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Home»धर्म»वरुथिनी एकादशी 24 अप्रैल 2025, जाने एकादशी का महत्व एवं कथा
धर्म

वरुथिनी एकादशी 24 अप्रैल 2025, जाने एकादशी का महत्व एवं कथा

By Archana DwivediUpdated:July 18, 2025
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एकादशी व्रत कथाएं एकादशी के दिन व्रत रखने के महत्व को दर्शाती हैं। ये कथाएं पापों के क्षय, मोक्ष प्राप्ति, और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने के लिए व्रत का पालन करने के महत्व को दर्शाती हैं।

इसके अलावा एकादशी व्रत कथा इसलिए मनाई जाती है क्योंकि इससे भक्तों को पुण्य फल प्राप्त होता है और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। आज, 24 अप्रैल 2025 को, वरुथिनी एकादशी है। 

एक महीने में दो पक्ष होने के कारण दो एकादशी होती हैं, एक शुक्ल पक्ष मे तथा दूसरी कृष्ण पक्ष मे। इस प्रकार वर्ष मे कम से कम 24 एकादशी हो सकती हैं, परन्तु अधिक मास की स्थति मे यह संख्या 26 भी हो सकती है।

वरुथिनी एकादशी वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। हिंदू धर्म में इस एकादशी का विशेष महत्व है और यह भगवान विष्णु को समर्पित है। ‘वरुथिनी’ का अर्थ है ‘सुरक्षा’ या ‘कवच’, और ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति सभी प्रकार के पापों से मुक्त होता है, नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा मिलती है और सौभाग्य में वृद्धि होती है।

वरुथिनी एकादशी की कथा एवं महत्व

युधिष्ठिरने पूछा- वासुदेव ! आपको नमस्कार है। वैशाख मासके कृष्ण पक्ष में किस नामकी एकादशी होती है? उसकी महिमा बताइये।

भगवान् श्रीकृष्ण बोले- राजन् ! वैशाख कृष्ण पक्ष की एकादशी ‘वरूथिनी’ के नाम से प्रसिद्ध है। यह इस लोक और परलोक में भी सौभाग्य प्रदान करनेवाली है। ‘वरूथिनी’ के व्रत से ही सदा सौख्यका लाभ और पापकी हानि होती है। यह समस्त लोकों को भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाली है। ‘वरूथिनी’ के ही व्रतसे मान्धाता तथा धुन्धुमार आदि अन्य अनेक राजा स्वर्ग लोक को प्राप्त हुए हैं। जो दस हजार वर्षोंतक तपस्या करता है, उसके समान ही फल ‘वरूथिनी’ के व्रत से भी मनुष्य प्राप्त कर लेता है। नृपश्रेष्ठ । घोड़ेके दानसे हाथी का दान श्रेष्ठ है। भूमिदान उससे भी बड़ा है। भूमिदानसे भी अधिक महत्त्व तिलदानका है। तिल दान से बढ़कर स्वर्णदान और स्वर्ण दान से बढ़कर अनदान है, क्योंकि देवता, पितर तथा मनुष्यों को अन्नसे ही तृप्ति होती है। विद्वान् पुरुषों ने कन्यादान को भी अन्नदानके ही समान बताया है।

कन्यादान के तुल्य ही धेनु का दान है- यह साक्षात् भगवान्‌ का कथन है। ऊपर बताये हुए सब दा-जैसे बड़ा विद्यादान है। मनुष्य वरूथिनी एकादशीका व्रत करके विद्या दान का भी फलं प्राप्त कर लेता है। जो लोग पापसे मोहित होकर कन्याके धन से जीविका चलाते हैं, वे पुण्यका क्षय होने पर यातनामय नरक में जाते हैं। अतः सर्वधा प्रथम करके कन्याके धनसे बचना चाहिये-उसे अपने काममें नहीं लाना चाहिये। जो अपनी शक्ति के अनुसार आभूषणों से विभूषित करके पवित्र भाव से कन्याका दान करता है, उसके पुण्य की संख्या बताने में चित्रगुप्त भी असमर्थ हैं। वरूथिनी एकादशी करके भी मनुष्य उसीके समान फल प्राप्त करता है। व्रत करनेवाला वैष्णव पुरुष दशमी तिथिको कांस, उड़द, मसूर, चना, कोदो, शाक, मधु, दूसरेका अन, दो बार भोजन तथा मैथुन – इन दस वस्तुओं का परित्याग कर दे। एकादशी को जुआ खेलना, नींद लेना, पान खाना, दांतुन करना, दूसरेको निन्दा करना, चुगली खाना, चोरी, हिंसा, मैथुन, क्रोध तथा असत्य-भाषण – इन ग्यारह बातोंको त्याग दे

द्वादशीको कांस, उड़द, गमन, दो बार भोजन, मैथुन, बैलकी पीठपर सवारी और मसूर – इन बारह वस्तुओंका त्याग करे। राजन् ! इस विधिसे वरूथिनी एकादशी की जाती है। रात को जागरण सा करके जो भगवान् मधुसूदन का पूजन करते हैं, वे सब पापों से मुक्त हो परमगति को प्राप्त होते है। अतः पापभीरु मनुष्योंको पूर्ण प्रयल करके इस एकादशी का व्रत करना चाहिये। यमराजये से डरनेवाला मनुष्य अवश्य ‘वरुधिनी’ का व्रत करे। यमराज से डरने वाला मनुष्य अवश्य ‘वरूथिनी’ का व्रत करे। राजन् ! इसके पढ़ने और सुनने से सहस्र गोदान का फल मिलता है और मनुष्य सब पापों से मुक्त होकर विष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है।

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Archana Dwivedi
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I’m Archana Dwivedi - a dedicated educator and founder of an educational institute. With a passion for teaching and learning, I strive to provide quality education and a nurturing environment that empowers students to achieve their full potential.

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