होली और दीवाली दो त्योहार ऐसे थे, जिनपर महाराज कृष्ण देवराय अपने दरबारियों को विशेष उपाधियां दिया करते थे। दीवाली पर पंडित श्री की उपाधि दी जाती थी और होली पर महामूर्ख राज की, इत्तफाक ही कहा जाएगा कि अपनी तीक्ष्ण बुद्धि के बल पर हर बार यह उपाधियां और इससे संबंधित उपहार तेनाली राम ही झटक ले जाते थे। इस बार भी होली का त्योहार आया तो चारों ओर धूम मच गई। सभी दरबारियों की एक गुप्त सभा हुई जिसमे तय हुआ कि इस बार महामूर्ख राज का खिताब और उपहार तेनाली राम को नहीं लेने दिया जाएगा।महाराज की ओर से इस बार दस हजार स्वर्ण मुद्राएं का इनाम घोषित किया गया था। खैर, इस बार सभी दरबारियों ने फैसला कर लिया, की खिताब और उपहार तेनाली राम को ना लेने दिया जाए, इसके लिए उन्होंने तेनाली राम के खास सेवक को पढ़ा-लिखा कर व इनाम का लालच देकर तेनालीराम को छककर भांग पिलवा दी।ताकि होली उत्सव पर वह अपने घर पर ही सोता रहे और राजकीय उत्सव में शामिल न हो सके। दोपहर बाद तेनाली राम का नशा कुछ हल्का हुआ तो हड़बढ़ाकर वह उठा और घबराहट में ही राजमहल की ओर दौड़ पड़ा। राजा कृष्ण देव राय उसे देखते ही डपटकर बोले – “अरे तेनाली राम! यह क्या मूर्खता की आज के दिन भी भांग घोट कर सो गए।तेनालीराम पर झाड़ पड़ते देखकर सभी दरबारी प्रसन्न उठे और बोले,
“आप बिल्कुल ठीक कहते हैं महाराज! सचमुच बड़ा ही मूर्खतापूर्ण कार्य किया है तेनालीराम ने। यह मूर्ख ही नहीं बल्कि महामुर्ख है।”
हां महामूर्ख!महाराज के श्री मुख से सुनते ही तेनालीराम की आंखें चमक उठी। वह बोला”,
आपने मुझे महामूर्ख कहा महाराज?
तुम्हारा कार्य ही मूर्खो जैसा है। तुम्हें तो इस राजकीय कार्य में सबसे पहले उपस्थित होना चाहिए था।इसलिए मैं महामूर्ख हुआ – तेनाली राम बोला।बिल्कुल। महाराज चटखारा लेते हुए बोले।क्यों भाईयो-तेनाली राम दरबारियों की ओर घूम गए। फिर पूछा”,
क्या आप लोग भी ऐसा ही समझते हैं कि मैं महामूर्ख हूं ?
हाँ, बिल्कुल, तुम महामूर्ख हो ? – सभी दरबारी एक स्वर में बोले ।महाराज!- तेनालीराम महाराज से मुखातिब होकर बोला आपका और पूरी सभा का आज होली उत्सव पर यह फैसला है, कि मैं महामूर्ख हूं, इसलिए महाराज से मेरा निवेदन है, कि इस उत्सव की सबसे बड़ी उपाधि मूर्खराज और सबसे बड़ा पुरुस्कार, दस हजार स्वर्ण मुद्राएं मुझे प्रधान करने की कृपा करें।और इस प्रकार होली के अवसर की सबसे बड़ी उपाधि और पुरस्कार तेनाली राम ने झपट लिया। उसकी चतुराई देखकर महाराज मन ही मन उसकी प्रशंसा किए बिना न रह सके।