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Home»Religion (dharmik)»तुलसी माता की पूजन कथा
Religion (dharmik)

तुलसी माता की पूजन कथा

By Archana DwivediUpdated:November 28, 2023
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27 नवंबर 2023 को तुलसी माता की पूजा शालिग्राम भगवान के साथ की गयी है।कार्तिक मास में तुलसी पूजा और दीपक जलाने का विशेष महत्व बताया गया है। कहते हैं ये महीना भगवान विष्णु और तुलसी (Lord Vishnu and Tulsi) को समर्पित होता है। कार्तिक माह का समापन कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) के दिन होगा, जो कि इस साल 27 नवंबर को पड़ी है। ऐसी मान्यता है कि इस दौरान भगवान विष्णु और तुलसी की पूजा से हर कष्ट दूर हो जाते हैं। तुलसी पूजा के साथ रोजाना तुलसी में नियमित रूप से जल अर्पित करें और दीपक जलाएं। इससे तुलसी के पौधे के पास कुछ चीजें रखने ने घर में धन-धान्य की कभी कमी नहीं होती। आइए जानते हैं कार्तिक मास में तुलसी के पौधे के पास क्या चीजें रखनी चाहिए।

तुलसी माता के पूजन की कथा

तुलसी माता की पूजा की अनेक कथाएं प्रचलित है हम आपके यहां पर एक कथा स्वागत करने वाले हैं आईए जानते हैं कि क्या है तुलसी माता की पूजा की कथा-

एक लड़की थी जो तुलसी माता की बहुत बड़ी भक्त थी। वह प्रतिदिन सुबह सबसे पहले स्नानागार की माता तुलसी को जल अर्पण करती थी, उसके बाद ही चाय अथवा पानी पीती थी। यह उसका प्रतिदिन का कार्य था,इसके बिना वह अन्य कोई कार्य पहले नहीं करती थी।

एक बार जब उसे लड़की का विवाह हुआ तो वह लड़की अपनी मां से बोली मां मैं तुलसी का पौधा अपने साथ ले जाना चाहती हूं क्योंकि यह मात्र एक पौधा नहीं है बल्कि यह मेरी तुलसी माता है।उनकी मां बोली ठीक है बेटी तुम ही इस गमले को अपने साथ ले जाओ।यह तुलसी माता सदैव तुम्हारी रक्षा करेंगी।

जब लड़की अपने ससुराल पहुंची तो वह अपनी पूजा पाठ के सभी कार्य वैसे ही करती थी जैसे वह अपने मायके में करती थी।सुबह सर्वप्रथम उनकी माता तुलसी की पूजा करती थी उसके बाद ही घर के अन्य कार्य संपन्न करती थी।

लड़की के यह कार्य उसके ससुराल में ज्यादा किसी को पसंद नहीं आता था कि वह सुबह-सुबह सर्वप्रथम पूजा ही करने लगती है।उसकी सास तो कुछ भी नहीं बोलती थी परंतु उसकी जेठाणिया उसकी इस बात से परेशान रहती थी कि यह काम तो बाद में करती है पहले तो पूजा पाठ में ही लग जाती है।

उसे लड़की की दो जेठानिया थी दोनों ने तय किया कि हम इनकी तुलसी माता को यहां से हटा देंगे जिसकी वजह से यह पूजा नहीं कर पाएंगी।दूसरे दिन जब लड़की जागी तो उसने देखा कि उसकी तुलसी माता नहीं मिल रही है वह काफी रोई इधर-उधर ढूंढा परंतु उसकी तुलसी माता नहीं मिली तब उसे एक दीवाल के पीछे तुलसी का पौधा थोड़ा सा दिखाई पड़ा हुआ समझ गई कि मेरी तुलसी माता यहीं पर है।उन्होंने वहां से तुलसी माता को लाकर के उनकी पूजा आराधना की। उसके बाद जल ग्रहण किया।

जब उसकी जेठाणियों ने ताने मारते हुए कहा कि आज तो तुमने पूजा नहीं की और जल ग्रहण कर लिया तो वह लड़की बोली -“भाभी मैंने पूजा कर लिए मुझे तुलसी माता मिल गयी थी,तो उनकी जेठानी बोली मैं तो उन्हें छुपा दिया था तो उसे वह लड़की बोली -“नहीं माता ने मुझे दर्शन दे दिया और मैं उनकी पूजा कर ली है… वह लड़की बहुत ही निर्मल स्वभाव की थी उसके मन में किसी के लिए भी कोई भी द्वेष नहीं था।

लड़की की इतनी पूजा पाठ से उसकी जेठानी बहुत ही ज्यादा परेशान हो गई एक बार उन्होंने तय कर लिया कि हम इस तुलसी के पेड़ को बाहर फेंक देंगे। उन्होंने जब इस तुलसी के पेड़ को बाहर फेंक दिया। जब लड़की स्नान करके दूसरे दिन पूजा करने आई तो उसने देखा तो उसकी तुलसी माता वहां पर नहीं थी। वह बहुत अधिक रोई और माता से प्रार्थना करने लगी की मां मैं आपकी बिना कैसे रहूंगी? तत्काल माता रानी उसे आशीर्वाद देते हुए कहा -“बेटी तू चिंता ना कर, तेरे चारपाई की चारों पांव में तुलसी का पौधा आ जाएगा तू उनकी पूजा करना। तुम परेशान ना हो, मैं तुम्हारे साथ हूं। उस तुलसी के पौधे को कोई हटा भी नहीं पाएगा। लड़की प्रसन्न हो गई और उसने जब अपने कमरे में जाकर देखा तो उसे वहां चार पौधे दिखाई पड़े जिसकी उसने पूजा आराधना की उसके बाद जल पारण किया।

उसके बाद जब उसकी जेठानियों ने उसे जल पालन करते हुए देखा तो उन्होंने पुनः पूछा कि तुमने जल पालन कैसे कर लिया तुमने तो पूजा भी नहीं की है? लड़की सब समझती थी परंतु उसने बड़ी नम्रता से कहा -” नहीं, भाभी मैंने माता की पूजा कर ली है। जेठानी ने कहा परंतु यहां पर तो तुलसी थी ही नहीं। तो लड़की ने कहा -“तुलसी माता मेरी गायब हो गई थी मैंने उन्हें बहुत ढूंढा परंतु वे नहीं मिली, पर मां मुझ पर दयाल थी इसलिए उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया कि तू चिंता मत कर तेरे चारपाई के चारों पांव में तुलसी का पौधा आ जाएगा बेटी और उसे पौधे को कोई हटा भी नहीं पाएगा जिससे तुम आसानी से हमेशा पूजा कर पाओगी।यह सुनकर की जेठाणिया बड़ा आश्चर्यचकित हो गई। उन्होंने कहा मुझे भी अपने माता के दर्शन कराओ।जब जाकर उन्होंने उसके कमरे में देखा तो वे बड़ी अचरज रह गई और उन्होंने अपने देवरानी की चरण पकड़ लिए और उनसे माफी मांगने लगी कि तुम्हारे तुलसी के पौधे को मैंने ही उखाड़ करके बाहर फेंक दिया था।

हम सभी नहीं चाहते थे कि तुम तुलसी की पूजा करो हमें क्षमा कर दो क्योंकि तुम हमेशा पूजा पर करती थी इसीलिए हम तुम्हारे पीछे पड़े हुए थे। लेकिन आज हम समझ गए हैं कि तुम भगवान की बहुत बड़ी भक्त हो और तुलसी तुम्हारी माता है और अब हमें क्षमा करते हुए तुलसी माता हम पर भी अपनी कृपा करें। हम लोग तो नास्तिक थे इसलिए पूजा नहीं करते हैं परंतु तुम भगवान की असीम भक्त हो माता जैसे तुम पर कृपा करती है वैसे हम सब पर भी कृपा करें आज से मैं भी तुलसी माता की पूजा किया करुंगी। इस प्रकार से उनकी दोनों जेठाणिया भी तुलसी माता की प्रतिदिन पूजा करने लगी और उनके घर खुशियों से भर गया।

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