महात्मा बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व लुंबिनी (कपिलवस्तु) में हुआ था जो की नेपाल में स्तिथ है। उस समय पर भारत को जंबूद्वीप के नाम से भी जाना जाता था। महात्मा बुद्ध का जन्म शाक्य वंश में हुआ था जो की रोहिणी नदी के किनारे स्तिथ है। उनकी माता का नाम मायादेवी था और पिता का नाम शुद्धोधन था।
नन्हे बालक का भविष्य जानने के उद्देश्य से कुछ साधुओं को और विद्वानों को बुलाया गया। उन्होंने कहा की या तो यह बालक चक्रवर्ती सम्राट् होगा और पृथ्वी पर राज करेगा या बुद्ध होगा। उन्होंने यह भी कहा की इस बालक ने मनुष्य कल्याण के लिए ही जन्म लिया है। इसके अतिरिक्त उन्होंने कहा की स्वयं धर्म राज पृथ्वी पर इस नन्हे बालक के रूप में अवतरित हुए हैं और यह गरीबों, दुखियों और असहायों को कष्टों से मुक्ति दिलाएगा।
विद्वानों और ब्राह्मणों ने बालक का नाम सिद्धार्थ रखा, जिसका अर्थ है वह बालक जिसका जन्म सिद्धि प्राप्ति के लिए हुआ हो।
बाल्यावस्था और शिक्षा दीक्षा
गौतम बुद्ध (सिद्धार्थ) बाकी सभी बच्चों की तरह चंचल नहीं थे। वे बाकियों की तरह शरारत नहीं करते थे। वे वृक्ष के नीचे बैठकर दुनिया की चिंता किया करते थे। उनके पिता शुद्धोधन को सदैव ही सिद्धार्थ के गृहस्थ जीवन को त्याग देने की बात सताया करती थी। सिद्धार्थ गृहस्थ जीवन ना त्यागे, इसलिए उनके पिता ने महल में तमाम सुख-सुविधाएं उपलब्ध कराई जिससे उनका इन सब सुखों को छोड़ने का मन ना करे।
वैवाहिक जीवन
547 ईसा पूर्व 16 वर्षीय सिद्धार्थ का विवाह राजकुमारी यशोधरा से हुआ। यह विवाह इसलिए किया गया ताकि सिद्धार्थ परिवारिक मोह माया में बंध जाएं, और वो सन्यास ग्रहण ना कर सके। परंतु सिद्धार्थ कभी भोग विलास की चीजों को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिए। सिद्धार्थ अपनी पत्नी से ढेर सारी ज्ञान की बातें किया करते थे, उनका कहना था कि पूरे संसार में केवल स्त्री ही पुरुष के आत्मा को बांध सकती है। इसी बीच यशोधरा ने पुत्र राहुल को जन्म दिया। सिद्धार्थ महल में रहकर भी वह बाहरी दुनिया के बारे में चिंतन के कारण भोग विलास की चीजों का आनंद उन्हें फिखा लगता था, तथा परिवारिक मोह को कभी अपने लक्ष्य प्राप्ति के मध्य नहीं आने दिया।
सन्यासी जीवन
कभी-कभार सिद्धार्थ महल के बाहर घूमने के लिए निकलते थे, ताकि वो दुनिया देख सके। एक बार उन्होंने रास्ते पर चलते एक वृद्ध कमजोर व्यक्ति को देखा। जो झुक कर चल रहा था, उसकी आंखें धंसी हुई थी। यह दृश्य सिद्धार्थ के मन को काफी विचलित करने वाला था, इससे उन्हें दुनिया की दुखों का अंदाजा हो गया। फिर उन्होंने एक बीमार व्यक्ति को देखा, जो दर्द के कारण चिल्ला रहा था उसके शरीर कांप रहे थे। तब उन्होंने रोग क्या होता है इसे जाना, इस दृश्य से वह काफी दुखी हुए। उन्हें सभी भोग विलास की चीजें व्यर्थ लगने लगी। कुछ दूर और आगे जाने पर उन्हें एक शव दिखाई दिया, जिसे चार लोग कंधे पर रखकर ले जा रहे थे और उसके परिवार के लोग विलाप कर रहे थे। इस समय उन्हें जीवन और मृत्यु का ज्ञान हुआ, उन्होंने जाना कि जो व्यक्ति जन्म लेता है वह एक समय मृत्यु को भी प्राप्त होता है। तब उनके मन में विरक्ति की भावना उत्पन्न होने लगी। उन्हें सारा जीवन नीरस लगने लगा। थोड़ी दूरी पर उन्हें एक सन्यासी दिखाई दिया, जो सांसारिक मोह माया से दूर प्रसन्न चित वाला था, मानो वह सारे दुखों से पार जा चुका हो। इस दृश्य को देखकर सिद्धार्थ ने संकल्प लिया कि वह इस मोह माया को त्याग कर सन्यास ग्रहण करेंगे। उसी रात्रि सिद्धार्थ ने अपने पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को छोड़कर सत्य की खोज में जंगल में चले गए, ताकि दुनिया में सुख शांति स्थापित कर सकें।