बहुत पहले की बात है एक व्यक्ति जोकि बहुत प्यासा था भटकते भटकते एक मरुस्थल मार्ग में आ गया। बहुत अथक प्रयास करता रहा परंतु उसे एक भी बूंद पानी पीने को नहीं मिला।
उसके अत्यधिक प्रयास के बाद बहुत दूर पर उसे एक तालाब दिखाई पड़ा जब उसने वहां पर जाकर देखा तो उसे वहां तालाब के अतिरिक्त एक छोटा सा पात्र दिखाई दिया जिससे वह आसानी से पानी पी सकता था।
जब उस व्यक्ति ने उस पात्र का प्रयोग करके पानी पिया तो उसे पानी बहुत ही कड़वा और जहरीला लगा। उसे लगा कि इस तालाब का पानी जहरीला है। इस प्रकार जब वह थोड़ा आगे बढ़ा तो उसे एक दूसरा तालाब दिखाई पड़ा परंतु वहां भी उसने वही अनुभव किया।
प्यास से जब उस व्यक्ति का कंठ सूखने लगा तो वह व्यक्ति भगवान से प्रार्थना करने लगा कि-” हे भगवान मुझे प्यास लगी है थोड़ा सा पानी दे दो ताकि मेरी प्यास बुझ सके”। ईश्वर के आशीर्वाद से उसे थोड़ी दूर चलने के बाद एक नदी दिखाई पड़ी पहले वाले पात्र के माध्यम से उस नदी का पानी पीने पर व्यक्ति को पानी पुनः कड़वा और बेकार लगा।उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा है। हर जगह का पानी इतना कड़वा और बेकार कैसे हो सकता है? तत्काल उस समय उस व्यक्ति को वहां पर एक साधु मिले उस व्यक्ति ने साधु से पूछा हे साधु महाराज! मैं जिस भी तालाब या नदी का पानी पी रहा हूं वह मुझे कड़वा लग रहा है ऐसा क्यों?
साधु ने कहा कि तुम्हारे पात्र में खराबी है पानी में नहीं। तुम पात्र के बजाय पानी हाथ से सीधी पियो तो तुम्हें पानी मीठा और स्वादिष्ट लगेगा।
दोस्तों यह संदेश था महात्मा बुद्ध जी का। महात्मा बुद्ध जी कहते हैं कि हमारी मनोदशा भी कुछ ऐसी ही है हमें प्रतिष्ठा चाहिए,धन चाहिए,पद चाहिए और परमात्मा भी चाहिए इसके इसके अलावा शांति की भी कामना करते हैं। हमारी आकांक्षाओं का पात्र इतना जहरीला होता है कि उसमें शांति आनंद और परमात्मा का वास कैसे हो सकेगा? उस आकांक्षा रूपी पात्र में परमात्मा को पाने की आकांक्षा भी जहरीली लगती है और हमें दुख देती है।
महात्मा बुद्ध जी सदैव् संदेश देते हैं कि व्यक्ति को हमेशा चार कदम से ज्यादा आगे नहीं देखना चाहिए।लक्ष्य उतनी ही दूर तक बनाए जितना कि आप पूरा कर सकें। चलने के लिए उतने ही कदम तय करने चाहिए जितने कि पर्याप्त हो। जो सुनने योग्य नहीं है उसे सुनना यह नहीं चाहिए जो देखने योग्य नहीं है उसे देखना नहीं चाहिए और जो छूने योग्य नहीं है उसे छूना नहीं चाहिए। साथ ही जो बोलने योग्य नहीं है उसे बोलना नहीं चाहिए। इसी में व्यक्ति की भलाई है।यदि आप इस मार्ग का अनुसरण करते हैं तो सच मानिए कि आपके जीवन में सदैव खुशहाली रहेगी और अब शांतिपूर्ण जिंदगी जी सकेंगे।