एक दिन विजयनगर के सम्राट कृष्णदेव राय के दरबार में एक जादूगर उपस्थित हुआ। उसने काफी देर तक एक से बढ़कर एक आश्चर्यजनक जादुई करतब दिखाए। पूरा दरबार उसकी कला देखकर चकित रह गया। अंत में राजा से बहुमूल्य उपहार प्राप्त कर वह अहंकार में भर गया और जाते-जाते सबको ललकारने लगा—
“क्या इस सभा में कोई ऐसा है जो मेरी तरह अद्भुत करतब कर सके? क्या कोई मेरी बराबरी कर सकता है?”
जादूगर की यह घमंड भरी बात सुनकर दरबार में सन्नाटा छा गया। कोई भी आगे नहीं बढ़ा। तभी तेनालीराम उठे। उन्हें जादूगर का यह अहंकार बिल्कुल पसंद नहीं आया। वे मुस्कराते हुए बोले—
“मैं तुम्हें चुनौती देता हूँ। जो काम मैं आँखें बंद करके कर दिखाऊँगा, वह तुम खुली आँखों से भी नहीं कर पाओगे। बताओ, क्या तुम्हें यह चुनौती स्वीकार है?”
अपने घमंड में डूबे जादूगर ने बिना सोचे-समझे तुरंत हामी भर दी।

इसके बाद तेनालीराम ने राजमहल के रसोइये को बुलवाया और उससे मिर्च का चूर्ण मँगवाया। फिर उन्होंने अपनी आँखें बंद कीं और स्वयं अपनी आँखों पर एक मुट्ठी मिर्च पाउडर डाल लिया। कुछ समय बाद उन्होंने मिर्च झाड़ दी, कपड़े से आँखें पोंछीं और ठंडे पानी से चेहरा धो लिया।
फिर तेनालीराम ने जादूगर की ओर देखते हुए कहा—
“अब तुम अपनी खुली आँखों से यही करतब करके दिखाओ।”
यह सुनते ही जादूगर को अपनी भूल का एहसास हो गया। उसका सारा घमंड चूर-चूर हो गया। उसने हाथ जोड़कर तेनालीराम और राजा से क्षमा माँगी और चुपचाप दरबार छोड़कर चला गया।
राजा कृष्णदेव राय तेनालीराम की इस बुद्धिमानी और सूझबूझ से बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने तुरंत तेनालीराम को पुरस्कार देकर सम्मानित किया और कहा कि उन्होंने अपनी चतुराई से राज्य का मान बढ़ाया है।
कहानी से सीख :
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि व्यक्ति के अंदर ज्ञान और बोल चाहे जितना हो परंतु उसे किसी बात का घमंड नहीं करना चाहिए क्योंकि कोई भी चीज हमेशा नहीं रहती है और यदि आप गलत तरीके से किसी चीज को करने का प्रयास करते हैं तो अंत उसका पत्तन निश्चित होता है इसलिए आपके अंदर यदि ज्ञान है तो उसका सही प्रयोग करें किंतु घमंड कभी ना करें।

