चलचित्र की अवधारणा को भारत में लूमियर बंधु लाए थे। उन्होंने 1896 में 6 मूक फिल्में मुंबई में प्रदर्शित की थी जो उसमें के दर्शकों को अपनी और आकर्षित करने में सफल रही।
1910 से 1920 तक के दशक में मूक फिल्मों की भरमार रही। भले ही उन्हें मूक फिल्में कहा जाता था तब भी वे पूर्णतया मूक नहीं होती थी। उनके साथ संगीत और डांस भी चलता रहता था जब पर्दे उसको को प्रदर्शित किया जाता था तब भी उनके संगीत जैसे सारंगी, तबला,हारमोनियम और वायलिन पर संगीत बजाया जाता था। भारत और ब्रिटेन द्वारा पहली बार परस्पर सहयोग से एक मुक्त फिल्म का निर्माण वर्ष 1912 में एजी चित्र और आरजी टर्नी के द्वारा किया गया इस फिल्म का नाम पुंडलिक था।
दादा साहेब फाल्के ने वर्ष 1913 में पहली स्वदेशी फिल्म राजा हरिश्चंद्र का निर्माण किया उन्हें भारतीय सिनेमा के पिता के रूप में जाना जाता है और मोहिनी, भस्मासुर, सत्यवान सावित्री जैसे फिल्मों के लिए भी उन्हें श्रेय दिया जाता है। बॉक्स ऑफिस पर पहली बार सफल फिल्म लंका दहन 1917 को बनाने का श्रेय भी इन्हीं को दिया जाता है।
वर्ष 1918 में दो फिल्में कंपनियों की आरंभ होने से फिल्म निर्माण प्रक्रिया को बहुत प्रोत्साहन मिला था वे कंपनियां थी कोहिनूर फिल्म कंपनी और दादा साहब फाल्के की हिंदुस्तान सिनेमा फिल्म कंपनी जैसी फिल्मों से अच्छी कमाई होनी शुरू हो गई तो सरकार ने वर्ष 1922 में कोलकाता में मनोरंजन कर लगा दिया अगले वर्ष यह मुंबई में भी लग गया था तब फिल्म कंपनियां ने बाबूराव पेंटर,सुचेत सिंह और शांताराम जैसे फिल्म निर्माताओं को फिल्म को फिल्म बनाने का अवसर प्रदान किया और कुछ उत्कृष्ट फिल्मों का निर्माण किया। इस प्रकार राजा हरिश्चंद्र फिल्म को भारतीय सिनेमा जगत की प्रथम ब्लैक एंड वाइट or मूक फ़िल्म का दर्जा दिया गया। जबकि पहली अमूक फिल्म आलम आरा को कहा जाता है।
इसके प्रदर्शन 1931 में मुंबई के मैजिस्टिक सिनेमा हॉल में हुआ था। इस फिल्म में डब्ल्यूएम खान के कुछ अविस्मरणीय गीत गाए गए थे जो भारत के पहले चलचित्र गायक थे और उनका गीत दे खुदा के नाम पर भारत के सिनेमा जगत के इतिहास में रिकॉर्ड किया जाने वाला पहला गीता