कार्तिक पूर्णिमा के दिन बिठूर में गंगा नदी के किनारे लगने वाला कार्तिक यानी कतकी मेला प्राचीन काल से ही पूरे उत्तर भारत में प्रसिद्ध है। कानपुर शहर से 15 किलोमीटर दूर गंगा तट पर स्थित बिठूर वैसे तो हर साल धार्मिक लिहाज से श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र रहता है, लेकिन कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहां बड़ा मेला लगता है।
कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा में स्नान और दान करने का विशेष महत्व है। इस कारण सोनपुर का हरिहर क्षेत्र, कोनहारा, हाजीपुर और अन्य जिलों से हाजीपुर के गंगा नदी घाटों पर भारी संख्या में लोग पहुंचते हैं। इस दौरान भूत भगाने के नाम पर अंधविश्वास का खेल यहां देखने को मिलता है।
कतकी मेला लगने का पौराणिक कारण
महाभारत युद्ध में मारे गए सैनिकों की आत्मशांति के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों से खादर में दीपदान कराया था तभी से यहां कार्तिक मेले का आयोजन होता आ रहा है और कार्तिक पूर्णिमा गंगा स्नान के दिन दीपदान का विशेष महत्व है।
इसके अलावा कार्तिक पूर्णिमा को “त्रिपुरी पूर्णिमा” भी कहा जाता है। इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था, जो देवताओं के लिए संकट बन चुका था। त्रिपुरासुर के संहार के बाद देवताओं ने भगवान शिव का धन्यवाद किया और तभी से यह दिन भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना का माना गया है।
मेले लगने का कारण
जब किसी एक स्थान पर बहुत से लोग किसी सामाजिक ,धार्मिक एवं व्यापारिक या अन्य कारणों से एकत्र होते हैं तो उसे मेला कहते हैं। भारतवर्ष में लगभगहर माह मेले लगते रहते ही है। मेले तरह-तरह के होते हैं। एक ही मेले में तरह-तरह के क्रियाकलाप देखने को मिलते हैं और विविध प्रकार की दुकाने एवं मनोरंजन के साधन हो सकते हैं।
उदाहरण के लिए जैसे कतकी का मेला प्रयागराज में कुंभ का मेला जहां 12 वर्षों बाद महाकुंभ का मेला भी लगता है वर्ष 2025 में प्रयागराज में महाकुंभ का मेला लगेगा। जिसमें पूरे देश से अनेक संख्या में लोग एकत्रित होते हैं।
कतकी का मेला गंगा के किनारे बसी ज्यादातर शहरों में होता है इस मेले में कई तरीके की चीजें देखने को मिलती हैं जिन्हें लोग अपने घर के सजावट आदि के लिए प्रयोग कर सकते हैं इसके अलावा खाने-पीने की भी कई दुकानें लगती है साथ ही बच्चों के लिए झूठों का भी प्रबंध होता है इसमें जाकर लोग अपने परिवार के साथ खरीदारी करते हैं मनोरंजन करते हैं एवं कतकी मेले का आनंद लेते हैं।