एक बार दो मेंढ़क खाने की तलाश में एक घर के अंदर घुस गए। वहाँ उन्होंने एक बड़ा मटका देखा, जिसमें दूध भरा हुआ था। उत्सुकता से वे मटके के किनारे पर चढ़ गए, लेकिन संतुलन बिगड़ने के कारण दोनों मेंढ़क उसमें गिर गए।
मटके का दूध गाढ़ा था, और उसमें से बाहर निकलना बहुत मुश्किल था। दोनों मेंढ़क खूब कोशिश करने लगे, लेकिन सफलता नहीं मिली।
पहला मेंढ़क कुछ देर हाथ-पैर मारने के बाद हार मान गया और बोला, “हम इस दूध से बाहर नहीं निकल सकते, यह असंभव है!” उसने प्रयास करना बंद कर दिया और धीरे-धीरे डूब गया।
लेकिन दूसरा मेंढ़क हार मानने को तैयार नहीं था। उसने खुद से कहा, “अगर मैं हिम्मत हार गया, तो मैं भी डूब जाऊँगा। मुझे तब तक कोशिश करनी चाहिए जब तक कोई रास्ता न मिल जाए!”
वह लगातार अपने पैरों से दूध को मथता रहा। काफी देर बाद दूध से मक्खन बनने लगा, और वह मक्खन धीरे-धीरे जमने लगा। अब मेंढ़क ने मक्खन के उस टुकड़े पर चढ़कर छलांग लगाई और बाहर निकल आया।
:
कहानी से शिक्षा
हार मानने वाले हमेशा हार जाते हैं, लेकिन जो आखिरी सांस तक कोशिश करते हैं, वे सफलता पाते हैं!