह मंत्र हनुमानजी को भगवान शिव का अवतार मानकर उनकी पूजा करने के लिए है। इसका जाप करने से रोगों और शत्रुओं से मुक्ति मिलती है।
मनोजवं मारुततुल्यवेगं, जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं, श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥
लाभ-इस मंत्र का जाप करने से बजरंगबली प्रसन्न होते हैं। अपने भक्तों को सुख एवं समृद्धि प्रदान करते हैं। साथ ही अपने भक्तों की मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं और दुखों को दूर करते हैं।
ॐ नमो भगवते महावीराय जय श्री राम।।
लाभ-यह मंत्र हनुमान को उनके पराक्रम और शक्ति के लिए समर्पित है। इसका जाप करने से साहस और आत्मविश्वास बढ़ता है।
हनुमान जी की चालीसा
हनुमान जी की चालीसा प्रतिदिन पढ़ने से सभी रोगों दोषों से मुक्ति मिलती है और हनुमान जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है तथा समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को हनुमान चालीसा का पाठ प्रतिदिन करना चाहिए। आईए जानते है संपूर्ण हनुमान चालीसा-
दोहा
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
चौपाई :
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा।।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
कांधे मूंज जनेऊ साजै।
संकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन।।
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज संवारे।।
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा।।
जम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना।।
जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना।।
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा।
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै।।
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु-संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे।।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै।।
अन्तकाल रघुबर पुर जाई।
जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।।
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
जै जै जै हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई।।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।।
दोहा :
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।