अंतरराष्ट्रीय राजनीति के बदलते परिदृश्य में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) एक ऐसा मंच बन चुका है जो एशिया की राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा संबंधी प्राथमिकताओं को एक साथ लाता है। वर्ष 2025 में चीन के तियानजिन शहर में आयोजित यह बैठक न केवल संगठन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण पड़ाव थी, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ा।
संगठन का परिचय
शंघाई सहयोग संगठन की स्थापना वर्ष 2001 में हुई थी। A मुख्य उद्देश्य सदस्य देशों के बीच क्षेत्रीय सुरक्षा, आतंकवाद निरोध, आर्थिक विकास और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करना है। वर्तमान में इसके 10 सदस्य राष्ट्र हैं – चीन, रूस, भारत, पाकिस्तान, ईरान, बेलारूस, कज़ाख़स्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान।
बैठक की मुख्य रूपरेखा
तियानजिन में हुई बैठक में निम्नलिखित मुद्दों पर चर्चा हुई –
1. आतंकवाद और क्षेत्रीय सुरक्षा : सदस्य देशों ने आतंकवाद, कट्टरवाद और अलगाववाद से सामूहिक रूप से निपटने की रणनीति पर विचार किया।
2. आर्थिक सहयोग : व्यापार, निवेश और डिजिटल कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया।
3. बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था : चीन और रूस ने विशेष रूप से यह रेखांकित किया कि SCO आज की दुनिया में पश्चिमी दबदबे का विकल्प बनकर उभर रहा है।
4. जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा सुरक्षा : पर्यावरण संरक्षण तथा स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में संयुक्त प्रयासों पर सहमति बनी।
भारत की भूमिका

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सम्मेलन में भारत का दृष्टिकोण स्पष्ट करते हुए कहा कि क्षेत्रीय स्थिरता और विकास तभी संभव है जब आतंकवाद पर कठोर कार्रवाई की जाए। भारत ने कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट्स, व्यापार में संतुलन और सांस्कृतिक साझेदारी को भी प्राथमिकता दी।
मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात विशेष रूप से चर्चा का विषय रही, क्योंकि सात वर्षों बाद दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय संबंधों पर खुलकर बातचीत की। इसमें सीमा विवाद, विश्वास निर्माण और आपसी व्यापार प्रमुख मुद्दे रहे।
अन्य नेताओं की भागीदारी

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन और अन्य नेताओं की उपस्थिति ने इस बैठक को और भी महत्वपूर्ण बना दिया। रूस–भारत–चीन (RIC) त्रिकोण की सक्रियता ने यह संदेश दिया कि एशिया में सामूहिक सहयोग का नया अध्याय शुरू हो रहा है।
निष्कर्ष
तियानजिन में आयोजित SCO सम्मेलन ने यह सिद्ध किया कि यह संगठन केवल एक क्षेत्रीय समूह नहीं, बल्कि विश्व राजनीति में उभरता हुआ ध्रुव है। चीन के लिए यह अपनी नेतृत्व क्षमता दिखाने का अवसर था, वहीं भारत ने आतंकवाद और विकास के मुद्दों पर ठोस रुख अपनाकर अपनी कूटनीतिक सक्रियता दिखाई।
भविष्य में SCO की बैठकों से यही अपेक्षा की जाएगी कि यह मंच क्षेत्रीय शांति, आपसी विश्वास और वैश्विक संतुलन की दिशा में ठोस कदम उठाता रहेगा।