नेल्सन मंडेला को दूसरा गांधी माना जाता है दक्षिण अफ्रीका को नस्लवाद की काली छाया से निकालकर लोकतंत्र की राह पर लाने वाले नेल्सन मंडेला का मानना था कि सही हक के लिए लड़ना चाहिए और अपने हक को कभी नहीं छोड़ना चाहिए पर दूसरों के अधिकारों का उल्लंघन किए बिना ही उसे प्राप्त किया जाए तो ही वास सार्थक और सिद्ध होता है।
यदि विचारों की दृष्टि से बात करें तुम खुद को महात्मा गांधी के नजदीक पाते थे क्योंकि उनके विचार और गांधीजी के विचार लगभग मिलते-जुलते थे। यह प्रभाव उनके आंदोलनों में भी दिखाई देता है उनके विचारों की स्पष्टता की झलक उनके भाषण के दौरान उनके व्यवहार में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है। मंडेला की जीवटता के कारण ही जनता ने उन्हें ‘ मदीबा ‘ यानी पिता का दर्जा दिया था।
जिस प्रकार हम अपने महात्मा गांधी जी को राष्ट्रपिता के पुकारते हैं उसी प्रकार अफ्रीका में मंडेला को वहां के लोग प्यार से मदीबा कहकर पुकारते थे।
नेल्सन मंडेला का प्रारंभिक जीवन व शिक्षा दीक्षा
वी दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति बनने वाले पहले अश्वेत व्यक्ति थे उनका जन्म 18 जुलाई 1918 को हुआ था उनके पिता उनके पिता उन्हें प्यार से रोहिल्हाला यानि नटखट बच्चा कहते थे। क्योंकि वह बचपन में बहुत शरारती थी और उनका पढ़ने लिखने से ज्यादा मन राजनीति क्षेत्र में लगता था। मंडेला अपने पिता की तीसरी पत्नी नेफ्यू नोसकेनी की पहली संतान थे। वह 12 साल के ही थे जब उनकी पिताजी चल बसे उन्होंने क्लार्क बेरी स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा पूरी की जीवन में बहुत संघर्ष किया अश्वेत वर्ग से आते थे उन दिनों अश्वेत होना एक अपराध माना जाता था ।इस अन्याय ने उनमें असंतोष की भावना पैदा कर दी ।
कुछ समय बाद उनकी दोस्ती और अलीवार तांबो नाम की एक महिला से हुई। दोनों को 1940 तक अपने राजनीतिक विचारों ने कॉलेज में लोकप्रिय बना दिया। मंडेला को क्रांति की राह पर देखकर परिवार को काफी परेशान रहता था उनको लगता था कि उनका बच्चा शायद आगे नहीं बढ़ पाएगा क्योंकि वह इसी राजनीति में फंसा ही रह जाएगा
वैवाहिक जीवन
1944 में मंडेला की जिंदगी में एल्विन आई और दोनों शादी के बंधन में बंध गए।i
राजनीतिक जीवन
इसी साल उन्होंने कुछ साथियों कि साथ मिलकर अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस यूथ लीग बनाई बाद में वे इसके अध्यक्ष भी रहे। नेल्सन मंडेला ने अश्वेतो की आजादी के लिए काफी संघर्ष किया। आंदोलन में इतनी शक्ति ताकि बढ़ने के कारण उनकी पत्नि उन्हे काफी समझाने लगी कि वे राजनीति छोड़ दें परंतु जब वे नहीं माने तो उनकी पत्नी एल्विन ने उनका साथ छोड़ दिया और वह अकेले पड़ गए।
इतनी संघर्ष भरी जिंदगी ऊपर से पत्नी के चले जाने के कारण वे अत्यंत द्रवित हुए परंतु उन्होंने हार नहीं मानी और आंदोलन में सक्रिय रहें जिससे उनकी लोकप्रियता काफी बढ़ गई परंतु सरकार को उनकी लोकप्रियता रास नहीं आई और भी उनसे चिड़ने लगे। पूरे देश में गिरफ्तारियां शुरू हो गई मंडेला उनके साथियों पर देश के विरुद्ध युद्ध और देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया ।मुकदमे के दौरान ही मंडेला की मुलाकात नोमजामो बिनी से भी जो कि उनकी दूसरी जीवनसंगिनी बनी।
जेल में गिरफ्तारी के बाद
जब मंडेला को गिरफ्तार किया गया तूने सजा सुनाकर रॉबेन द्वीप पर भेज दिया गया। यह स्थान दक्षिण अफ्रीका का काला पानी माना जाता है। इस प्रकार से उन्हें काले पानी की सजा दी गई ।सत्ता परिवर्तन के पश्चात दक्षिण अफ्रीका में क्लार्क मुखिया बने उन्हें सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा कर दिया और उनमें से एक मंडेला भी एक थे जिन्हे फरवरी 1990 को आखिरकार पूरी तरीके से रिहा कर दिया गया ।हम आपको बता दें कि नेल्सन मंडेला कुल 27 वर्ष जेल में रहे हैं फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और लगातार देश की आंदोलन में सक्रिय रहे और पूर्ण रूप से भागीदारी की।
दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने नेलसन मंडेला
नेल्सन मंडेला का अदम्य साहस और संघर्ष हमें आज भी प्रेरणा देता है। जब 1994 में हुए चुनाव हुए तो दक्षिण अफ्रीका को रंगभेद से मुक्ति दिलाने वाले नेल्सन मंडेला देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने और 1999 तक वे इस पद पर रहे और देश की सेवा की।
नोबेल पुरस्कार विजेता रहे नेल्सन मंडेला
1993 में उन्हें नोबेल पुरस्कार सम्मानित किया गया राष्ट्रपति पद छोड़ने के बाद नेल्सन मंडेला ने एचआईवी के खिलाफ मुहिम शुरू कर दी जिसमें रूप से सक्रिय रहे।
बॉक्सर रहे नेल्सन मंडेला शुरू से ही जुझारू प्रवृत्ति के व्यक्ति थे ।पहले तो वे जोहांसबर्ग में वकालत करने लगे लेकिन रंगभेद के खिलाफ लड़ाई में एक बार जो जेल गए तो जेल आना जाने का सिलसिला उनका लगातार चलता ही रहा। जिंदगी के 27 साल जेल में काटे पूरी जवानी यू मानो जेल में ही बीत गई।
वे 1990 में ही जेल से रिहा हो सके 5 दिसंबर 2013 को लंबी बीमारी के बाद उनका देहांत हो गया। 27 साल का जेल जीवन किसी अद्भुत कथा की तरह लगता है यह जेल में रहते हुए उन्हें न सिर्फ कड़ी मेहनत करनी पड़ी बल्कि जज्बात पर भी काबू रखना पड़ा जेल के सामने नेल्सन मंडेला ने कभी खुद को कमजोर नहीं दिखाया मंडेला ने अपनी आत्मकथा लॉन्ग वॉक टु फ्रीडम में लिखा है
“मैं कभी भी ऐसा शख्स नहीं था जो सार्वजनिक तौर पर अपनी निजी जिंदगी के बारे में बताने में सहज महसूस करें” मंडेला को पहली बार 1962 में रॉबेन आईलैंड भेजा गया जेल भेजा गया जेल के वार्डन क्रिस्टो ब्रांड ने बताया
वह मेरे साथ हमेशा दोस्ताना सौम्य और मददगार की तरह व्यवहार करते थे ऐसा माना कि दुनिया ने एक और गांधी खो दिया क्योंकि वह हमारे पूज्य बापू जी की तरह ही उच्च कोटि के विचारों वाले सम्माननीय व्यक्ति थे।