नारी और पुरुष दोनों ही सृष्टि के अभिन्न अंग हैं। दोनों को एक-दूसरे के पूरक और सहभागी माना जाता है।
प्राचीन काल से ही नारी को शक्ति का स्वरूप मानकर उसकी पूजा होती रही है। कहते हैं-
“यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता”
अर्थात जहाँ नारी की पूजा की जाती है,वही देवता निवास करते है।” क्योंकि नारी लक्ष्मी का रूप होती है।
श्री सूक्त नारी की महिमा और महत्व बताने के लिए पर्याप्त है। हमारे पौराणिक ग्रंथों में भी यह वर्णित है कि सृष्टि की कल्पना को साकार करने हेतु विधाता को नारी की आवश्यकता का अनुभव हुआ और नारी के आगमन के पश्चात ही सृष्टि का विस्तार संभव हुआ। सावित्री से लेकर गार्गी, कौशल्या, सुमित्रा , सती, अनुसुइया ,सीता, उर्मिला की बात हो या महारानी लक्ष्मीबाई ,कस्तूरबा गांधी, सरोजिनी नायडू, सावित्रीबाई फुले, और इंदिरा गांधी। आज हमें नारी के संकल्प दृढ़ इच्छाशक्ति की झलक सत्यमेव दिख जाती है। नारी को शक्ति स्वरूपा माना जाता है किंतु बड़ी अजीब विडंबना है कि आज नारी की स्थिति अच्छी नहीं कही जा सकती है, जबकि देश में नारी सशक्तिकरण की कल्पना को मूर्त रूप प्रदान किए जाने हेतु जोर शोर से निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। हमारा देश आज भी पुरुष प्रधान देश माना जाता है जहां पर आज भी काफी हद तक नारी बंधन मुक्त नहीं है। अशिक्षा व समानता भ्रूण हत्या घरेलू हिंसा दहेज प्रथा आदि की समस्याएं समाज में बुरी तरह से फैली हुई हैं। और आए दिन कोई न कोई महिला इसका शिकार होती जा रही है पर्दा प्रथा ,बाल विवाह, शिक्षा देना नौकरी में व्यवधान एवं पुनर्विवाह को लेकर संकीर्ण मानसिकता के चलते भी समाज में महिलाओं की स्थिति खराब करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है। ऐसे ही विभिन्न परिस्थितियों की दृष्टिपात नारी सशक्तिकरण के विचार अस्तित्व में आया इसके माध्यम से नारी को सामाजिक आर्थिक रूप से संपन्न बनाते हुए उसके सर्वागीण विकास का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
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सशक्तिकरण का अर्थ है, दोस्तों ‘गति’ अर्थात निरंतर गतिमान विकासात्मक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से निर्बल को सफल बनाया जा सकता है एक व्यक्ति वह है जो अपने निर्णय स्वयं स्वतंत्र रूप से ले सके। जीवन हेतु आवश्यक संसाधन बिना किसी भेदभाव के समान रूप से मिल सके और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि देश की प्रगति नारी की प्रगति के बिना नहीं हो सकती है महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने के रूप में समझ सकते हैं जिससे उन्हें शिक्षा, नौकरी ,रोजगार तथा आर्थिक संपन्नता के पर्याप्त अवसर मिल सके सामाजिक स्वतंत्रता प्राप्त कर सके और उन्नति कर सकें।
महिला सशक्तिकरण मात्र महिलाओं को अधिकार दिलाने, उनका जीवन स्तर ऊंचा उठाने से संबंधित नहीं है बल्कि उनकी निजता की सुरक्षा और सम्मान भी परम आवश्यक है। प्रत्येक व्यक्ति को अपना अधिकार है। और महिलाओं के संदर्भ में तो ये और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है । इस प्रकार महिलाओं का सम्मान किया जाना अति आवश्यक है।
वास्तव में महिला सशक्तिकरण भी तभी सफल माना जा सकता है जब महिलाओं का निजी सुरक्षा और सम्मान उसमें निहित है ।
जरा सोचिए कि यदि केवल केवल नारी सशक्तिकरण के आंकड़ों को ही लक्ष्य मान ले और नारी के निजता व सम्मान की बात ना करें तो क्या महिला सशक्तिकरण को सफल माना जा सकता है ?
हमारा लक्ष्य महिलाओं के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक सुधार लाना ही नहीं बल्कि उनकी और सम्मान की रक्षा करना भी आवश्यक है। यदि उनका निजता और सम्मान ही नहीं होगा तो नारी सशक्तिकरण का लक्ष्य कैसे सफल हो सकता है ?
आज महिला सशक्तिकरण योजना चलाई जा रही है। उन पर ज्यादा ध्यान दिया जाए , महिलाओं को ज्यादा से ज्यादा सम्मान दिया जाए साथ ही साथ महिलाओं के सम्मान के साथ महिला सफलता हेतु प्रयास किए जाने चाहिए। ताकि इस दिवस को मनाने का लक्ष्य प्राप्त किया जा सके। एक नारी की प्रगति पर ही देश,समाज की प्रगति निर्भर करती है।
अतः हमें नारी सशक्तिकरण को बढ़ावा देना चाहिए।
इसी के साथ में एक पंक्ति लिखना चाहूंगी-
नारी ही है समाज की कर्ण धार,
नारी के बिना है, सब कुछ बेकार।
नारी से ही है समाज काअस्तित्व,
और नारी ही है, पुरूष की प्रगति का आधार।।