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Home»tenali raman stories»तेनालीराम की कहानियां – तेनाली की आत्मा
tenali raman stories

तेनालीराम की कहानियां – तेनाली की आत्मा

By Archana Dwivedi
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एक बार किसी बात से रुष्ट होकर महाराज कृष्णादेव राय ने तेनालीराम को मृत्युदंड दे दिया। समाचार आग की तरह पूरे नगर में फैल गया। जिस दिन यह समाचार फैला उसी दिन से तेनालीराम लोगों को दिखाई देने बंद हो गए। तभी लोगों की ऐसी धारणा बन गई की तेनालीराम को चुपचाप फांसी पर चढ़ा दिया गया है। लोग तेनालीराम को याद कर करके चर्चा करते और महाराज को भी दबी जुबान से बुरा भला कहते, कितने योग्य व्यक्ति को मृत्युदंड दे दिया गया। मगर इस हकीकत से कोई वाकिफ नहीं था कि तेनालीराम जीवित था और इस समय अपने घर में छुपा बैठा था।

कुछ अंधविश्वासों ने तो यह प्रचार करना भी शुरू कर दिया कि ब्राह्मण की आत्मा भटकती रहती है इस पाप का प्रायश्चित होना चाहिए।

दोनों रानियों ने जब आत्मा भटकने की बात सुनी तो वह भी डर गई। उन्होंने राजा से कहा कि इस पाप से मुक्ति के लिए कुछ उपाय कीजिए। लाचार होकर राजा ने अपने राजगुरु और राज्य के चुने हुए 108 ब्राह्मणों को विशेष पूजा करने का आदेश दिया था कि तेनालीराम की आत्मा को शांति मिले।

पूजा नगर से बाहर बरगद के उस पेड़ के नीचे की जाने निश्चित हुई जहां अपराधियों को मृत्युदंड दिया जाता था।

यह खबर तेनालीराम तक भी पहुंच गई। रात होने से पहले भी वह उस बरगद के पेड़ पर जा बैठा। उसने सारे शरीर पर लाल मिट्टी पोत ली और धुए की कालिख चेहरे पर पोत ली। इस तरह उसने भटकती आत्मा का रूप बना लिया।

रात में ब्राह्मणों ने छोटी-छोटी लकड़ियों से आग जलाई और उसके सामने बैठकर उल्टे सीधे मंत्र पढ़ने लगे। वो जल्दी से जल्दी पूजा का कार्य समाप्त कर घर जाकर बिस्तर में दुबक जाना चाहते थे। जल्दी-जल्दी मंत्र पढ़कर उन्होंने दिखाने के लिए तेनालीराम को पुकारा “तेनालीराम”।

कहिए मैं उसकी आत्मा हूं। आवाज सुनते ही ब्राह्मण ने सोचा यह आवाज शर्तिया तेनालीराम है। उसकी आवाज सुनते ही ब्राह्मण की सिट्टी – पिट्टी गुम हो गई। चेहरे पीले पड़ गए। आहुतियां देते हाथ कांपने लगे।

उन में खुसर – फसर होने लगी– “भटकती आत्मा ने सचमुच उत्तर दिया है। हमें तो इस बात की आशा बिल्कुल नहीं थी।”

असलियत तो यह थी कि वह लोग इस प्रकार की ढोंगबाजी करके राजा से कुछ धन ऐठने के चक्कर में थे। उन्होंने स्वप्न में भी नही सोचा था कि तेनालीराम की आत्मा भटक रही होगी। उन्हें तो के मरने की खबर भी एक दूसरे से सुना सुनी ही मिली थी। मगर अब तेनालीराम की भटकती आत्मा पहले ही पुकार पर सामने थी तो उन्होंने सोचा ही नहीं कि उससे क्या बात करें। दरअसल आत्मा आदि से बोलने बताने का कोई अनुभव भी उसके पास नहीं था।

उधर जब तेनालीराम में देखा कि ब्राह्मणों को कुछ सूझ नहीं रहा है तो एकाएक अजीब सी गुर्राहट के साथ पेड़ से कूदा। ब्राह्मणों ने उसकी भयानक सूरत देखी तो डर के मारे चीखते चिल्लाते सर पर पांव रखकर भाग खड़े हुए। आगे आगे राजगुरु और पीछे-पीछे दूसरे ब्राह्मण।

हांफते – हांफते राजा के पास पहुंचे उन्हें बुरी बात बताई कि किस प्रकार उनके मंत्र बल से तेनालीराम की आत्म साक्षात प्रकट हुई।

राजा ने उन सबसे जब यह कहानी सुनी तो वह बहुत हंसे -“तुम लोग तो बस बड़ी-बड़ी बातें बनाना ही जानते हो। जिस भटकती आत्मा को शांत करने के लिए तुम्हें भेजा था उसी से डर कर भाग आए।”

ब्राह्मण सर झुकाए खड़े रहे। “विचित्र बात तो यह है कि इस भटकती आत्मा ने मुझे दर्शन नहीं दिए। तुम लोगों को ही दिखाई दिया।”राजा ने कहा – जो हुआ सो हुआ। अब जो इस भटकती आत्मा से मुक्ति दिलवाएगा उसे 1000 स्वर्ण मुद्राएं दी जाएगी।

राजा की घोषणा के 3 दिन बाद एक बूढ़ा सन्यासी राज दरबार में उपस्थित हुआ। उसकी दाढ़ी बगुले के पंख की तरह सफेद थी। उसने कहा महाराज इस भटकती आत्मा से आपको मैं मुक्ति दिला सकता हूं। शर्त यह है कि जब आपको संतोष हो जाए कि भटकती आत्मा नहीं रही तो आपको मुझे मुंह मांगी वस्तु देनी होगी। राजा ने कहा -“कोई भी चीज जो हमारे सम्मान और प्रजा के लिए हानिकारक ना हो तो उसे देने में हमें कोई आपत्ति नहीं।

सन्यासी ने कहा,”बेफिक्र रहे महाराज! ऐसी कोई वस्तु नहीं मांगूंगा जो आपके सम्मान और प्रजा के लिए हानिकारक हो। ठीक है, आप मुझे इस भटकती आत्मा से तो छुटकारा दिलवाइए ही, साथ ही मुझे ब्रह्म – हत्या के पापा से भी मुक्ति दिलवाइए। वह बेचारा मेरे क्रोध के कारण मारा गया, हालाकि उसका अपराध छोटा सा ही था। राजा ने कहा।

“आप चिंता न करे, मेरे उपाय के बाद आपको ऐसा लगेगा, जैसे ब्राह्मण मरा ही नहीं। सन्यासी बोला – “चाहेंगे तो मैं उसे साक्षात जीवित अवस्था में आपके सामने उपस्थित कर दूंगा।”ऐसा हो सके तो और क्या चाहिए। हालांकि मुझे विश्वास नहीं हो रहा है कि ऐसा हो सकता है। राजगुरु पास ही बैठा था बोला लेकिन महाराज कभी मुर्दे भी जीवित हुए हैं? और फिर उसे मसखरे को जीवित करने से लाभ ही क्या है? वह फिर अपनी शरारतों पर उतर आएगा और आपसे दोबारा मौत की सजा पाएगा।

“कुछ भी हो हम यह चमत्कार अवश्य देखना चाहते हैं और फिर हमारे मन पर जो बोझ है वह भी उतर जाएगा। सन्यासी जी आप यह कार्य कब करना चाहेंगे?”राजा ने कहा। सन्यासी ने उत्तर दिया-“अभी और यही महाराज”

लेकिन भटकती आत्मा यहां नहीं बरगद के उसे पेड़ के ऊपर है, महाराज, मुझे तो लगता है कि संन्यासी कोरी बातें ही करना जानता है, इसके बस का कुछ नहीं। राजगुरु ने राजा से कहा। दरअसल व सन्यासी की बातें सुनकर डर गया था कि कहीं सन्यासी सचमुच में ही उसे जीवित न कर दे।

“राजगुरु जी जो मैं कह रहा हूं वह करके दिखा सकता हूं। आप ही कहिए यदि मैं उसे ब्राह्मण को आपके सामने जीवित कर दूं तो क्या भटकती आत्मा शेष रहेगी?”सन्यासी बोला। बिल्कुल नहीं। राजगुरु ने उत्तर दिया। फिर लीजिए देखिए चमत्कार। सन्यासी ने अपने गेरूए वस्त्र और नकली दाढ़ी उतार दी। अपनी सदा की पोशाक में तेनालीराम राजा और राजगुरु के सामने खड़ा था।

दोनों हैरान थे। उन्हें अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। तेनालीराम ने तब राजा को पूरी कहानी सुनाई। उसने राजा को याद दिलाया आपने मुझसे मुंह मांगा इनाम देने का वादा किया है। आप उन अंगरक्षकों को क्षमा कर दीजिए जिन्हें आपने मुझे मारने के लिए भेजा था। दरअसल मेरी चालाकी से ही वह मुझे मारने में असफल रहे थे, किंतु मैंने ही उनसे भेष बदल कर कहा कि वह आपके पास जाकर झूठ बोल दे। मैंने ऐसा इसलिए किया महाराज की मैं जानता था कि बाद में आपको अपने इस फैसले पर अफसोस होगा। इस धृष्टता के लिए आप मुझे मेरी मुंह मांगे वस्तु दे और क्षमा करे।

“तुमने बहुत ठीक ही सोचा था तेनालीराम। हमने तुम्हें क्षमा किया और साथ ही तुम्हें 10000 मुद्राओं का पुरस्कार भी देते हैं।”कहकर राजा ने उसे गले से लगा लिया।

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I’m Archana Dwivedi - a dedicated educator and founder of an educational institute. With a passion for teaching and learning, I strive to provide quality education and a nurturing environment that empowers students to achieve their full potential.

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