एक छोटे से गांव में कंवल नाम का एक लड़का रहता था। उसका परिवार बहुत गरीब था। उसके पापा खेतों में मजदूरी करते थे और माँ दूसरों के घर काम करके घर चलाती थीं। कंवल को पढ़ाई बहुत पसंद थी, लेकिन गांव में स्कूल में उसे तंग किया जाता था। कुछ बच्चे उसे नीचा दिखाते थे और कहते,
“तू क्या बड़ा आदमी बनेगा? खेतों में ही तो काम करेगा।”
कंवल चुप रहता, लेकिन दिल में सोचता – “मैं कुछ बनकर दिखाऊँगा।”
वो रोज़ स्कूल जाता, चाहे रास्ता लंबा हो या बारिश हो। उसके पास जूते नहीं थे, लेकिन उसकी आँखों में सपने थे। मास्टरजी ने उसकी मेहनत देखी और उसकी मदद करने लगे। उन्होंने उसे कहा,
“कंवल, पढ़ाई से बड़ा कोई हथियार नहीं। ये तुम्हें वो पहचान दिलाएगी जो कोई छीन नहीं सकता।”
कंवल ने मेहनत की। उसने पढ़ाई में गांव भर में नाम कमा लिया। धीरे-धीरे उसने शहर जाकर पढ़ाई की और आगे चलकर एक कलेक्टर बन गया।
जब वह सालों बाद गांव लौटा, तो वही बच्चे जो उसे चिढ़ाते थे, अब उसे सम्मान से देख रहे थे। कंवल ने गांव में एक नया स्कूल खुलवाया और कहा,
“हर बच्चा पढ़ेगा, चाहे वो किसी भी जाति या घर से हो। क्योंकि असली ताकत किताबों में है, जात में नहीं ।
“अगर हम कुछ करने का ठान ले तो, हम उसको अंततः कर ही लेते है”
शिक्षा:
“किसी की गरीबी या जाति उसकी काबिलियत नहीं बताती। बल्कि, मेहनत, आत्मविश्वास और शिक्षा से कोई भी मनुष्य ऊँचाई तक पहुँच सकता है।”