जन्म और मृत्यु यह दो चीजें जीवन का एक वह सच है जिसे प्रत्येक मनुष्य को स्वीकारना ही पड़ता है। इस सत्य से कोई भी व्यक्ति भाग नहीं सकता है क्योंकि प्रकृति का शाश्वत नियम है जन्म और मृत्यु।
यह एक ऐसा सत्य है जो अनंत काल से चल रहा था, आज भी चल रहा है और आगे भी चलेगा।जब तक कि व्यक्ति को मोक्ष प्राप्ति ना हो जाए तब तक यह यात्रा चिर कालीन चलती ही रहेगी। आत्मा पैदा होने से पहले भी परमात्मा का हिस्सा होती है और मौत के बाद भी परमात्मा में ही विलीन हो जाती है। हम किस श्रेणी में किस योनि में और किसी जगह जन्म लेते है यह हमारी जीवन और पूर्व जीवन में किए गए कर्मों पर निर्भर करता है। हमारे गलत कर्म से हमें निम्न योनि जैसे जानवर कीड़े मकोड़े में जन्म लेना पड़ता है और जब हम बहुत अच्छे कर्म करते हैं तो हमें उच्च योनि जैसे मानव जीवन प्राप्त होता है। मानव जीवन को सबसे उच्च योनि समझा जाता है।
शास्त्र कहते हैं कि “ मोक्ष तो बहुत ही पुण्य आत्मा वाले को ही मिलता है ,जिसके कर्मों में सत्कर्म छुपा हो और जिसकी आत्मा में परमात्मा का वास हो। जो हृदय से निर्मल हो ऐसे परम पुरुष में ही प्रभु का वास होता है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।”

अहिंसा और संयम से ही व्यक्ति का कल्याण संभव है व्यक्ति को अपनी कामनाओं , इंद्रियों व इच्छाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए क्योंकि जो सच्चा सुख और शांति निर्बल और असहाय लोगों की सेवा व सहायता करने से मिलता है, वह सुख आपको धन- वैभव ,सुख- सुविधाएं से नहीं मिल सकता। व्यक्ति को कितना भी धन प्राप्त हो जाए परंतु मन को यदि शांति प्राप्त ना हो तो ऐसा सुख किसी काम का नहीं होता है।
प्रेम और अहिंसा से ही संसार को वश में किया जा सकता है इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को उदार प्रेमी बनना चाहिए। प्रेम हमारे जीवन को एक विशेष उद्देश्य से जोड़ता हैं। जब सीधा सच्चा इंसान जिंदगी में बहुत संघर्ष करता है और कष्ट सहता है तो उसका जीवन मोह से भंग हो जाता है यानि वह वैरागी हो जाता है । महात्मा बुद्ध के मन में मरते लोगों और दीन दुखियों को देख कर वैराग उत्पन्न हो गया था। वे अपना राजपाट छोड़कर तपस्या करने चले गए थे ।इस प्रकार महात्मा बुद्ध को मोक्ष की प्राप्ति हुई अर्थात जब आप जीवन के मोह को त्याग कर अपना जीवन सत्कर्म और सत्य के मार्ग पर समर्पित करते हैं तो समझ लीजिए आपका जीवन सफल हो गया।

भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को यही समझाया कि वैराग्य, मौत से पूर्व की स्थिति होती है। मरता तो सिर्फ शरीर है, आत्मा अजर अमर होती है। जिसे न तो कोई मार सकता है ना कोई काट सकता है और ना ही कोई जला सकता है
चोरी, हिंसा, क्रोध, काम, मद, लोभ ,मोह ,आत्मा को अपवित्र करते हैं जबकि प्रेम, व्यक्ति को अध्यात्म में प्रवृत्त रहना चाहिए । इंसान को जप व तप करते रहना चाहिए क्योंकि मधुर वचन ही सर्वोच्च जप और तप है। आपका व्यवहार आपके कर्मों का निर्धारण करता है और यही आप को सही दिशा प्रदान करता है। सद्भावना ,सहायता,ईमानदारी,करुणा,निष्ठा, दया,आदि यह सभी चीजें हमेशा आप को सही दिशा प्रदान करके आपको सही मार्ग प्रशस्त करती हैं इसलिए हम सभी को हमेशा इन सब गुणों की तरफ प्रेरित होना चाहिए और दुर्गुणों से दूर रहना चाहिए।
गीता के अनुसार मोक्ष का अर्थ – ‘ सर्वशक्तिमान बन जाना है’। सनातन धर्म में यहां तक पहुंचने के लिए सैकड़ों मार्ग प्रस्तुत किए गए हैं गीता में उन सब को 4 मार्गों में समेटा गया है-
- कर्म योग, सांख्य योग ,ज्ञान योग व भक्ति योग
इस युग में मुक्त की प्राप्ति के लिए प्रत्येक व्यक्ति को धर्म, अर्थ और काम नाम के 3 मार्गो का पालन करना ही चाहिए। इसका प्रभाव व्यक्ति के कर्म पर भी पड़ता है ।भगवान बुद्ध ने परम शांति को ही मुक्ति बताया है। उन्होंने स्वयं शांति को ही मुक्त के रूप में अपनाया भी है। सत्य के प्रकाश का दर्शन अचेतन मन की एकाग्रता के माध्यम से मिलता है। मोक्ष की प्राप्ति के लिए मन का शुद्ध होना अत्यंत आवश्यक है। यह भगवान की कृपा से होता है।