भारतवर्ष में अनेक ऋषि-मुनियों ने अपने ज्ञान, तपस्या और लेखनी से समाज को दिशा दी है। उन्हीं में से एक महान ऋषि थे महर्षि वाल्मीकि — जिन्हें आदिकवि यानी भारत का पहला कवि कहा जाता है। उनके द्वारा रचित “रामायण” केवल एक ग्रंथ नहीं, बल्कि मानव जीवन का आदर्श मार्गदर्शक है।
वाल्मीकि जी कौन थे?
महर्षि वाल्मीकि का मूल नाम रत्नाकर था। वे प्रारंभ में एक वनवासी (भिल या निषाद) समुदाय से थे और जीवनयापन के लिए डकैती किया करते थे। किंतु एक दिन उन्हें महान ऋषि नारद मुनि से भेंट हुई। नारद जी ने रत्नाकर को यह समझाया कि पाप का जीवन अंत में दुख और अंधकार देता है। नारद मुनि ने उन्हें “राम” नाम का जप करने को कहा।
रत्नाकर ने इतने वर्षों तक ध्यान और तपस्या की कि उनके शरीर पर चींटियों का घर — यानी वाल्मीकि — बन गया। इसी कारण बाद में उन्हें “वाल्मीकि” नाम से जाना जाने लगा।
महर्षि वाल्मीकि के ग्रंथ और रचनाएँ
महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित सबसे प्रसिद्ध और पवित्र ग्रंथ है — “रामायण”, जिसे “आदिकाव्य” कहा जाता है।
यह विश्व का प्रथम महाकाव्य माना जाता है, जिसमें भगवान श्रीराम के जीवन, आदर्श, मर्यादा, त्याग, प्रेम और धर्म की कथा वर्णित है।
इसके अतिरिक्त वाल्मीकि जी को योगवासिष्ठ जैसे ग्रंथ का रचयिता भी माना जाता है, जिसमें जीवन दर्शन और आत्मज्ञान का गहरा संदेश निहित है।
महर्षि वाल्मीकि का आश्रम और जीवन
वाल्मीकि जी का आश्रम तमसा नदी के तट पर था (वर्तमान में उत्तर प्रदेश के प्रयागराज या चित्रकूट क्षेत्र में माना जाता है)।
इसी आश्रम में माता सीता ने अपने वनवास के समय शरण ली थी और वहीं लव-कुश का जन्म हुआ। वाल्मीकि जी ने ही लव और कुश को शिक्षा दी तथा रामायण का पाठ सिखाया।
बाल्मीकि जयंती क्यों मनाई जाती है?

बाल्मीकि जयंती, महर्षि वाल्मीकि के जन्म दिवस के रूप में मनाई जाती है। यह दिन आश्विन माह की पूर्णिमा तिथि को आता है।
इस दिन समाज में उनके महान योगदान, ज्ञान, समानता और धर्म के संदेश को याद किया जाता है।
बाल्मीकि जयंती मनाने का मुख्य उद्देश्य है —
समाज में ज्ञान, करुणा और सत्य का प्रसार करना।
यह संदेश देना कि कोई भी व्यक्ति अपनी गलती सुधारकर महान बन सकता है।
वाल्मीकि जी के जीवन से प्रेरणा लेकर मानवता, सदाचार और सेवा की भावना जगाना।
बाल्मीकि जी के जीवन से मिलने वाली प्रेरणा
1. सुधार की संभावना हर व्यक्ति में होती है।
रत्नाकर जैसे डाकू ने जब “राम” नाम का जाप किया, तो वह महर्षि बन गए।
2. ज्ञान और तपस्या से बड़ा कोई धन नहीं।
वाल्मीकि जी ने दिखाया कि आत्मज्ञान से जीवन का अंधकार मिट जाता है।
3. लेखन और साहित्य की शक्ति अमर होती है।
उन्होंने अपने शब्दों से भगवान श्रीराम के आदर्शों को अमर बना दिया।
महर्षि वाल्मीकि जी केवल एक कवि नहीं थे, बल्कि वे मानवता, भक्ति और धर्म के प्रतीक थे।
बाल्मीकि जयंती हमें सिखाती है कि चाहे जीवन कितना भी अंधकारमय क्यों न हो, यदि हम सच्चे मन से प्रयास करें तो प्रकाश का मार्ग अवश्य मिलता है।
उनका जीवन इस बात का उदाहरण है कि मनुष्य का कर्म, उसका भविष्य बदल सकता है।