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Home»inspirational»बिना रुके लगातार मेंहनत करने से अज्ञानी भी ज्ञानी बन सकता है …
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बिना रुके लगातार मेंहनत करने से अज्ञानी भी ज्ञानी बन सकता है …

By Archana DwivediUpdated:March 18, 2023
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“हारता वही है जो कुछ करता नहीं है “

आज का समय ऐसा है की जो लोग बुद्धिमान हैं, सिर्फ वही लोग सफल हो रहे हैं , और जो लोग सही समय पर अपनी बुद्धि का उपयोग नहीं करते हैं, वो लोग सफलता प्राप्त नहीं कर पाते हैं। यदि बुद्धिमान बनना है तो लगातार ज्ञान प्राप्त करने के लिए हमे बिना रुके कोशिश करते रहना चाहिए।

यदि हम किसी भी काम को लगातार करते रहते है , तो एक न एक दिन हमे उस काम में सफलता अवश्य मिलती है . हम इसी का उदारण ले लेते है जैसे की -:

महाकवि कालिदास , ये बहुत ही महान कवि थे , परन्तु प्रारंभिक जीवन में वे बहुत ही अनपढ़ थे, कालिदास का विवाह विद्योत्तमा नाम की एक बुद्धिमान राजकुमारी से हुआ था। विद्योत्तमा की एक शर्त थी कि जो उसे शास्त्रार्थ में हरा देगा उस पुरुष से विवाह कर लेगी . शास्त्रार्थ का अर्थ है की (शास्त्रों के संबंध में वाद-विवाद प्रतियोगिता) । विद्योत्तमा एक ऐसी कन्या थी जिसने शास्त्रार्थ में सभी विद्वानों तक को हरा दिया था। कई लोगो ने कहा की कालिदास का विद्योत्तमा से शास्त्रार्थ करवा दिया जाये , उस समय कालिदास अज्ञानी थे।

शास्त्रार्थ के समय विद्योत्तमा ने कालिदास से प्रश्न पूछे। कालिदास ने भी अपनी बुद्धि लगाकर उसे उसके मौन प्रश्नों के उत्तर संकेतों में ही दिए। विद्योत्तमा को लग रहा था कि कालिदास इन सभी प्रश्नो के सही जवाब दे रहे हैं। विद्योत्तमा ने कालिदास से जो अगला प्रश्न पूछा उसमे विद्योत्तमा ने कालिदास को खुला हाथ दिखाया , कालिदास ने समझा कि विद्योत्तमा उसे थप्पड़ दिखा रही है । इसी लिए इस प्रश्न के जवाब में कालिदास ने विद्योत्तमा को घूंसा दिखा दिया परन्तु उसे देखकर विद्योत्तमा कुछ और ही समझ रही थी उन्हें लगा की कालिदास कहना चाहते है कि पांचों इन्द्रियां भले ही अलग अलग क्यों न हो पर वे सभी एक है किसी एक के न होने से बहुत कठिनाई होती है , इस प्रकार विद्योत्तमा कालिदास से प्रसन्न हो गई और उन्होंने कालिदास से विवाह कर लिया ।

इस प्रकार कालिदास मूर्ख होते हुए भी राजकुमारी के सामने विद्वान् सिद्द हुए और उनका विवाह एक राजकुमारी के साथ हो गया ।

हाँलाकि बाद में अपनी पत्नी विद्दोत्तमा की आलोचना करने पर उनसे विरक्त होकर कालिदास ने मां काली की कठिन तपस्या की और देवी मां के आशीर्वाद से वह विद्वान बने। जिन्हे आज संस्कृत के प्रकांड विद्वान् माना जाता है।उन्होंने भारत की पौराणिक कथाओ और दर्शन को आधार बनाकर रचनाएँ की और उनकी रचनाओं में भारतीय जीवन और दर्शन के विविध रूप और मूल तत्त्व निरूपित हैं। कालिदास अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण राष्ट्र की समग्र राष्ट्रीय चेतना को स्वर देने वाले कवि माने जाते हैं और कुछ विद्वान उन्हें राष्ट्रीय कवि का स्थान तक देते हैं।

इन्होने संस्कृत के कई ग्रंथो जैसे –अभिज्ञान शाकुन्तलम्, विक्रमोर्वशीयम् और मालविकाग्निमित्रम्; दो महाकाव्य: रघुवंशम् और कुमारसंभवम्; और दो खण्डकाव्य: मेघदूतम् और ऋतुसंहार आदि की रचना की।

इस प्रकार दोस्तों , यदि आप भी लगातार प्रयास करते है तो आप भी विद्वान्, योग्य और सफल व्यक्ति बन सकते है।

क्योंकि,

“रात नहीं ख्वाब बदलता है ,

मंजिल नहीं कारवां बदलता है ।

जज्बा रखे हरदम जीतने का ,

क्योंकि, किस्मत चाहे बदले न बदले

पर वक्त जरूर बदलता है ।।”

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I’m Archana Dwivedi - a dedicated educator and founder of an educational institute. With a passion for teaching and learning, I strive to provide quality education and a nurturing environment that empowers students to achieve their full potential.

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