एक बार की बात है। कोलकत्ते के एक स्कूल से विद्यार्थियों का एक समूह विलियम फोर्ट देखने गया । किले की सुंदरता बहुत अद्वितीय थी, बच्चे उस किले की एक -एक चीज देखने के लिए बहुत अधिक उत्साहित थे । उस समूह के सभी बच्चे तो अत्यंत तेज थे परन्तु उनके समूह का एक बालक तेज दौड़ने ,चलने में योग्य नहीं था वह बेचारा ठीक तरह से दौड़ना तो दूर चल भी नहीं पा रहा था ।
जब उसे ऐसा लगा कि वह सब की तरह तेज गति से चलने में असमर्थ है तो उसने अपने साथियो से कहा -“भाइयो मेरे पेट में बहुत दर्द है मुझसे तो चला ही नहीं जा रहा है तुम सब मेरी थोड़ी मदद कर दो” उसके साथियो ने उसका मजाक उड़ाना शुरू कर दिया। अंत में किसी ने उसका साथ न देकर उसे उसके बुरे हाल पर सीढ़ियों पर छोड़ कर आगे चले गए ।
थोड़ी दूर आगे बढ़ने के बाद उस समूह के एक बच्चे ने सोचा कि अपने मित्र को इस तरह रास्ते में छोड़ना सही नहीं है। किला तो हम कभी भी देख लेंगे परन्तु यदि उसे कुछ हो गया तो उसके माता -पिता को बहुत पीड़ा होगी । उसके बाद वह बालक तत्काल उन्ही सीढ़ियों पर वापस लौट गया, जिस जगह पर उसके दोस्तों ने उस कमजोर बच्चे को छोड़ा था। वहां पहुंचने के बाद उसने देखा कि वह बच्चा बेहोश पड़ा था। उस छोटे से बच्चे ने कुछ बड़े लोगो की मदद से बेहोश बच्चे को हॉस्पिटल पहुंचाया और फिर उसके घर पर जाकर सूचना दी ।
उसी जगह किनारे खड़ा एक बच्चा तेज -तेज रो रहा था। वजह पूछने पर उस बच्चे ने बताया कि पहले तो मैं इस कमजोर बच्चे का मजाक उडा रहा था परन्तु अब मुझे बहुत पछतावा हो रहा है ,क्युकी यदि इसे कुछ हो जाता तो मैं अपने आप को कभी माफ़ नहीं कर पाता इसलिए हम भी उसके पीछे पीछे आ गए। कमजोर बच्चे के माता -पिता ने उस बच्चे को प्यार किया और उसे बहुत आशीर्वाद दिया। उस कमजोर बच्चे का नाम तो आज कोई नहीं जानता होगा परन्तु उसे अस्पताल पहुंचाने वाले बच्चे का नाम तो आज हर कोई जानता है। यह बच्चा कोई और नहीं बल्कि नरेन्द्रनाथ था जो आगे चलकर विवेकानंद के नाम से विश्व में प्रसिद्द हुआ साथ ही इन्होने संसार भर में एकता व भाई चारे का संदेश फैलाया ।