एक बार राजा अकबर का दरबार लगा था। बीरबल के साथ ही सभी मंत्रीगण बैठे थे। अकबर की आदत थी कि वे बीरबल की परीक्षा लेते रहते थे। ऐसा करने में उन्हें आनंद आता था।’
अकबर ने एकाएक बीरबल से पूछा लिया, ‘ऐसी लाइन बताओ, जिसे कोई इनसान सुख में पढ़ें, तो उसे दुख हो और वहीं लाइन दुख में पढ़ें, तो सुख मिले।’ बीरबल ने एक पल सोचा और जवाब दे दिया।
बीरबल ने कहा, ‘जहांपनाह, वो लाइन है- यह वक्त भी गुजर जाएगा।’ बीरबल ने समझाया कि यह लाइन उस इनसान के लिए भी है, जिसका वक्त अभी बुरा चल रहा है। वो यह सोचकर खुश होगा कि जल्द अच्छा वक्त आने वाला है।
उन्होंने आगे कहा, ‘इसी तरह, जिस व्यक्ति का अभी अच्छा वक्त चल रहा है, उसको यह चिंता सताएगी कि जल्द यह वक्त गुजर जाएगा और पता नहीं आगे कैसे वक्त आएगा।’
बीरबल की बात सुनकर अकबर खुश और सभी दरबारियों ने भी उनकी कुशाग्र बुद्धि की दाद दी।
अकबर और बीरबल के बीच ऐसी बातें भी होती थीं
अकबर और बीरबल के बीच बादशाह और दीवान का संबंध तो था ही, दोनों बहुत अच्छे दोस्त भी थे। जिस तरह दोस्तों के बीच हल्की-फुल्की मजाक होती है, वैसे ही इन दोनों के बीच भी होती थी।
एक बार बात है। अकबर और बीरबल नौका विहार कर रहे थे। तमाम तरह की बातों की बीच बादशाह ने अचानक अपने गले में पहनी माला निकाली और नदी में फेंक दी। इसके बाद बीरबल से कहा- बीरबल, माला दो।
बीरबल तो होशियार थे ही। उन्होंने जवाब दिया, बहने दो। इस पर अकबर भड़क गए। बोले कि तुम हमसे हमारी बहनें मांग रहे हो।
शांत बीरबल ने उत्तर दिया, जहांपनाह आपने भी तो मेरी मां मांगी थी। मैंने तो बुरा नहीं माना। इस पर अकबर बोले – मैंने तुम्हारी मां का नहीं, माला के बारे में कहा था।
बीरबल का जवाब था, मैंने भी तो नदी में बह रही माला के बारे में ही कहा था। इतना सुनते ही दोनों ठहाका लगाकर हंसने लगे।